तीन महीने पहले दिल्ली में, जी20 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के नेताओं ने 2030 तक वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने का समर्थन किया था। फिर दुबई में राष्ट्रों के एक बड़े समूह ने इसी तरह की प्रतिज्ञा पर हस्ताक्षर किए। 120 से अधिक देशों ने दस्तावेज़ पर अपने हस्ताक्षर किए लेकिन चीन, भारत और इंडोनेशिया जैसे जी20 देश उनमें से नहीं थे।
इसके बावजूद कि चीन नवीकरणीय आपूर्ति श्रृंखला पर हावी है और अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने भविष्यवाणी की है कि चीन और भारत दोनों पहले से ही 2027 तक अपने नवीकरणीय ऊर्जा को दोगुना करने जा रहे हैं, जिससे उन्हें बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के 2030 तक तीन गुना क्षमता मिल जाएगी। तो फिर अनिच्छा क्यों?
खैर, काॅप28 प्रतिज्ञा कोयला-विरोधी भाषा और ऊर्जा दक्षता को दोगुना करने के लिए एक अधिक चुनौतीपूर्ण लक्ष्य के साथ एक पैकेज में आई थी, जिसका मिलान करने के लिए कोई मात्रात्मक वित्त लक्ष्य नहीं था। विशेषज्ञों ने क्लाइमेट होम को बताया कि प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाएँ लागत के बारे में चिंतित थीं और औपचारिक संयुक्त राष्ट्र जलवायु प्रक्रिया के बाहर प्रतिबद्धताएँ बनाने के लिए अनिच्छुक थीं।
कोयला और लागत
जी20 समझौते के विपरीत, काप28 प्रतिज्ञा हस्ताक्षरकर्ताओं से ‘‘निरंतर नए कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में निरंतर निवेश को समाप्त करने का आह्वान करती है, जो वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयासों के साथ असंगत है।“
ग्लोबल एनर्जी मानिटर के अनुसार, जिन चार जी20 देशों ने काप28 प्रतिज्ञा पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, वे दुनिया के चार-पाँचवें नए कोयले से चलने वाले बिजली संयंत्रों का निर्माण कर रहे हैं।
सेंटर फार साइंस एंड एनवायरनमेंट की शोधकर्ता अवंतिका गोस्वामी ने कहा, ‘‘यही वजह है कि बड़ी उभरती अर्थव्यवस्थाएं नवीकरणीय ऊर्जा घोषणा के बारे में चिंतित हैं, क्योंकि यह कोयला आधारित बिजली उत्पादन से जुड़ा है।“ नवीकरणीय क्षमता, इंडोनेशियाई सरकार की स्थिति से परिचित एक
सूत्र ने कहा कि उसे डर है कि ऐसा करने के लिए उन पर दबाव डाला जाएगा।’’
इंडोनेशिया के लिए, इसके लिए कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को शीघ्र बंद करने और जावा-बाली क्षेत्र में ग्रिड स्थिरता में निवेश की आवश्यकता हो सकती है। उन्होंने कहा, ‘‘दोनों का तात्पर्य (राज्य के स्वामित्व वाली ऊर्जा कंपनी) पीएलएन और सरकार पर बढ़ते वित्तीय बोझ से है।“ यह कारण है कि यह प्रतिज्ञा वित्तीय और तकनीकी सहायता के साथ नहीं आती है, जिससे इंडोनेशिया समर्थन के लिए अनिच्छुक हो गया है।
एशिया सोसाइटी के जलवायु प्रमुख ली शुओ ने क्लाइमेट होम को बताया कि चीन 2030 तक ऊर्जा दक्षता को दोगुना करने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए संघर्ष करेगा, जो कि जी20 समझौते या यूएस-चीन सनीलैंड्स समझौते में नहीं था। ऊर्जा दक्षता की गणना किसी अर्थव्यवस्था के आकार को उसकी ऊर्जा खपत से विभाजित करके की जाती है और हाल के वर्षों में चीन की आर्थिक वृद्धि धीमी हो गई है, जिससे लक्ष्य तक पहुंचना कठिन हो गया है। ली ने कहा कि चीन ‘‘साइड डील और घोषणाओं का प्रशंसक नहीं रहा है।“ (संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता)। उन्हें अक्सर लगता है कि ये सौदे (संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन) और पेरिस समझौते से भटक रहे हैं और भविष्य में उनके खिलाफ हो सकते हैं।’’
ग्लोबल विंड एनर्जी काउंसिल के नीति निदेशक जायस ली ने कहा कि, जैसा कि काप28 जलवायु वार्ता की शुरुआत में प्रतिज्ञा की गई थी, बहुत सारे सार्वजनिक रुख हैं। उन्होंने कहा, बातचीत की गतिशीलता में, आप अपने आप को उसके बहुत करीब नहीं रखते जहां शुरुआत में आपकी अंतिम स्थिति हो सकती है।
उन्होंने कहा कि इन देशों में ऐसा महसूस हो रहा है कि वे पहले से ही (उत्सर्जन कम करने) पर बहुत कुछ कर रहे हैं और अपने उचित हिस्से से अधिक भी कर सकते हैं, यह देखते हुए कि उन्होंने अमीर देशों की तुलना में ऐतिहासिक उत्सर्जन में कम योगदान दिया है।
स देवराज सिंह चैहान