प्रजातांत्रिक शक्ति और नदी के प्राकृतिक संसाधनों की बहाली

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मनुष्य की विकास यात्रा का इतिहास बताता है कि मानव सभ्यता का विकास नदियों के किनारे हुआ है। यह विकास चाहे भारत में हुआ हो या मिश्र में, या अन्य और किसी जगह, या बिहार में, सब जगह उसका आधार नदी और उसका कछार ही रहा है। मानव सभ्यता का यह विकास, नदी और मनुष्य के अन्तरंग सम्बन्ध का जीता-जागता प्रमाण है लेकिन यह सम्बन्ध नदी और मनुष्य के बीच क्यों बना और क्यों विकास की धारा नदी के किनारे ही प्रवाहित हुई, पर बहुत ही कम लोगों ने विचार किया है। उससे जुडा साहित्य भी सहजता से उपलब्ध नही है। आइए उस संभावना को समझने का प्रयास करें।
सभी लोग सहमत होंगे कि मनुष्य ऐसी जगह रहना और बसना पसन्द करेगा जहाँ उसका जीवन सुरक्षित हो। उसे, यथासंभव सुख मिले। उसे, आनन्द की अनुभूति हो। स्वच्छ पानी मिले। भोजन और आजीविका का सहजता से बन्दोवस्त हो सके। शुद्ध पर्यावरण मिले। मनोभावों और कल्पनाओं को प्रगट करने का सुअवसर मिले। कला और साहित्य का विकास हो। इत्यादि इत्यादि। लगता है, जब यह सब जब नदी के किनारे उपलब्ध हुआ तो लोग नदी के किनारे बस गए। लोग बसे तो राज्य स्थापित हो गए। उनकी राजधानियाँ बस गईं। नदी और उसके कछार की कुदरती सम्पदा और उस पर आधारित संभावनाओं के आधार पर समाज की गतिविधियाँ संचालित हुईं और जल्दी ही भारत सोने की चिडिया बन गया। इसी कारण, कृतज्ञ समाज के लिए नदी पूज्यनीय हो गई। पूजा-पाठ के माध्यम से समाज उन्हें याद करने लगा। उनकी प्ररिक्रमा होने लगी। उनके किनारे मेले लगने लगे।
भारत की नदियों की मौजूदा स्थिति को देख कर प्रश्न उठता है कि नदियों को लेकर वह पुराना सोच, वह पुराना सम्बन्ध कहाँ गया और क्यों खो गया? कौन सी गडबडी हुई जिसके कारण नदी और समाज के सम्बन्ध में खटास और बेरुखी आ गई। निर्भरता को हासिए पर ला दिया? वो कौन सी ताकतें हैं या थीं जिन्होंने नदी और समाज के बीच खाई पैदा की? आज, वह अन्तरंग सम्बन्ध और नाता क्यों अप्रासंगिक हो गया? समाज ने बदलाव का प्रतिरोध क्यों नहीं किया? प्रजातंत्र में समाज कैसे असहाय हो गया। ये वे सवाल हैं जिनका उत्तर दिए बिना उस अन्तरंग सम्बन्ध को समझना और नदी की अविरलता तथा निर्मलता को बहाल करना संभव नही है। कहीं यह नदी के प्राकृतिक संसाधनों के कारण तो नहीं था? आइए! सिलसिलेवार बदलाव और उसके क्रम को समझें। चेतना यात्रा के साथियों को उनका लक्ष्य याद दिलायें।
समय के साथ नदी के कछार में बसाहट के अलावा अनेक गतिविधियों का विकास हुआ। भारत में अंग्रेजों के काबिज होने के पहले तक अर्थात सोलहवीं सदी तक वह बदलाव कुदरत के साथ लक्ष्मण रेखा का सम्मान करता बदलाव था। अंग्रेजों के देश पर काबिज होने के बाद नदी के प्रति विदेशी सरकार का नजरिया बदला। उन्होंने पानी पर अपना अधिकार कायम किया। पानी जो जीवन अमृत था, अंग्रेजों के लिए राजस्व कमाने का साधन बन गया। पानी के मामले में बात करना सरकारी काम में हस्तक्षेप कहलाने लगा और दण्डनीय हो गया। काम की नई संस्कृति विकसित होने लगी।
