दुनिया का सबसे बड़ा रेगिस्तान सहारा दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है। इस कारण धरती के संरक्षण के काम में लगे वैज्ञानिकों की चिंताएं भी बढ़ रही हैं। पिछले 100 साल में सहारा रेगिस्तान के क्षेत्रफल में करीब 10 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। वर्तमान में सहारा रेगिस्तान का क्षेत्रफल 3.3 मिलियन वर्ग मील है, जो अफ्रीका महाद्वीप के उत्तरी हिस्से में 11 देशों के बीच फैला हुआ है। सहारा के दक्षिणी इलाके में स्थित साहेल नाम का अर्धशुष्क क्षेत्र रेगिस्तान को बाकी धरती से अलग करता है।
हाल के दिनों में देखा गया है कि यह इलाका भी तेजी से सूख रहा है। इस इलाके में पहले से ही पानी की भारी कमी है। अब मौसम परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग से पानी और दुर्लभ होता जा रहा है। इस इलाके में मिट्टी की गुणवत्ता लगातार खराब हो रही है। जिससे पेड़-पौधों या वनस्पति की कमी से इलाके में भोजन की कमी होती जा रही है। संयुक्त राष्ट्र के अनुमान है कि करीब 1 अरब 35 करोड़ लोग इस इलाके में रहते हैं, जिनके जीवन पर अब खतरा मंडराने लगा है।
8000 किमी लंबी बन रही दीवार
भारत की आबादी जितने लोगों पर मंडराते खतरे को देखते हुए अफ्रीकी संघ ने साल 2007 में एक महत्वकांक्षी योजना को शुरू किया था। जिसमें सहारा के विस्तार को रोकने और साहेल को फिर से बफर जोन बनाने के लिए संयुक्त प्रयास किया जा रहा है। अगले 10 साल के अंदर इस योजना के जरिए सहारा रेगिस्तान के दक्षिणी हिस्से में करीब 15 किलोमीटर चौड़ाई की 8000 किलोमीटर लम्बी एक ग्रीन वाल बनाई जाएगी।
इसे द ग्रेट ग्रीन वाल आफ अफ्रीका का नाम दिया गया है। पेड़-पौधों से भरे इस दीवार की चौड़ाई करीब 15 किलोमीटर की होगी। इसके तहत पश्चिम में सेनेगल और पूर्व में जिबूती के बीच 100 मिलियन हेक्टेयर भूमि को पेड़-पौधों से हरा भरा बनाया जाएगा।
इस योजना के शुरुआती चरण में अफ्रीकी संघ को फंड की काफी कमी हुई। इन्होंने कम पैसे में ही इस अभियान को शुरू तो जरूर किया, लेकिन अब कई वैश्विक संगठन और देश इस योजना को वित्तपोषण मुहैया करवा रहे हैं। फ्रांस ने इस साल जनवरी में इस प्रोजक्ट के लिए 14 बिलियन डालर का फंड मुहैया करवाया है। इसके अलावा विश्व बैंक ने भी कई अन्य फाइनेंसरों के साथ मिलकर 33 बिलियन डालर की सहायता दी है।
2030 तक पूरा होने का अनुमान
संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि अगर इसी गति से प्रोजक्ट का काम चलता रहा तो इसे साल 2030 तक पूरा कर लिया जाएगा। अगर यह प्रोजक्ट पूरा हो जाता है तो इसकी कुल लंबाई ग्रेट बैरियर रीफ से तीन गुना ज्यादा होगी। ग्रेट बैरियर रीफ इस समय धरती पर सबसे बड़ी जीवित संरचना है। अफ्रीकी संघ ने इस प्रोजक्ट को पूरा करने के लिए साल 2030 का लक्ष्य रखा हुआ है। अभी तक सिर्फ चार मिलियन हेक्टेयर भूमि में ही पौधरोपण किया गया है। यह प्रोजक्ट के कुल हिस्से का केवल 4 फीसदी ही हिस्सा है।
