आदित्य-एल1 से भारत को क्या हासिल होगा!

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चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर 5 अगस्त 2023 को चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के एक सप्ताह बाद ही भारत ने सूर्य के अध्ययन के लिए एक मिशन लान्च किया था। 06 जनवरी 2024 को ये अपने लक्ष्य पर पहुंच गया है, जहां से ये सूर्य का अध्ययन करेगा। इस सफलता पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर पोस्ट कर बधाई दी। उन्होंने लिखा कि भारत ने एक और उपलब्धि हासिल कर ली है।

पीएम ने लिखा, ‘‘सूर्य का अध्ययन करने के लिए भारत का पहला आदित्य-एल1 अपने गंतव्य तक पहुंच गया है। यह दिखाता है कि कैसे हमारे वैज्ञानिकों के प्रयास मुश्किल और पेचीदा अंतरिक्ष अभियानों को हकीकत में बदल रहे हैं।“ उन्होंने लिखा, ‘‘हम मानवता के हित के लिए विज्ञान की नई सीमाओं को आगे बढ़ाना जारी रखेंगे।“

वहीं इसरो चीफ एस सोमनाथ ने कहा, ‘‘हमारे ग्राउंड स्टेशन ने अच्छा काम किया है। आनबोर्ड सभी इंस्ट्रूमेंट्स ने अच्छी तरह से काम किया और एग्रो रिदम भी अच्छा है। मुश्किल गणितीय गणना भी अच्छे से हो पाई।“ उन्होंने बताया कि इस मिशन की लाइफ़ पांच साल से ज्यादा होनी चाहिए, क्योंकि इसमें 100 किलोग्राम से ज्यादा ईंधन है। सोमनाथ ने कहा कि इस मिशन के बाद इसरो वीनस, मार्स, जुपिटर, नेपच्यून और प्लूटो जैसे ग्रहों पर भी भारतीय मिशन भेजे जाएंगे।

भारत का ये पहला सूर्य मिशन है और इसके द्वारा अंतरिक्ष में एक आब्ज़र्वेटरी स्थापित की जाएगी जो पृथ्वी के सबसे नज़दीक इस तारे की निगरानी करेगी और सोलर विंड जैसे अंतरिक्ष के मौसम की विशेषताओं का अध्ययन करेगी। हालांकि सूर्य के अध्ययन वाला ये पहला मिशन नहीं है। इससे पहले नासा और यूरोपियन स्पेस एजेंसी (ईएसए) ने भी इसी मक़सद से सूर्य मिशन भेजे हैं।

आदित्य-एल1 लान्च हुआ
संस्कृत और हिंदी में आदित्य का अर्थ सूर्य होता है। ये अंतरिक्ष यान शनिवार दो सितम्बर 2023 को श्रीहरिकोटा से भारतीय समयानुसार सुबह 11ः50 बजे अंतरिक्ष में रवाना हुआ था। श्रीहरिकोटा देश का प्रमुख उपग्रह प्रक्षेपण केंद्र है और ये चेन्नई से 100 किलोमीटर उत्तर में स्थित है।

सूर्य तक पहुंचने में लगा समय
ये अंतरिक्ष यान असल में सूर्य के पास नहीं जाएगा। जहां आदित्य एल1 पहुंचा है उसकी दूरी पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर है। यह दूरी पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी की चार गुना है लेकिन सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी का बहुत मामूली, लगभग 1ः ही है। पृथ्वी से सूर्य की दूरी 15.1 करोड़ किलोमीटर है। लान्च से लेकर एल1 (लैंगरैंज प्वाइंट) तक पहुंचने में आदित्य एल-1 को चार महीने से ज्यादा का वक्त लगा है। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर सूर्य वहां से इतनी दूर है तो इतनी मशक्कत क्यों की जा रही है?

