सर्दी, खांसी, बुखार जैसे लक्षण कोरोना वायरस के हैं। मौसम बदलने के साथ अक्सर जुखाम हो जाता है। इनसे बचाव के लिए अनेक आयुर्वेदिक औषधियां हैं, जिनका इस्तेमाल किया जा सकता है। रोग से बचाव के लिए प्रारंभिक अवस्था में कई दवाएं कारगर सिद्ध हुई हैं। इन मौसमी बीमारियों से बचा जाए, ताकि हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बनी रहे। कुछ आयुर्वेदिक औषधियों का परिचय दिया जा रहा है, जिनका इस्तेमाल चिकित्सक की सलाह पर करना ज्यादा बेहतर होगा।
सितोपलादि चूर्ण
सितोपलादि चूर्ण आयुर्वेद शास्त्र की सुप्रसिद्ध सर्वरोग नाशक औषधि है। यह अनुपान भेद से सभी रोगों का नाश करने वाला चूर्ण है। इसके प्रयोग से जीर्ण ज्वर, कास (खंसी), यक्ष्मा (टीबी), श्वांस, स्वर भेद, मंदाग्नि, अरूचि आदि जटिल रोग कुछ समय लगातार सेवन से दूर हो जाते हैं।
मात्रा 4 रत्ती से 2 रत्ती तक शहद, घी, मलाई या पानी के साथ लेना चाहिए। (प्राणाचार्य भवन आयुर्वेदिक संस्थान अलीगढ़ (उ.प्र.)
त्रिकुट चूर्ण
त्रिकुट चूर्ण आयुर्वेद की ऐसी औषधि है, जो आमतौर पर परम्परागत रूप से उपयोग में लाई जाती है। इसमें कटु औषधि ली जाती है। पीपल, सोंठ और कालीमिर्च का चूर्ण समभाग में मिलाकर त्रिकुट चूर्ण बनाया जाता है। बाजार में भी उपलब्ध है।
मात्रा 2 ग्राम शहद के साथ लेना चाहिए।
जय मंगल रस
पुराने बुखार की यह सर्वविदित महौषधि है। यह त्रिदोषघ्न है और ज्वर तथा सेन्द्रिय विष के विकार को शरीर से बाहर निकाल कर दिल और दिमाग में शांति देता है। यह बल, वीर्य की वृद्धि करता है, शरीर को पुष्ट करता है और नए जीवाणुओं की रचना करता है। किसी भी रोग के कारण हुई कमजोरी में इसका सेवन जरूर करना चाहिए।
मात्रा एक-एक गोली सुबह-शाम या दिन में एक बार पुराने बुखार में गिलोय रस और शहद के साथ। बल, वीर्य वृद्धि के लिए मलाई या दूध के साथ। (श्री बैद्यनाथ आयुर्वेद भवन लिमिटेड, नई दिल्ली)
विषम ज्वरान्तक लौह
यह विषम ज्वर (बुखार) की अचूक दवा है। वात, पित्त और कफ से उत्पन्न होने वाले आठ प्रकार के ज्वर एकतरा, चौथ्यि, तिजारी, पानी का बुखार आदि सभी बुखार के लिए है। यह कामला, पाण्डु, शोथ, प्रमेह, ग्रहणी, आमदोष, कफ, खांसी, श्वांस, मूत्रकृच्छ और अतिसार आदि की अच्छी दवा है।
मात्रा 1 से 2 रत्ती (125 से 250 मिलीग्राम) पीपल चूर्ण, भुनी हुई हींग और सेंधा नमक के साथ। ऊपर से दूध पीना चाहिए अथवा रोगानुसार अनुपान।
(श्री बैजनाथ आयुर्वेद भवन, नईदिल्ली)
च्यवनप्राश अवलेह
यह रसायन अतीव प्रशस्त्र है। यह सप्त धातुओं को पुष्ट करने, उन्हें बली और समर्थ बनाने का कार्य करता है। बुढ़ापे के कारण अत्यंत दुर्बल च्यवन महषि को इसके सेवन से पूर्ण तेज और ओज के साथ जवानी वापस मिली थी। इसी कारण इसका च्यवनप्राश नाम पड़ा था।
खांसी, दमा, हृदय रोग, रक्तवात, विषम ज्वर और स्वरसाद में इसके लगातार सेवन से बड़ा लाभ होता है। 5 से 15 ग्राम मात्रा में इसका सेवन कर सकते हैं। लेकिन पथ्य का आचरण भी करना चाहिए तो बेहतर होता है। (आर्य वैद्यशाला कोट्टकल, केरल)
श्वासकासचिन्तामणि रस
