श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार तेज गर्मी या प्रलय आने पर सांवर्तक सूर्य अपनी प्रचंड किरणों से पृथ्वी, प्राणी के शरीर, समुद्र और जल के अन्य स्रोतों से रस यानी नमी खींचकर सोख लेता है। नतीजतन उम्मीद से ज्यादा तापमान बढ़ता है, जो गर्म हवाएं चलने का कारण बनता है। यही हवाएं लू कहलाती हैं। परंतु अब यही हवाएं कई विश्व के अनेकों को ‘ऊष्मा-द्वीप’ (हीट आइलैंड) में बदल रही हैं।
भारत में भी राजस्थान, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, हिमाचल प्रदेश और मध्यप्रदेश में पारा ग्रीष्म ऋतु में 43 से 47 डिग्री के बीच पहुॅंच जाता है। राजस्थान के बाड़मेर में दिन का तापमान 48 डिग्री और हिमालय की शीतल घाटी कश्मीर में गरम हवाओं के चलते तापमान 34 डिग्री तक पहुंच जाता है। आमतौर से गरम हवाएं तीन से आठ तीन चलती थीं और एक-दो दिन में बारिश हो जाने से तीन-चार दिन राहत रहती थी, लेकिन पिछली बार गरम हवाएं चलने की निरंतरता बनी हुई थी। जिसने कई शहरों को ऊष्मा-द्वीप में बदलकर रहने लायक नहीं रहने दिया था। इसके प्रमुख कारणों में शहरीकरण का बढ़ना और हरियाली का क्षेत्र घटना है।
ज्यादातर उष्मा-द्वीप घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों में आमद दर्ज कराते हैं। ऐसे इलाकों में बाहरी क्षेत्रों की तुलना में अधिक तापमान का सामना करना पड़ता है। ऊंची इमारतें, सीसी की सड़के, पैदलपथ और अन्य बुनियादी ढांचागत विकास इसके लिए दोषी हैं। यह विकास जल निकायों जैसे प्राकृतिक परिदृष्यों की तुलना में सूर्य की गर्मी को अधिक अवषोशित कर, फिर इस गर्मी का उत्सर्जन करते हैं। ऐसे में हरियाली कम होने के कारण ये उच्च ताप वाले क्षेत्र उष्मा-द्वीप में परिवर्तित हो जाते हैं। इन क्षेत्रों में दिन का तापमान लगभग 1-7 डिग्री और रात्रि का तापमान लगभग 2-5 डिग्री तक बढ़ जाता है। इस तापमान के बढ़ने के कारणों में कारों और अन्य वाहनों का दिन-रात आग उगलते रहना भी माना जा रहा है। एसी और फ्रिज भी निरंतर कार्बनडाइ आॅक्साइड उगल रहे हैं। वैसे सामान्य स्थिति में द्वीप का अर्थ समुद्री या नदी-घाटियों में पानी से घिरे उस ऊंचे स्थल से लिया जाता है, जिसके चारों ओर जल भरा होता है। लेकिन अब उष्मा-द्वीप वह शहरी इलाके कहलाने लगे हैं, जो हर वर्ष बड़े तापमान से झुलसते हैं।
सीएसई ने देश में अलग-अलग जलवायु वाले नौ शहरों के अपने अध्ययन में पाया था कि जयपुर जैसे शहर में ज्यादा तापमान वाले दिनों में शहर का 99.52 प्रतिशत हिस्सा गर्म हवाओं के केंद्र में आकर ऊष्मा-द्वीप बन जाता है। सतत आवास कार्यक्रम (सस्टेनेबल हैबिटैट प्रोग्राम) के निदेशक रजनी सरीन के अनुसार, हीट सेंटर उस क्षेत्र को कहते हैं जहां जमीनी सतह का तापमान (एलएसटी) छह साल या उससे अधिक समय में बार-बार मैदानी इलाकों में 45 डिग्री से ऊपर दर्ज किया जा रहा है। महानगरों में हरियाली और जल-संरचनाओं का क्षेत्र कम होने से हीट सेंटर का विस्तार हो रहा है। खासतौर से शहरों में जो तत्व हरियाली और अद्रता बनाए रखते थे, जिनमें तालाब, नदी-झीलें शामिल हैं का अस्तित्व सिमटता जा रहा है। यह जलभराव गर्मी से बचाव करता था। इनके सिमटने से शहरों में और शहरों के आस-पास बंजर भूमि और ईंट, सीमेंट, कंक्रीट के जंगल बढ़ते जा रहे हैं। जो गर्मी बढ़ाने का काम कर रहे हैं।
सीएसई ने नागपुर, अहमदाबाद, चेन्नई, पुणे, जयपुर, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता और भुवनेश्वर में यह सर्वेक्षण किया है। लेकिन जिन शहरों में इस नजरिए से सर्वे नहीं हो पाया है, वे भी ऐसे ही हालातों के शिकार हो सकते है?