लैगरेंज प्वाइंट क्या है?
मिशन में जिस एल1 का नाम दिया जा रहा है वो लैगरेंज प्वाइंट है। यह अंतरिक्ष में एक ऐसी जगह है, जहां सूर्य और पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल संतुलित होता है। यहां एक किस्म का न्यूट्रल प्वाइंट विकसित हो जाता है जहां अंतरिक्ष यान के ईंधन की सबसे कम खपत होती है। इस जगह का नाम फ्रांसीसी गणितज्ञ जोसेफ़ लुईस लैगरेंज के नाम पर रखा गया है जिन्होंने इस बिंदु के बारे में 18वीं सदी में खोज की थी।

आदित्य एल1 मिशन का मक़सद
भारतीय अंतरिक्ष यान कुल सात पेलोड्स लेकर गया है और सूर्य के सबसे बाहरी सतह का अध्ययन करेगा जिसे फ़ोटोस्फ़ेयर और क्रोमोस्फ़ेयर के नाम से जाना जाता है। आदित्य एल1 इलेक्ट्रोमैग्नेटिक और पार्टिकिल फ़ील्ड डिटेक्टरों के माध्यम से सतह पर ऊर्जा और अंतरिक्ष की हलचलों को दर्ज करेगा। ये अंतरिक्ष के मौसम और अंतरिक्ष की हलचलों का अध्ययन करेगा और उनके होने के कारणों को समझने की कोशिश करेगा जैसे सोलर विंड यानी सौर प्रवाह।

इसी सोलर विंड की वजह से पृथ्वी पर उत्तरी और दक्षिणी प्रकाश की घटनाएं होती हैं। साथ ही ये इलेक्ट्रोमैग्नेटिक विचलनों का भी अध्ययन करेगा। अपनी अंतिम कक्षा में पहुंचने के बाद इस आब्ज़र्वेटरी को सूर्य स्पष्ट और लगातार नज़र आएगा। इसरो के अनुसार, ‘‘इससे सौर हलचलों को करीब से अध्ययन करने और रियल टाइम में इसका अंतरिक्ष के मौसम पर क्या असर पड़ता है, इसके बारे में जानने में मदद मिलेगी।’’ इससे विकिरण का भी अध्ययन हो सकेगा जो कि पृथ्वी तक आते आते वातावरण की वजह से फ़िल्टर हो जाती है।

अपने विशेष स्थान से आब्ज़र्वेटरी के चार उपकरण सीधे सूर्य पर नज़र रखेंगे और बाकी तीन उपकरण लैगरेंज प्वाइंट एल1 के आसपास क्षेत्रों और कणों का अध्ययन करेंगे, जो हमें अंतरग्रहीय अंतरिक्ष में सौर हलचलों के बारे में अधिक जानकारी देंगे। इसरो को उम्मीद है कि यह मिशन कुछ ऐसी अहम जानकारियां देगा जिससे सूर्य के बारे में हमारी समझदारी बेहतर होगी, जैसे कि कोराना हीटिंग, कोरोनल मास इजेक्शन, सोलर फ़्लेयर और इन सबकी विशिष्टताएं।

आदित्य एल1 मिशन की लागत
भारत सरकार ने 2019 में इस प्रोजेक्ट को मंज़ूरी दी थी, जिसकी लागत 4.6 करोड़ डालर के क़रीब थी। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ने कुल खर्च की विस्तृत जानकारी अभी जारी नहीं की है। इस प्रोब को पांच साल तक अंतरिक्ष में रहने लायक बनाया गया है।

इसरो डीप स्पेस मिशन के लिए कम ताक़तवर राकेट का इस्तेमाल करता है, आगे की यात्रा के लिए गुरुत्वाकर्षण बल का सहारा लेता है। इससे चंद्रमा, मंगल आदि गंतव्यों तक पहुंचने में समय अधिक लगता है लेकिन इससे भारी राकेट के लिए जो खर्च लगता है वो काफ़ी कम हो जाता है। इसी वजह से भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ने अपेक्षाकृत कम बजट में हाल ही में कुछ बड़ी सफलताओं को हासिल किया है।
मानवरहित चंद्रयान-3 पिछले हफ़्ते ही चंद्रमा की सतह पर उतरा, इसके साथ ही भारत अमेरिका, रूस और चीन के बाद चैथा देश बन गया जिसने

अपने मिशन को चंद्रमा पर सफलतापूर्वक उतारा है। साल 2014 में मंगल की कक्षा में अंतरिक्ष यान भेजने वाला भारत पहला एशियाई देश बना था और अगले साल पृथ्वी की कक्षा में तीन दिन के एक मानवयुक्त मिशन को भेजने की योजना बना रहा है।

स भाव्या सिंह