पारदं माक्षिकं स्वर्णं समांशं परिकल्पयेत। पारदार्द्ध मोक्तिकांच सूताद्धिगुणगन्धकम्।। अभ्रश्चैव यथा योज्यं व्योम्नो द्विगुणलौहकम्। कण्टकारीरसेनैव छागीदुग्धैः पृथक् पृथक्। मधुयष्टिरसेर्नव पर्णपत्ररसेन च।। भावयेत्सप्तवारश्च द्विगुंजां वटिकां भजेत। पिप्पलीमधुसंयुक्तां श्वासकासविमार्दिनीम्।।
पारा, सोनामाखीभस्म और सोनाभस्म यह प्रत्येक औषधि एक एक भाग, मोती आधा भाग, गंधक 2 भाग, अभ्रक भस्म 2 भाग और लौहभस्म 4 भाग लेवें। इन सब औषधियों को एकत्र खरल करके कटेरी के रस, बकरी के दूध, मुलैठी के रस और पानों के रस में अलग अलग सात सात भावना देकर दो दो रत्ती की गोली बना लेवें। पीपल के चूर्ण और शहद के साथ इस औषधि के सेवन करने से खांसी और श्वांस दूर होते हैं। इसको श्वासकासचिन्तामणि रस कहते हैं।
श्वासकुठार रस
रसं गन्धं विपं टंकं शिलोपणकटुत्रयम्। सर्वे संमर्द्ध दातव्यो रसः श्वांसकुठारकः।। वातश्लेष्मसमुद्भुतं श्वांस कासं क्षयं जयेत्।।
पारा, गंधक, विप, सुहागा, मैनशिल, काली मिर्च और त्रिकुटा यह सब औषधि समान भाग लेकर पीसकर सेवन करने से वात कफोत्पन्न रोग, श्वांस, खांसी और क्षयरोग नष्ट होते हैं। इसको श्वासकुठार रस कहते हैं।
कहॉं, कैसे प्रभावित करता है कोरोना वायरस एक आयुर्वेदिक दृष्टिकोण
अब हमें कोरोना के साथ जीवन जीना सीखना होगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ऐसी चेतावनी दी है। तो क्या दुनिया में कोविड-19 की महामारी चलती ही रहेगी। आज समूचे विश्व में महामारी के चलते लाकडाउन से अर्थव्यवस्था चरमरा गई है। कहीं मौत का तांडव, कहीं भूख से परेशान, तो घरों में कैद हुए लोग मानसिक तनाव का शिकार हो गए हैं।
कोविड-19 की रोकथाम के लिए अनेक शोध अनुसंधान चल रहे हैं और जल्द ही फैलती महामारी पर काबू पाया जा सकेगा। फिर भी कोरोना के सुप्त वायरस बने रहने की आशंका व्यक्त की जा रही है। जैसे-जैसे कोरोना वायरस फैल रहा है, उसके अलग-अलग लक्षण देखे जा रहे हैं। कोरोना वायरस से मुक्त मरीजों पर फिर से वायरस का संक्रमण देखा जा रहा है, तो क्यों और कैसे?
भारत में कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों का इलाज चल रहा है। एलोपैथिक दवाओं के साथ आयुर्वेदिक औषधियों का उपयोग उपचार में किया जा रहा है, जो बेहतर साबित हुआ है। आयुर्वेदिक औषधियॉं आखिर क्यों दी जाएं, इस पर पूर्व रिसर्च फेलो आई.एस.एम. प्रोजेक्ट, भारत सरकार, कॉलेज ऑफ फार्मेसी, नई दिल्ली के चिकित्सक बी.पी. ताम्रकार ने कोविड-19 के संक्रमण की प्रकृति, शरीर पर उसके प्रभाव एवं उसके निदान के लिए आयुर्वेदिक औषधियों के प्रयोग के बारे में बताया है।
तुलसी काढ़ा
आयुर्वेद में अनेक औषधियॉं हैं, जो मौसमी रोगों के लिए हितकारी होती हैं। क्योंकि इनका साइड इफेक्ट शरीर पर नहीं होता। रोग प्रतिरोधक क्षमता बनी रहे, इसके लिए आयुष मंत्रालय ने एक दिव्य काढ़ा के सेवन की सलाह दी है, जो कोरोना वायरस के मरीजों को दिया गया और उसका बेहतर असर देखने को मिला। आयुष काढ़ा में तुलसी पाउडर 30 ग्राम, काली मिर्च 20 ग्राम, सोंठ 30 ग्राम, दालचीनी 20 ग्राम में चार कप काढ़ा बनाने के लिए इसकी एक चुटकी मात्रा डालें। विशेष जानकारी आयुष मंत्रालय से ली जा सकती है। इसके लिए उसकी साइट में जाकर देख लें या फिर वैद्य की सलाह लें।
कोरोना के नए लक्षण क्यों?