इस अभियान में प्रोजक्ट से सटे 20 मिलियन हैक्टेयर भूमि में फैले वनों को भी शामिल किया जाएगा। कई देशों में फैले इन वनों में कटाई को प्रतिबंधित किया जाएगा। लोगों को अधिक से अधिक इलाके में वन संरक्षण और पेड़- पौधों को लगाने के लिए प्रोत्साहित करने का अभियान भी चलाया जाएगा। ऐसी तकनीक जो रेत की आवाजाही को लंबे समय तक रोकती है, उसके लिए भी आसपास के लोगों को प्रशिक्षित करने का प्लान बनाया गया है। सहारा के किनारे बसे कई देश बोर होल और ड्रिलिंग सिंचाई प्रणाली का निर्माण करके पानी की आपूर्ति की रक्षा के लिए कदम उठा रहे हैं।
सबसे तेज काम कर रहा इथोपिया
इस काम में सबसे ज्यादा तेजी इथोपिया में देखी जा रही है। इस देश में अबतक 5.5 बिलियन पौधों को रोपा गया है। इन पौधों को डेढ़ लाख हेक्टेयर भूमि पर लगाया गया है। इसके अलावा 7 लाख हेक्टेयर भूमि पर पहले से फैले वनों को और घना किया गया है। ये जंगल इस परियोजना का हिस्सा नहीं हैं, लेकिन उन्हें भी बचाने और ज्यादा हरा-भरा बनाने के लिए अभियान चलाए जा रहे हैं।
अफ्रीकी संघ आयोग में ग्रेट ग्रीन वाल पहल के समन्वयक एल्विस पाल टैंगम ने कहा कि हमें देशों और सभी रणनीतियों को स्थापित करने में एक दशक से अधिक समय लगा। अब हमने जमीनी कार्य कर दिया है, हमने देखा है कि क्या काम किया गया है और क्या अभी बाकी है? हम अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए तेज गति से आगे बढ़ रहे हैं। उन्होंने बताया कि इस काम में सामुदायिक सहयोग का सबसे अधिक महत्व है। अगर उस क्षेत्र के लोग हमारा सहयोग नहीं करेंगे तो यह योजना सफल नहीं हो सकती है। हमने कई समुदायों से इसके लिए संपर्क किया है और लोग बढ़ चढ़कर इस परियोजना में हिस्सा ले रहे हैं।
स्थानीय निवासियों के सहयोग से होगा पूरा
फ्रांसीसी-ट्यूनीशियाई पर्यावरणविद् सारा टूमी ने भी कहा कि इस तरह की महत्वाकांक्षी परियोजना केवल तभी संभव होगी, जब स्थानीय निवासी इसके पीछे पूरी तरह से हों। यहां एक पेड़ लगाना बहुत आसान है, लेकिन उसे बढ़ाना बहुत मुश्किल है। सहारा रेगिस्तान के इलाके में पेड़-पौधों को लगाना सस्ता नहीं है। आपको इसे पानी देना होगा, आपको इसकी देखभाल करनी होगी, आपको जानवरों को इसे खाने से रोकना होगा।
उन्होंने बताया कि एकैसियस फार आल नामक एक संगठन की स्थापना के बाद से ट्यूनीशिया में मरुस्थलीकरण से प्रभावित भूमि पर 700,000 से अधिक बबूल के पेड़ लगाए गए हैं। एकैसियस फार आल संगठन किसानों को यह सिखाने में मदद करता है कि पौधे की पत्तियों, फलों और गोंद की कटाई कैसे करें ताकि वे इससे जीवन यापन कर सकें।
1 करोड़ लोगों को मिलेगा रोजगार
द ग्रेट ग्रीन वाल का लक्ष्य केवल रेगिस्तान को फैलने से रोकने के लिए जंगलों को लगाना ही नहीं, बल्कि बड़ी संख्या में रोजगार को भी पैदा करना है। अनुमान है कि इस परियोजना में 1 करोड़ से ज्यादा लोगों को रोजगार मिलेगा। अभी तक इस परियोजना में 3 लाख 35 हजार लोग काम कर रहे हैं। इन वनों में लगे फलों और जंगली पेड़ पौधों से 90 मिलियन डालर की कमाई की गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रोजक्ट के जरिए लोगों की स्थायी आजीविका का भी निर्माण होगा। ताकि वे अपने पारिस्थितिक तंत्र में शांति से रह सकें और अपनी परंपराओं को संरक्षित कर सकें।
उत्तम सिंह गहरवार