विकास के नाम पर कछार का कुदरती चरित्र बदला जाने लगा। कुदरती चरित्र के बदलने के कारण विकास की पर्यावरण विरोधी पृवत्ति मुख्य धारा में आ गई। भारतीय नदियों के चरित्र की अनदेखी होने लगी। नदी और उसके कछार में उसके दुश्परिणाम सामने आने लगे। नदीतंत्र सहित सारा कछार पर्यावरण बदहाली के मार्ग पर चल पघ। नदी तंत्र का कुदरती ड्रेनेज सिस्टम छिन्न-भिन्न होने लगा। इन सब हस्तक्षेपों के कारण नदी और उसका कछार शनै-शनै अपनी भूमिका खोने लगा। अंग्रेजों के वर्चस्व के कारण समाज मौन हो गया। भूमिका के बदलने से नदी के उपकार धीरे-धीरे समाज से दूर जाने लगे। आजादी के बाद सत्ता का स्वरूप बदला पर नदी की अस्मिता को नुकसान पहुँचाने वाले काम यथावत चालू रहे।
पर्यावरणीय मामलों में उन्होंने लक्ष्मण रेखा लाँघी। नदी का कछार, अचानक कैचमेंट और कमाण्ड में बदल गया। पानी के असमान वितरण की कहानी प्रारंभ हो गई। कैचमेंट में पानी का टोटा प्रारंभ हुआ और बढ़ते प्रदूषण के कारण नदियाँ मैलागाडी बनने लगीं। पानी अपना अमरत्व खोने लगा। चूँकि समाज अपनी बात कहना भूल चुका था इसलिए इसलिए सत्ता ने नदी और उसके कछार की बिगड़ती सेहत की चिन्ता नहीं की। हालातों को बदतर होने दिया।
नदी चेतना यात्रा उस बिसराए समीकरण को फिर से पटरी पर लाने की एक्सरसाईज है। छोटी ही सही पर नदी के संसाधनों को समाज तक लाभों के रुप में पहुँचाने की कोशिश है। समाज के हितों की रक्षा की कोशिश है। समाज को जोड़ने और पानी तथा लाभों पर अधिकारिता प्रदान करने की कोशिश है। इस मामले में बिहार में चार नदियों पर चलाई जा रही नदी चेतना यात्रा अनूठी है।
ऐसा संभवतः पहली बार हो रहा है। इसी कारण उसकी चुनौती बेहद गंभीर है। नदी चेतना यात्रा के साथियों को उन सवालों के उत्तर देने होंगे जो नदी कछार के कुछ लोग इस यात्रा में उनकी सक्रिय भागीदारी और यात्रा के औचित्य को लेकर सवाल खड़े करेंगे। याद रहे, अभी भी, पर्यावरण शिक्षित लोगों तथा कार्यशालाओं का विषय है। उसे धरातल पर लाने, उसकी औकात बताने और समाज के हितों से जोडने की जिम्मदारी नदी यात्रा के साथियों की है।
आज जब समाज पानी, हवा, मिट्टी, अनाज इत्यादि के प्रदूषण का शिकार हैं, ऐसी हालत में बिहार के पर्यावरण प्रेमियों द्वारा नदी चेतना निकालना और बिहार सरकार का उनको सहयोग प्रदान करना उम्मीद जगाता है। यह ऐसी पहल है जिसमें नदी का समाज, पंचायत और उसकी पानी से जुडी उप-समिति (वार्ड कमेटी) से मिलकर राज से सम्वाद करेगा। समस्या की तह में जावेगा। कारणों की समीक्षा करेगा। समाधान खोजेगा और उन्हें पूरी प्रमाणिकता से पेश करेगा। तभी व्यवस्था उसे सुनेगी। किसी भी अर्थ में नदी चेतना यात्रा पिकनिक नही है। नदी की अस्मिता की बहाली बेहद कठिन काम है। केवल यात्रा करने या चन्द लोगों से अनर्गल बात करने से काम नहीं बनने वाला है। यह कमाई का जरिया भी नहीं है। नदी चेतना यात्रा के संयोजक पंकज मालवीय के लिए यह गंभीर चुनौती है।
पंकज मालवीय कहते हैं कि इस अभियान को समाज और सरकार का सहयोग मिल रहा है। हालात बदल रहे हैं। लोग नदी के कुदरती संसाधन और पर्यावरण को समझने का प्रयास कर रहे है। लेखक को लगता है कि बिहार के सकारात्मक परिवेश और प्रजातांत्रिक पहल में अपनी बात कहने और अपना पानी मांगने के लिए एकजुट होकर नदीतंत्र के समाज को आगे आना होगा। यह सेहत, आजीविका और खुशहाली का अभियान है।
अभियान में समाज को अपना आर्थिक हित खोजना होगा। गौरतलब है कि समाज को अपनी प्रजातांत्रिक ताकत और तार्किक क्षमता को प्रमाणित कर नदी और उसके कछार के कुदरती संसाधनों को बहाल कर अपनी जिंदगी में खुशहाली लाना है। यही समाज की अपेक्षा होना चाहिए। नदी चेतना यात्रा को इसी अपेक्षा को पूरा करने के लिए समाज को मन बचन और कर्म से तैयार करना है। पंकज मालवीय और उनकी टीम की यही जिम्मेदारी है।