मानव निर्मित प्रदूषण से जुड़ी इस आपदा के कारणों में आधुनिक विकास और बढ़ता शहरीकरण है। इन्हीं कारणों से हवाएं आवारा होकर लू का रूप लेने लगी हैं। लेकिन हवाएं भी भला आवारा होती हैं ? वे तेज, गर्म व् प्रचंड होती हैं। जब प्रचंड से प्रचंडतम होती हैं तो अपने प्रवाह में समुद्री तूफान और आंधी बन जाती हैं। सुनामी जैसे तूफान इन्हीं आवारा हवाओं के दुष्परिणाम हैं।
अमेरिका के नेशनल ओसियानिक एंड एटमाॅसफेरिक एडमिनिस्ट्रेशन की रिपोर्ट के अनुसार भारत ही नहीं दक्षिण एशिया के कई देश गरम हवाओं से जूझ रहे हैं। इन देशों में गरम हवाएं चलने की आशंका 45 गुना बढ़ गई है। इन देशों में भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और म्यांमार शामिल है। वियतनाम में तो हालात इतने बद्तर हो गए थे कि गर्मी की वजह से कई तालाब पूरी तरह सूख गए और लाखों टन मछलियां मर गई। सरकार ने लोगों को घरों में रहने की हिदायत दी है। पश्चिम एशिया के देश सीरिया, इजराइल, फिलिस्तीन, जाॅर्डन और लैबनान में गरम हवाएं पांच गुना बढ़ीं। एशिया में घातक गरम हवाएं लगातार चलने का यह तीसरा वर्ष था। इसकी एक वजह अलनीनो भी मानी जा रही है। प्रशांत महासागर से आने वाली गरम हवाओं की वजह से दुनिया में गरम हवाएं चल रही हैं। अमेरिका के आयोबा राज्य में गरम हवाओं के तूफान से ग्रीन फील्ड नगर में कई मौतें हो गई थीं। इस बवंडर ने शहर के एक बहुत बड़े हिस्सों को पूरी तरह तबाह कर दिया था।
लू और प्रचंड गर्मी के बीच भी एक अंतर होता है। गर्मी के मौसम में ऐसे क्षेत्र जहां तापमान, औसत तापमान से कहीं ज्यादा हो और पांच दिन तक यही स्थिति यथावत बनी रहे तो इसे ‘लू’ कहने लगते हैं । मौसम की इस असहनीय विलक्षण दशा में नमी भी समाहित हो जाती है। यही सर्द-गर्म थपेड़े लू की पीड़ा और रोग का कारण बन जाते हैं। किसी भी क्षेत्र का औसत तापमान, किस मौसम में कितना होगा, इसकी गणना एवं मूल्यांकन पिछले 30 साल के आंकड़ो के आधार पर की जाती है। वायुमंडल में गर्म हवाएं आमतौर से क्षेत्र विशेष में अधिक दबाव की वजह से उत्पन्न होती हैं। वैसे तेज गर्मी और लू पर्यावरण और बारिश के लिए अच्छी होती हैं। अच्छा मानसून इन्हीं आवारा हवाओं का पर्याय माना जाता है, क्योंकि तपिश और बारिश में गहरा अंतर्सबंध है।
हवाएं गर्म या आवारा हो जाने का प्रमुख कारण ऋतुचक्र का उलटफेर और भूतापीकरण (ग्लोबल वार्मिंग) का औसत से ज्यादा बढ़ना है। इसीलिए वैज्ञानिक दावा कर रहे हैं कि इस बार प्रलय धरती से नहीं आकाशीय गर्मी से आएगी। आकाश को हम निरीह और खोखला मानते हैं, किंतु वास्तव में यह खोखला है नहीं। भारतीय दर्शन में इसे पांचवां तत्व यूं ही नहीं माना गया है। सच्चाई है कि यदि परमात्मा ने आकाश तत्व की उत्पत्ति नहीं की होती, तो संभवतः आज हमारा अस्तित्व ही नहीं होता। हम श्वास भी नहीं ले पाते। पृथ्वी, जल, अग्नि और वायु ये चारों तत्व आकाश से ऊर्जा लेकर ही क्रियाशील रहते हैं। ये सभी तत्व परस्पर परावलंबी हैं। यानी किसी एक तत्व का वजूद क्षीण होगा तो अन्य को भी छीजने की इसी अवस्था से गुजरना होगा।
प्रत्येक प्राणी के शरीर में आंतरिक स्फूर्ति एवं प्रसन्नता की अनुभूति आकाश तत्व से ही संभव होती है, इसलिए इसे बह्मतत्व भी कहा गया है। अतएव प्रकृति के संरक्षण के लिए सुख के भौतिकवादी उपकरणों से मुक्ति की जरूरत है। क्योंकि हम देख रहे हैं कि कुछ एकाधिकारवादी देश एवं बहुराष्ट्रीय कंपनियां भूमंडलीकरण का मुखौटा लगाकर ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन से दुनिया की छत यानी ओजोन परत में छेद को चैड़ा करने में लगे हैं। यह छेद जितना विस्तृत होगा वैश्विक तापमान उसी अनुपात में अनियंत्रित व असंतुलित होगा। नतीजतन केवल हवाएं ही आवारा नहीं होंगी, प्रकृति के अन्य तत्व मचलने लग जाएंगे। जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति भी बढ़ रही है और जलीय स्रोतों पर दोहन का दबाव बढ़ता जा रहा है। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में प्रकृति से उत्पन्न कठिन हालातों के साथ जीवनयापन की आदत डालनी होगी तथा पर्यावरण संरक्षण पर गंभीरता से ध्यान देना होगा।
प्रमोद भार्गव