कोरोना वायरस के द्वारा फैलने वाली महामारी है। सर्दी, खांसी, बुखार आदि लक्षण के साथ हमारी शरीर पर आक्रमण करती है। यह इतना तीव्र गति से होता है और शरीर में इस प्रकार से फैलता है कि किसी प्रारंभिक लक्षण में उचित चिकित्सा नहीं करने पर फेफड़े में अवरोध, गले में अवरोध, सांस लेने में तकलीफ तथा फेफड़े में घातक प्रभाव डालता है। जिससे फेफड़ों में ऑक्सीजन की कमी, रक्त परिभ्रमण में विकृति, कहीं-कहीं पर किसी रोगी के फेफड़े में जलन और गलन, हृदय अवरोध और मस्तिष्क अवरोध होता है। इसी के साथ तुरंत रोगी का जीवन समाप्त हो जाता है। हृदय, मस्तिष्क, फेफड़ा के उपरोक्त लक्षण को कंट्रोल करने के लिए त्वरित चिकित्सा की आवश्यकता होती है। यहीं पर तुरंत प्रभावकारी औषधि या चिकित्सा व्यवस्था करना चाहिए। इस अवस्था से निपटने के लिए सभी प्रकार की चिकित्सा व वैज्ञानिक शोध करने में लगे हैं।
रोग प्रतिरोधक क्षमता
कोरोना की चिकित्सा में यह भी देखा गया है कि जिन रोगियों में कोविड-19 का संक्रमण पाया गया है, उस रोगी में यदि वायरस से लड़ने के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता है। ऐसे रोगियों में कोविड 19 का प्रभाव धीरे- धीरे स्वतः खत्म हो जाता है और रोगी स्वस्थ हो जाता है। किन्तु, कम प्रतिरोधक क्षमता वाले रोगी वायरस के प्रभाव को नहीं रोक पाते और वायरस का प्रभाव फेफड़ा, हृदय और मस्तिष्क में घातक प्रभाव डालता है और ऐसे मरीज की मृत्यु हो जाती है। इन दोनों ही स्थितियों को ध्यान रखकर चिकित्सा विशेषज्ञों के द्वारा चिकित्सा अनुसंधान जारी है।
कफ वृद्धि
चिकित्सा व्यवस्था को आधार बनाकर कोविड-19 की चिकित्सा पर विचार करते हैं, जब आयुर्वेदिक दुष्टिकोण से यह रोग वात और कफ की वृद्धि और पित्त की कमी से संबंधित है। इस रोग का प्रभाव मुख्यतः फेफड़ा, हृदय और मस्तिष्क में पड़ता है। अतः इसी के आधार पर कटु, तिक्त, कषाय रस कफ वात शामक, पित्त वर्धक, रसायन द्रव्य, जिनका प्रभाव फेफड़ा, हृदय और मस्तिष्क में शीघ्र होता है, ऐसे द्रव्य उपयोगी हैं। यदि हम कोविड-19 के उत्पत्तिकाल, समय, स्थान और मौसम पर सोचते हैं, तब वात, कफ की अधिकता और पित्त की कमी वाले त्रिदोष सिद्धांत में आयुर्वेद में यही स्थिति पाते हैं। इनमें विकृति होने से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी हो जाती है और कोरोना वायरस का प्रभाव वात, पित्त, कफ की स्थिति के अनुसार दिखता है। इसी क्रम में कोरोना का प्रभाव अलग-अलग स्थानों, अलग-अलग व्यक्तियों में अलग-अलग लक्षणों में नजर आता है। कोरोना से महामारी देशकाल और मानव प्रकृति के आधार पर अलग-अलग है।
एलोपैथ और आयुर्वेद
कोरोना वायरस से संबंधित चिकित्सा एवं अनुसंधान पर विचार चल रहा है। आयुर्वेदिक चिकित्सकों में वात, पित्त, कफ और पंचमहाभूत पर आधारित है, जो कि शरीर की प्रकृति और प्राकृतिक रूप से सृष्टि से संबंधित है। इसमें रोग की चिकित्सा, रोगी का पोषण दोनों एक साथ सम्पन्न होता है। आयुर्वेद की औषधियां व निर्माण प्रक्रिया प्राकृतिक रूप से प्रकृति से संबंधित है। इस कारण आयुर्वेद औषधि से कोरोना वायरस की रोकथाम प्राकृतिक रूप से सम्पन्न होती है। किन्तु, आपातकाल स्थिति में आयुर्वेदिक औषधि कारगर नहीं पाई गई है अब