कृष्ण गोपाल व्यास

नैनो प्रौद्योगिकी से स्वच्छ एवं सुरक्षित पेयजल

नैनो प्रौद्योगिकी द्वारा अब किसी भी स्रोत से साफ पेयजल तैयार कर पाना संभव हो गया है। वस्तुतः प्रचलित विधियों में पानी के शुद्धिकरण में जिन फिल्टरों का उपयोग होता है, वे स्वंय ही बैक्टीरिया आदि के कारण दूषित हो जाते हैं और फिल्टर के छिद्र भी बंद हो जाते हैं।
नैनो प्रोद्योगिकी की सहायता से ऐसे प्राकृतिक नैनो कण तैयार किए गए हैं, जो पानी में उपस्थित जीवाणुओं को नष्ट तो कर ही देते हैं, साथ ही फिल्टरों को भी साफ करते रहते हैं ऐसी ही एक नैनो विधि से समुद्र का लवणीय (खारा) पानी भी मीठा बनाया जा रहा है। इन नैनो की कीमत भी कम होगी तथा इनसे सतही एवं भू-जल के दूषित होने पर उन्हें पीने योग्य बना लिया जाएगा।
वस्तुतः नैनो विज्ञान अणुओं और परमाणुओं एवं 1-100 नैनोमीटर के कणों के परिचालन से संबंधित ज्ञान एवं इनके विशेष गुणों का उचित उपयोग करने का विज्ञान है। नैनो विज्ञान का क्षेत्र बहुत ही व्यापक है और यह भौतिकी, रसायन, जैविकी, औषधि, यांत्रिकी एवं अन्य वैज्ञानिक धाराओं के बीच की दीवारों को कम करने एवं प्रकृति की गहराइयों पर उचित प्रकाश डालने में सहायक होगा।
नैनो पदार्थों के व्यवहार को वैज्ञानिक विगत लगभग ढाई दशकों से समझने का प्रयत्न कर रहे हैं। अब तक के अनुसंधान परिणामों से वैज्ञानिकों को यही लगता है कि न तो क्वांटम यांत्रिकी और न चिरसम्मत भौतिकी के नियमों से ही इन पदार्थों के व्यवहार को समझा जा सकता है। वस्तुतः नैनो पदार्थ के संसार को संभवतः क्वांटम भौतिकी तथा चिरसम्मत भौतिकी के सम्मिलित नियमों से ही समझा पाना संभव है।
जैसा कि विदित है कि एशिया में आई सुनामी या फिर अमेरिका में आए चक्रवात-ये सभी जिस गंभीर समस्या को जन्म देते हैं, उनमें सबसे ऊपर है पीने के पानी की समस्या। आज संपूर्ण विश्व समुदाय पीने के पानी की त्रासदी से त्रस्त है। हमें ज्ञात है कि पृथ्वी का दो-तिहाई हिस्सा जलाच्छादित है, परंतु इस जलराशि का अधिकांश हिस्सा यानी 97 प्रतिशत तो सागरों में समाया हुआ है, जो लवणीय है और पीने योग्य भी नहीं है। 2 प्रतिशत ध्रुवों में बर्फ के रूप में जमा है। इस प्रकार पीने योग्य मात्रा 1 प्रतिशत ही जल उपलब्ध है और उस पर भी गुणवत्ता का प्रश्नचिन्ह लग जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रतिवेदन के अनुसार, 80 प्रतिशत बीमारियाँ जलजन्य रोगों के कारण होती है।
हमारे देश में जनसंख्या की बेतहाशा वृद्धि के कारण जल की कमी हो गई है। इसमें जल का अत्यधिक उपयोग एवं भौतिकवादी प्रवृत्ति भी एक मुख्य कारक है। वैज्ञानिकों ने समुद्र के लवणीय जल को पेयजल में परिवर्तित करने के भी प्रयास किए हैं। विश्व के अधिकांश क्षेत्रों में जलापूर्ति में लवण अवरोधक बन चुके हैं। अतएव विलवणीकरण एक बहुत ही प्रभावी विधि है। यद्यपि इसमें ऊर्जा की खपत होती है, परंतु पेयजल की प्राथमिकता एवं महत्त्व को देखते हुए यह उपादेय है।
नैनो प्रौद्योगिकी द्वारा अब किसी भी स्रोत से साफ पेयजल तैयार कर पाना संभव हो गया है। वस्तुतः प्रचलित विधियों में पानी के शुद्धिकरण में जिन फिल्टरों का उपयोग होता है, वे स्वंय ही बैक्टीरिया आदि के कारण दूषित हो जाते हैं और फिल्टर के छिद्र भी बंद हो जाते हैं।
