वर्षों से व्यक्तियों की पहचान के लिए उंगलियों के निशान की मदद ली जाती रही है। बैंक, जीवन बीमा आदि अनेक स्थानों पर उंगलियों या अंगूठे के निशान लिए जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि फिंगरप्रिंट विज्ञान का आरंभ प्राचीन काल में एशिया में हुआ था। भारतीय सामुद्रिक शास्त्र में शंख, चक्र तथा चापों का विचार भविष्य गणना में किया जाता रहा है। चीन में दो हजार वर्ष से भी पहले फिंगरप्रिंट का उपयोग व्यक्ति की पहचान के लिए होता था।
आधुनिक फिंगरप्रिंट विज्ञान का जन्म हम सन 1823 से मान सकते हैं, जब पोलैंड स्थित ब्रेसला विश्वविद्यालय के प्राध्यापक जोहान एवेंजेलिस्टा परकिंजे ने फिंगरप्रिंट के स्थायित्व को स्थापित किया था। वर्तमान फिंगरप्रिंट प्रणाली का प्रारंभ 1858 में इंडियन सिविल सर्विस के सर विलियम हरशेल ने बंगाल के हुगली जिले में किया था। 1892 में प्रसिद्ध अंग्रेज वैज्ञानिक सर फ्रांसिस गाल्टन ने फिंगरप्रिंट पर अपनी एक पुस्तक प्रकाशित की थी जिसमें उन्होंने हुगली के सब-रजिस्ट्रार श्री रामगति बंद्योपाध्याय द्वारा दी गई सहायता के लिए कृतज्ञता प्रकट की थी। उन्होंने फिंगरप्रिंट का स्थायित्व सिद्ध करते हुए उनके वर्गीकरण तथा उनका अभिलेख रखने की एक प्रणाली बनाई जिससे संदिग्ध व्यक्ति की ठीक से पहचान हो सके। किंतु यह प्रणाली कुछ कठिन थी। दक्षिण प्रांत (बंगाल) के पुलिस इंस्पेक्टर जनरल सर ई. आर. हेनरी ने उक्त प्रणाली में सुधार करके फिंगरप्रिंट के वर्गीकरण की सरल प्रणाली विकसित की। इसका वास्तविक श्रेय पुलिस सब-इंस्पेक्टर श्री अजीजुल हक को जाता है, जिन्हें सरकार ने 5000 रुपए का पुरस्कार भी दिया था। इस प्रणाली की अचूकता देखकर भारत सरकार ने 1897 में फिंगरप्रिंट द्वारा पूर्व दंडित व्यक्तियों की पहचान के लिए विश्व का प्रथम फिंगरप्रिंट कार्यालय कलकत्ता में स्थापित किया था।
फिंगरप्रिंट द्वारा पहचान दो सिद्धांतों पर टिकी है। एक तो यह कि दो व्यक्तियों के फिंगरप्रिंट कभी एक-से नहीं हो सकते और दूसरा यह कि व्यक्तियों के फिंगरप्रिंट जीवन भर ही नहीं अपितु जीवनोपरांत भी नहीं बदलते।
अतः किसी भी विचाराधीन फिंगरप्रिंट को किसी व्यक्ति के फिंगरप्रिंट से तुलना करके यह निश्चित किया जा सकता है कि विचाराधीन फिंगरप्रिंट उसके हैं या नहीं। घटनास्थल की विभिन्न वस्तुओं पर अंकित फिंगरप्रिंट की तुलना संदिग्ध व्यक्ति के फिंगरप्रिंट से करके वह निश्चित किया जा सकता है कि अपराध किसने किया है।
अनेक अपराधी ऐसे होते हैं जो स्वेच्छा से अपने फिंगरप्रिंट नहीं देना चाहते। अतः कैदी पहचान अधिनियम, 1920 द्वारा भारतीय पुलिस को बंदियों के फिंगरप्रिंट लेने का अधिकार दिया गया है। भारत के प्रत्येक राज्य में एक सरकारी फिंगरप्रिंट कार्यालय है जिसमें दंडित व्यक्तियों के फिंगरप्रिंट के अभिलेख रखे जाते हैं।
फिंगरप्रिंट का प्रयोग पुलिस विभाग तक ही सीमित नहीं है, अपितु अनेक सार्वजनिक कार्यों में यह अचूक पहचान के लिए उपयोगी साबित हुआ है। नवजात बच्चों की अदला-बदली रोकने के लिए विदेशों के अस्पतालों में प्रारंभ में ही शिशुओं की पद छाप तथा उनकी माताओं के फिंगरप्रिंट ले लिए जाते हैं।