तक। इसलिए कोरोना वायरस का रासायनिक (केमिकल) अध्ययन का करके उसमें जो तत्व मिलता है, उसे आधार बनाकर आयुर्वेदिक औषधियों के रसायन तत्वों का अध्ययन कर हम कोरोना की औषधि आयुर्वेदिक द्रव्यों में खोजें, तब निश्चित रूप से सफलता मिल सकेगी और वह कारगर औषधि साबित होगी। इसी क्रम में यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि चीन में कोरोना वायरस के प्रारंभिक दिनों में एलोपैथी औषधि के साथ चीनी परम्परागत औषधि का उपयोग किया, तब वहॉं कोरोना संक्रमण का नियंत्रण सहज रूप में हुआ है। इसी तरह भारत में भी केरल, गोवा, कर्नाटक, राजस्थान और गुजरात में भी यही तथ्य देखने को मिल रहे हैं। इसी प्रकार कोरोना से बचाव के लिए घरेलू उपचार के रूप में आयुर्वेदिक जड़ी-बूडियों का सहयोगात्मक रूप देखने को मिल रहा है। इसी क्रम में हम एक बात और सोचते हैं कि कोरोना को क्षार या अल्कली बताया जा रहा है, जिससे बाहरी तौर पर बचने के लिए जिन शोधक द्रव्यों का उपयोग किया जा रहा है, उससे संबंधित वनस्पति द्रव्य का उपयोग औषधि के रूप में नैनो टेक्नोलाजी के अनुसार बनाकर प्रयोग करना हितकर होगा।
औषधि अनुसंधान
भारत के वैज्ञानिकों के द्वारा कोरोना के प्राप्त लक्षण पर उपयोगी और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली औषधि पर जो अनुसंधान चल रहे हैं, उसमें आयुर्वेद के मूलभूत सिद्धांत को ध्यान में रखा जाए, तब निःसंदेह लाभ मिल सकता है।
जैसे नीम, अश्वगंधा, पीपली, सोंठ, काली मिर्च, लौंग, चिरायता, हल्दी इसी प्रकार के रसायन और द्रव्य अपने वात, कफ शामक, पित्त वर्धक, जीवाणु नाशक रोग प्रतिरोधक क्षमता वृद्धि प्रभाव अथवा रसायन गुण कर्म से कोरोना की चिकित्सा में निश्चित रूप से उपयोगी होंगे। इसमें अच्छी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह द्रव्य शरीर का पोषण रोग निवारण के साथ करेंगे, जिसमें सप्त धातु का पोषण और ओज वृद्धि होगी। इससे वायरस का दुष्प्रभाव शरीर में नहीं होगा और स्वास्थ्य लाभ भी शीघ्र होगा।
यह अच्छी बात है कि हम बायो केमिकली या भैषेजिक रसायन के आधार पर इन द्रव्यों में विषाणु मारक, रक्तवर्धक, ऑक्सीजन बढ़ाने का कार्य और शरीर के विशेष अंग जैसे फेफड़ा, हृदय, मस्तिष्क के प्रभाव का अध्ययन करके कोरोना की औषधि खोजें, किन्तु औषधि चयन अथवा कार्य का स्वरूप आयुर्वेद के मूलभूत सिद्धांत पर हो, जिससे वायरस का प्रभाव शरीर में पूरी तरह समाप्त हो सके। यह जरूरी है।
कोविड 19 से संक्रमित लोगों में फिर से वायरस संक्रमण के लक्षण देखे जा रहे हैं, जो अत्यंत घातक हैं। अतएव कोविड 19 से रोगमुक्त हुए मरीजों को ऐसी आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन करना चाहिए, जो उसके शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करे, ताकि शरीर में किसी तरह के सुप्त वायरस का खत्मा हो सके।
कोरोना वायरस के साथ अब जीवन जीना होगा, यह भयावह तथ्य है। भय के साथ जीवन बड़ा दुष्कर होगा। ऐसे में आयुर्वेद औषधि जीवन्त बना सकती है, हमारे जीवन को। इसलिए जरूरी है कि हम प्राकृतिक परिवेश को बनाए रखें, प्रकृति के साथ चलें, ताकि हम बाहरी रोगों से बचकर सुखी जीवन जी सकें।
सडॉ. बी.पी. ताम्रकार
एलआईजी 140, फेज-2, कबीर नगर, रायपुर, छ.ग.