नैनो प्रोद्योगिकी की सहायता से ऐसे प्राकृतिक नैनो कण तैयार किए गए हैं, जो पानी में उपस्थित जीवाणुओं को नष्ट तो कर ही देते हैं, साथ ही फिल्टरों को भी साफ करते रहते हैं ऐसी ही एक नैनो विधि से समुद्र का लवणीय (खारा) पानी भी मीठा बनाया जा रहा है। इन नैनो की कीमत भी कम होगी तथा इनसे सतही एवं भूजल के दूषित होने पर उन्हें पीने योग्य बना लिया जाएगा।
कालांतर में नैनो संवेदकों तथा नैनो झिल्लियों-युक्त उपकरणों से कार्बनिक पदार्थों, वायरस, अविषालु धातुओं-युक्त जल का भी शोधन संभव हो सकेगा। इस क्षेत्र में अमेरिका, इजराइल तथा आस्ट्रेलिया के अनुसंधान संस्थान सक्रिय रूप से कार्य कर रहे हैं।
नैनो नलिका (ट्यूब) झिल्ली की जल के विलवणीकरण में उपादेयता
विश्व स्तर पर हो रही जल संसाधनों की कमी, तीव्र गति से हो रही जनसंख्या-वृद्धि, बढ़ता प्रदूषण का कहर तथा जलवायु में हो रहे निरंतर परिवर्तन मानव समुदाय के लिए चिंता का विषय बन चुके हैं। आंकड़े दर्शाते हैं कि विश्व स्तर पर 1.1 अरब लोगों को शुद्ध एवं स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं है तथा 2.4 अरब लोगों में स्वच्छता का अभाव है। एक अनुमान के अनुसार, विश्व की एक-तिहाई जनसंख्या ऐसे देशों में प्रवास करती है, जहां जलाभाव है तथा ऐसी संभावना है कि सन 2025 तक यह संख्या दो-तिहाई हो जाएगी।
इस मंडराते हुए जल संकट तथा इसके समाधान हेतु यह आवश्यक समझा गया कि अपशिष्ट जल उपचार तथा प्रदूषण नियंत्रण हेतु नई प्रौद्योगिकियां विकसित की जाएं। इस समस्या का समाधान वैज्ञानिकों ने नैनो प्रौद्योगिकी से निकाला है। विश्व स्तर पर नवीनतम खोजों के अनुसार, वैज्ञानिकों ने पाया कि कार्बन नैनो नलिकाओं या ट्यूब्स का वियुक्ति-विज्ञान में महत्वपूर्ण अनुप्रयोग हो सकता है। कार्बन नैनो नलिकाओं की खोज तथा फुल्लरीन के संश्लेषण ने अनुसंधान क्षेत्र में नए आयाम स्थापित किए हैं।
यद्यपि जल से लवणों के निष्कासन की परंपरागत कई विधियां हैं, जैसे-उत्क्रम परासरण, बहु अवस्था फ्लैश वाष्पीकरण, बहु प्रभावी आसवन, वाष्प संपीडन और विद्युत अपोहन आदि। इन सभी वर्णित विधियों की कुछ न कुछ सीमाएं हैं, चाहे वे प्रचालन संबंधी हों अथवा मूल्य संबंधी। उत्क्रम परासरण में लवणीय जल अधिक दाब पर अर्द्धपारगम्य झिल्ली के माध्यम से परासरण दाब को आफसेट करने के लिए झिल्ली के माध्यम से गुजारा जाता है। इस प्रकार इस विधि में उच्च दाब की आवश्यकता होती है तथा उत्क्रम परासरण संयंत्र की प्रचालन कीमत भी अधिक होती है।
जल के विलवणीकरण में नैनो नलिका झिल्ली का विकास बहुत ही नवीनतम अनुसंधान की देन है। वस्तुतः कार्बन नैनो नलिका कार्बन का एक नलिकाकार रूप है। जिसका व्यास 1 नेनोमीटर जितना छोटा होता है तथा इसकी लंबाई कुछ नैनोमीटर से लेकर कई माइक्रोन तक हो सकती है। ये कार्बन परमाणुओं के अनुपम विन्यास में बनी विशिष्ट अणु होती हैं तथा मानव के बाल से 50,000 गुना पतली होती हैं। झिल्ली में ये लाखों नलिकाएं छिद्र की तरह कार्य करती हैं।
नैनो नलिका के अति चिकने आंतरिक भाग से द्रव एवं गैसें तीव्र गति से बह सकते हैं, जबकि लघु छिद्र आकार के कण बड़े अणुओं को रोक देते हैं। ऐसी झिल्लियां, जिनमें कार्बन नैनो नलिकाएं छिद्र के समान होती हैं, को विलवणीकरण तथा विखनिजीकरण में उपयोग किया जा सकता है। यह प्रेक्षित किया गया है कि साधरणतया जल से लवणों का निष्कासन उत्क्रम परासरण विधि से किया जाता है तथा इसमें अधिक मात्रा में दाब की आवश्यकता होती है। यह विधि बहुत महंगी भी है।