आम तौर पर उंगलियों के निशान इंसानों के शरीर समेत किसी भी ठोस सतह पर पाए जा सकते हैं। जांच करने वाले फिंगरप्रिंट को तीन वर्गों में बांटते हैं। ये वर्गीकरण उस सतह के प्रकार पर निर्भर करता है, जिन पर वे पाए जाते हैं और देखे जा सकते हैं या अदृश्य रहते हैं।
साबुन, वैक्स तथा गीले पेंट जैसी कोमल सतहों पर पाए जाने वाले उंगलियों के निशान त्रि-आयामी प्लाटिक निशान होते हैं। कठोर सतहों के निशान प्रत्यक्ष या छिपे हुए हो सकते हैं। जब रक्त, धूल, स्याही, पेंट आदि किसी उंगली से या अंगूठे से होकर सतह पर गिरता है तो प्रत्यक्ष या दिखने वाले निशान बनते हैं। ऐसे निशान, चिकनी, खुरदरी, छिद्रयुक्त या बिना छिद्रयुक्त सतहों पर पाए जा सकते हैं।
शरीर से उत्पन्न प्राकृतिक तेल या त्वचा का पसीना किसी दूसरी सतह पर जमा होता है तो छिपे हुए या अदृश्य निशान बनते हैं। इंसानों की उंगलियों की टोपोलाजी के मुताबिक वे किसी सतह के संपर्क में आने पर अनोखे निशान बनाती हैं। लिहाजा अपने अनोखेपन तथा पैटर्न की पेचीदगी के चलते अपराध विज्ञान में व्यक्तिगत पहचान के लिए उंगलियों के निशान सर्वश्रेष्ठ सुराग होते हैं।
अब तक पारंपरिक विधियों में चिकनी या बिना छिद्र वाली सतह पर काला पाउडर डालकर विभिन्न प्रकाशीय तस्वीरें खींचने की विधियों से सफलतापूर्वक उंगलियों के निशान प्राप्त किए जाते थे। लेकिन प्रकाशीय तस्वीरों से जांच की विधियों में कुछ खामियां थीं।
उंगलियों के निशान तलाशने से जुड़ी सभी संभावित खामियों को दूर करने के लिए दुर्गापुर के राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान में भौतिकी विभाग की सूक्ष्म विज्ञान प्रयोगशाला में प्रोफेसर पथिक कुम्भकार के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की एक टीम ने एक विधि विकसित की है।
इस विधि में पारंपरिक विधियों की खामियों को दूर कर स्मार्ट फोन की मदद से उंगलियों के निशान तलाशने के लिए सूक्ष्म प्रौद्योगिकी पर आधारित एक अनोखा पदार्थ विकसित किया गया है।
प्रोफेसर कुम्भकार के अनुसार अपराध विज्ञान समेत विभिन्न शाखाओं में सूक्ष्म विज्ञान तकनीकी के विस्तृत अनुप्रयोग हैं। इनमें उंगलियों के छिपे हुए निशान तलाशना हमेशा महत्वपूर्ण रहा है। हमने तांबा तथा मैंगनीज आधारित एक द्विआयामी जिंक सल्फाइड तैयार किया है। इस पदार्थ का उपयोग उंगलियों के छिपे निशान तलाशने के लिए किया जाता है।
राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दुर्गापुर के निदेशक प्रोफेसर अनुपम बसु के अनुसार यह एक बेहतरीन कार्य है तथा विकास की दिशा में वास्तविक कदम है। इसके द्वारा अपराध वैज्ञानिक कार्यों के लिए उंगलियों के निशान प्राप्त करने में मदद मिलेगी। इस तकनीक में सूक्ष्म पदार्थ का उपयोग किया जाता है, जो तस्वीर को सटीक तथा सुरक्षित बनाता है। प्रोफेसर पथिक तथा उनकी टीम के द्वारा किया गया यह कार्य निश्चित रूप से प्रशंसनीय है, जिसमें सूक्ष्म विज्ञान तथा अपराध वैज्ञानिक जांच के क्षेत्र के लिए भारी संभावना है।
नवनीत कुमार गुप्त