कार्बन नैनो नलिकाओं की अधिक पारगम्यता के कारण इनके उपयोग से जल के विलवणीकरण में उत्क्रम परासरण विधि की अपेक्षा 75 प्रतिशत कीमत में बचत होती है। वस्तुतः यह बहुमुखी पदार्थ होते हैं, जिनके विभिन्न क्षेत्रों में अनुप्रयोग होते हैं तथा इनकी घर्षण-रहित सतह के कारण यह द्रव्य को बहुत तीव्रता से निकाल सकते हैं।
कार्बन नैनो नलिका झिल्ली (मेम्ब्रेन) के उत्पादन का प्रक्रम बहुत लम्बा तथा जटिल है। सामान्यतया इनका उत्पादन तीन विधियों, जैसे-विद्युत आर्क विसर्जन, लेसर अपक्षरण तथा रासायनिक वाष्प निक्षेपण द्वारा किया जाता है। वृहत स्तर पर नैनों नलिका का उत्पादन रासायनिक वाष्प निक्षेपण विधि से किया जाता है।
बहुदिवारीय नैनो नलिका
बहुदिवारीय कार्बन नैनो नलिका का निर्माण मिथेन के 680-7000 से. पर निकेल आक्साइड-सिलिका द्विअंगी एरोजैल की उपस्थिति में उत्प्रेरकीय अपघटन से किया जाता है। नैनो नलिका का रूपान्तरण नाइट्रिक अम्ल के विलयन से पराश्रव्य एवं बॉल मिलिंग के साथ किया जाता है।
रूपान्तरण के कारण नैनो नलिका के ऊपरी भाग पर उत्प्रेरकीय धातु के कण विलुप्त हो जाते हैं, नेनो नलिका की लंबाई छोटी हो जाती है तथा इसकी टोपी खुल जाती है। इसकी आंतरिक सतह का उपयोग विशिष्ट सतही क्षेत्र तथा बहुदीवारीय नैनो नलिका के रंध्रों के आयतन बघने में किया जाता है। कार्बन नैनो ट्यूब की अधिक पारगम्यता के कारण जल के विलवणीकरण के क्षेत्र में इसने नये क्षितिज प्रदान किये हैं। कार्बन नैनो नलिकाओं का संदूषकों के निष्कासन में अनुप्रयोग निम्नानुसार किए गए।-
जल से आर्सेनेट का निष्कासन
पेंग तथा उनके सहयोगी वैज्ञानिकों ने सन् 2005 में जल से आर्सेनेट के निष्कासन हेतु एक नया अधिशोषक सीरिया तथा कार्बन नैनो ट्यूब के सहयोग से विकसित किया। इससे सामान्य पीएच की दशा में (Ca) तथा (Mg) के सांद्रण में 0 से 10 मि.ग्रा. प्रति लीटर की वृद्धि प्रेक्षित की गई। इससे आर्सेनिक (As) के अधिशोषण की मात्रा में क्रमशः 10 से 81.9 तथा 78.8 मि.ग्रा/ग्राम वृद्धि प्रेक्षित की गई। यह अधिशोषण पीएच आधारित था।
जल से फ्लोराइड का निष्कासन
वैज्ञानिकों ने जल से फ्लोराइड की समस्या से निजात पाने हेतु संरेखीय कार्बन नैनो नलिकाओं का उपयोग किया। यह अधिशोषण आंशिक रूप से पीएच आधारित था। अधिकतम अधिशोषण क्षमता पीएच 7 पर देखी गई।
जल से कैडमियम का निष्कासन
औद्योगिक बहिस्रावों में कैडमियम तथा सीसे की आविषालुता बहुत खतरनाक होती है। ‘ली’ तथा उनके सहयोगी वैज्ञानिकों ने सन् 2003 में जल से कैडमियम निष्कासित करने हेतु तीन आक्सीकृत नैनो नलिकाओं का उपयोग कर सफलता प्राप्त की है। इस प्रक्रम में हाइड्रोजन-पैरा-आक्साइड, नाइट्रिक अम्ल तथा पोटेशियम परमैगनेट का उपयोग किया गया। कार्बन नैनो नलिकाओं द्वारा कैडमियम का अधिशोषण भी पीएच आश्रित था।
जल से सीसे का निष्कासन
जल से सीसे के निष्कासन में नैनो नलिकाओं की भूमिका अद्वितीय रही है। यह अधिशोषण भी विलियन के पीएच मान तथा नैनो नलिका के सतही स्तर से प्रभावित होता प्रेक्षित किया गया।
जल शुद्धिकरण में नैनो निस्यंदन बहुमुखी प्रक्रम
वर्तमान काल में नैनो निस्यंदन एक झिल्ली (मेंब्रेन) पृथक्करण प्रक्रम है, जिसकी अनेक क्षेत्रों में, जैसे जल मृदुकरण अपशिष्ट सरिता उपचार, रासायनिक प्रक्रम उद्योग, कागज तथा लुगदी उद्योग, जैव प्रौद्योगिकी, औषधीय उद्योग, अतिसूक्ष्म पदार्थों के निष्कासन, जैसे पीघ्कनाशियों के भू-जल से निष्कासन में उपादेयता है।
वस्तुतः नैनो निस्यंदन एक तेजी से बढ़ती हुई झिल्ली पृथक्करण प्रक्रम है, जो कि अति सूक्ष्म निस्यंदन एवं उत्क्रम परासरण के मध्य प्रचालित होता है। यह झिल्ली, जो ट्रांस मेंब्रेन प्रवणता के परास में 7-15 कि.ग्रा./मीटर2 में प्ररूपी तरीके से द्विसंयोजी एवं बहुसंयोजी लवणों को तथा कार्बनिक विलय को एकल संयोजी लवणों से पृथक करती है, का उपयोग एक विलक्षण साधन के रूप में रासायनिक वर्ग के प्रभंजन में किया जाता है।

नैनो निस्यंदन मेंब्रेन पदार्थ तथा उनके निर्माण के तरीके
सामान्यतया नैनो निस्यंदन झिल्लियों के निर्माण में बहुलक या का बहुतायत से उपयोग किया जाता है। सबसे पहली नैनो निस्यंदन झिल्ली लौब सौरीराजन प्रकार की प्रलेपित असमरूप झिल्ली का निर्माण उपर्युक्त बहुलक से ही किया गया था। उत्क्रम परासरण तथा नैनो निस्यंदन झिल्ली के मेंब्रेन पदार्थों एवं संश्लेषण तकनीकों में बहुत समानताएं हैं।
असमरूप प्रलेपित झिल्लियां
सर्वप्रथम सेलुलोस एस्टर आधारित बहुलकों का उपयोग इन झिल्लियों के निर्माण में किया जाता था इसके पश्चात् संश्लेषित बहुलकों (पोलीमर) का साधारणतया सगंध प्रकार के बहुलकों का उपयोग सेलुलोस बहुलकों के प्रयोग में हुई त्रुटियों के निराकरण हेतु किया गया। नैनो निस्यंदन झिल्ली के निर्माण हेतु प्रयुक्त पदार्थों में एरोमेटिक पॉलीएमाइड, पॉलीएमाइड हाइड्रा जाइडस का बहुतायत से उपयोग किया गया। इसी प्रकार अन्य बहुलक, जैसे सल्फोनेटेड पालीसल्फॉन, ब्रोमीनीकृत पॉलीफिनाइलीन आक्साइड का भी नैनो निस्यंदन मेंब्रेन पदार्थ के रूप में उपयोग किया गया।
अंतराफलक बहुलीकरण द्वारा मेंब्रेन
नैनो निस्यंदन मेंब्रेन निर्माण की यह अत्याधुनिक विधि है। इसमें स्वस्थाने उपर्युक्त एकलक जैसे आइसोथैओइल अथवा टैरीपथैआइल क्लोराइड तथा आर्थो, मेटा अथवा पैरा फिनाइलीन एमीन का बहुलीकरण अतिसूक्ष्म निस्यंदित झिल्ली (सामान्यतया पॉली सल्फोन) पर जहां एक पतली 0.6 माइक्रोन मोटाई की पॉलीमर की रोधिका तह बन जाती है, पर किया है। इस प्रकार की पतली संयुक्त फिल्म से यह लाभ है कि सहयोगी पदार्थों तथा रोधिका तह पदार्थों की गुणवत्ता को आपसी स्तर पर मेंब्रेन की अच्छी निष्पादन क्षमता प्राप्त करने हेतु आपस में बढ़ाया जा सकता है।
सतही रूपान्तरण द्वारा नैनो निस्यंदन झिल्लियां
बहुधा उत्क्रम परासरण या नैनो निस्यंदन झिल्ली का सतही रूपान्तरण करके भी वांछनीय निष्पादन क्षमता की नैनो निस्यंदन झिल्लियां प्राप्त की जा सकती हैं। सतही रूपान्तरण झिल्ली की छिद्र संरचना अथवा अन्य भौतिक-रासायनिक गुणों में परिवर्तन करके झिल्ली की निष्पादन क्षमता को प्रभावित करते हैं।
सिरेमिक झिल्लियां
सिरेमिक झिल्लियों में विभिन्न संरंध्रता की दो या तीन परतें होती हैं। सामान्यतया यह अल्युमिनियम, टाइटेनियम, सिलिकानॅ या जिरकोनियम आक्साइड की बनी होती हैं। कभी-कभी टिन या हैफनियम को भी आधार पदार्थों के रूप में उपयोग किया जाता है। जिरकोनियम झिल्लियां व्यापारिक दृष्टि से कीरासेप नाम से प्रायः उपलब्ध होती हैं।
हमारे देश में ‘भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र, मुम्बई’ का विलवणीकरण प्रभाग नैनो निस्यंदन झिल्लियों के विभिन्न उपयोगों के विकास में सक्रिय रूप से कार्यरत है। इस प्रभाग ने प्रावस्था प्रतिलोमन तकनीक तथा संयुक्त पतली परत तकनीक द्वारा झिल्लियां विकसित की हैं। यह विकसित झिल्लियां उदासीन तथा आवेशित दोनों प्रकार की हैं।
अनुप्रयोग
नैनो निस्यंदन प्रक्रम का अनुप्रयोग उन क्षेत्रों में, जहां जलीय सरिताओं, जिनके बहुघटकों का प्रभाजन विभिन्न सरिताओं के भिन्न-भिन्न घटकों में होता है, अधिक पाया गया है। सामान्यतः झिल्लियां, बहुसंयोजी आयनों तथा बड़े अणुओं, जैसे शर्करा एवं अन्य कार्बनिक योगिकों के मार्ग को प्रतिबंधित करती हैं तथा छोटे वर्ग के एकल संयोजी आयनों के मार्ग को खुला रखती हैं। इस प्रकार के प्रक्रमों की उपादेयता जल शुद्धिकरण, अपशिष्ट उपचार, खाद्य एवं औषधि उद्योग, रसायन प्रक्रम उद्योग, कागज एवं लुगदी उद्योग तथा प्रदूषित जल से सूक्ष्ममात्रिक संदूषकों के निष्कासन आदि में होता है। सारणी 2 में नैनो निस्यंदन के कुछ अनुप्रयोगों का विवरण दिया गया है।
अतः यह कहा जा सकता है कि नैनो निस्यंदन एक उभरती हुई मेंब्रेन (झिल्ली) पृथक्करण तकनीक विकसित हुई है, जिसके कई क्षेत्रों में अनुप्रयोग हैं। वर्तमान में नए नैनो मेंब्रेन पदार्थों तथा नैनो मेंब्रेन निर्माण की विधियों पर गहन अनुसंधान हो रहे हैं। अपनी खोज के अल्पकाल में मेंब्रेन प्रौद्योगिकी के बहुमुखी अनुप्रयोग सिद्ध हो चुके हैं।
डॉ. दुर्गादत्त ओझा

स्वयं का तन-मन-धन खर्च कर बनवा दी सैकड़ों जल संचयन प्रणालिया

सरकारी सेवा के दौरान जन सेवा लगभग सभी कर्मचारियों अधिकारियों का कर्तव्य होता है। लेकिन सेवानिवृत्ति के बाद अधिकांश आराम या ध्यान भजन की सोचते हैं अथवा पारिवारिक झमेलों या जीवन में आनंदमग्न रहते हैं। बिरले ही सेवा निवृत्ति के बाद अपना निजी धन लगाकर समाज सेवा हेतु सक्रिय होते हैं। इन्हीं बिरले लोगों में शामिल हैं, दिल्ली निवासी शासकीय सेवानिवृत्त रामचंद विरमानी, जो अभी तक जल संरक्षण के क्षेत्र में निस्वार्थ भाव से कार्य कर रहे हैं और चाल, खाल, खंतियों और तालाबों सहित 100 से ज्यादा जल संचयन और जल संरक्षण प्रणालियों का निर्माण करवा चुके हैं।
रामचंद वीरवानी बचपन से प्रकृति के प्रति लगाव, नदियों, तालाबों के किनारे टहलने, पर्वतों की चोटियों व ऊँचे पेघें और उनमें फुदकते पंछियों को निहारने, जंगलों में फूलों व तितलियों को देखने व पकघ्ने का शौक था। अपने शौक को उन्होंने पर्यावरण संरक्षण में बदल दिया। रामचंद विरमानी ने बताया कि अपने यात्राओं के शौक में वे जहाँ जहाँ जाते थे अक्सर ही बंजर, सूखे व वृक्ष विहीन इलाके देखकर मन अवसाद से भर जाता था। घुमक्कघ् प्रवृत्ति के होने के कारण वे बंजर इलाकों, सूखा प्रभावित क्षेत्रों में अकेले ही निकल जाते हैं एवं निजी संसाधनों से जल पुनर्भरण संरचनाओं के निर्माण व वृक्षारोपण में जुट जाते हैं।
रामचंद विरमानी ने बताया कि उनके अनुसार इससे खाली समय व धन, दोनों का ही सदुपयोग हो जाता है। मैंने महसूस किया कि पूरे देश में पौधारोपण की अत्यंत आवश्यकता है। इसलिए शुरुआत पौधारोपण से की। शीघ्र ही अनुभव किया कि वृक्षों को देखभाल व सिंचन की सतत जरूरत होती है। उनके अभाव में अधिकतर पौधे पनप नहीं पाते। यह भी देखा कि जगह जगह सूखा है। लगभग हर जगह वाटर टेबल बहुत नीचे चला गया है। जल के अभाव में किसानों की खेती अच्छी नहीं होती। कई जगह किसान केवल एक ही फसल ले पाते हैं। खेती में नुकसान के कारण वे अपने इलाके से पलायन करने लगते हैं।
विरमानी कहते हैं कि ज्यादातर लोग पौधारोपण में अधिक रूचि लेते हैं। खुरपियों से बहुत छोटे गड्ढे बनाकर छोटा पौधा रोप देते हैं। ऐसे लोग न तो पौधों को पर्याप्त सुरक्षा देते हैं और न ही पौधों के लिए पानी की व्यवस्था करते हैं। ऐसा इसलिए भी किया जाता है क्योंकि यह बहुत सस्ता व आसान होता है। फिर पौधों को भगवान भरोसे छोड़ देते हैं।
ये सब देखकर उन्हें लगा कि पौधारोपण तो आवश्यक है ही, लेकिन शायद उससे पहले जल की कमी दूर करना या जल संरक्षण जरूरी है। जहाँ जल की अधिकता है वहां स्वयंमेव हरियाली है, पेघें की बहुतायत है एवं किसान भी अपेक्षाकृत खुशहाल हैं। अतः उन्होंने जल संरक्षण का कार्य करने का निर्णय किया। इन कार्यों को करने के लिए वे किसी पर आश्रित नहीं रहें और अपने खर्च से कुछ चौकडैम, स्टाप डैम बनाकर तालाब बनवाने में लग गए।
छोटे, मध्यम या बड़े तालाब बनाना यानि जल संरक्षण या जल रोकने की संरचनाओं का निर्माण काफी खर्चीला होता है। उन्होंने बताया कि उन्हें तो वृक्ष लगाना भी बहुत खर्चीला कार्य लगता है। जहाँ-जहाँ उन्होंने पौधे लगवाये वहां औसत ढाई फीट लंबे चौड़े व गहरे गड्ढे करवाये, उनमें अच्छी मिट्टी, खाद व कीड़े मारने वाली दवाई डलवाई। फिर छोटे नहीं बल्कि बड़े पौधे लगाए। कुल मिलाकर एक पौधे पर लगभग तीन सौ रूपये का खर्च आया, जबकि उसके लिए सुरक्षा व सतत पानी का इंतजाम था। यदि यह न होता तो ट्री गार्ड लगाने के बाद एक पेड़ पर 800 से 900 रूपये का खर्च आता और पानी की व्यवस्था अलग। यदि पानी का अभाव है तो सारा खर्च बेकार। अतः स्पष्ट है कि पेड़ लगाने से पहले पानी का प्रबंध जरूर हो। वैसे यह भी बात है कि जहाँ वृक्षों की बहुतायत होती है वहां पानी की कमी नहीं होती और इसके विपरीत जहाँ पानी की बहुतायत है वहां हरियाली की भी कमी नहीं होती। दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।
रामचंद विरमानी ने बताया कि वे इंटरनेट, मैगजीन्स व अखबारों अथवा बंजर व सूखा प्रभावित क्षेत्रों में कार्यरत व्यक्तियों या संस्थाओं के माध्यम से जानकारी जुटाकर देश में जगह जगह भ्रमण कर बंजर व सूखाग्रस्त क्षेत्रों में उपयुक्त स्थान तलाश कर जल संरक्षण हेतु चौकडैम द्वारा तालाब निर्माण हेतु लग जाते हैं। वे क्षेत्र अधिकारियों, स्थानीय निवासियों, ग्राम प्रधानों आदि से मिलकर, सलाह कर ऐसे क्षेत्रों का चयन करते हैं जो हर प्रकार की बाधा से मुक्त हों, जहाँ किसी को किसी भी प्रकार का आब्जेक्शन न हो और वह सरकारी या जंगल की जमीन भी न हो तथा जहाँ तालाब बनाने पर लोगों एवं प्रकृति को भरपूर लाभ हो।
इसी कड़ी में उनका परिचय मोहन चंद्र कांडपाल से हुआ, जो स्वयं पर्यावरण सम्बंधित विषयों पर द्वाराहाट क्षेत्र में कई वर्षों से बहुत अच्छा कार्य कर रहे हैं। उनकी स्वयं की सीड सुनाड़ी संस्था है, जिसके माध्यम से वे पर्यावरण से सम्बंधित कार्य करते हैं। वीरवानी को मोहन चंद्र कांडपाल से यह जानकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि पहाड़ों में भी कई इलाकों में पानी का बहुत अभाव है। पहाड़ों के कई इलाके वृक्ष व जल विहीन हो चुके हैं। जल स्रोत सूख गए हैं। उनकी सफाई व वाटर रिचार्जिंग की नितांत आवश्यकता है। पहाड़ के जल संकट के बारे में जानने के बाद उत्तराखंड के भी कई क्षेत्रों में कई चौकडैम, पचासों चालों का निर्माण व जल स्रोत्रों की सफाई आदि करा चुके हैं।
रामचंद विरमानी द्वारा किए गए कार्य
जून 2014 में बिठौली, द्वाराहाट में एक जल स्रोत, साथ में बने टैंक की सफाई व चाल का निर्माण करवाया। इसी दौरान दूनागिरि द्वाराहाट में दो छोटी चालों का निर्माण व दो जल स्रोत्रों की सफाई करवाई।
जुलाई 2014 में रामखाल भाटी वनकोटि, गणाई गंगोली में पत्थरों के 60 फीट लंबे चौकडैम का निर्माण करके न सिर्फ एक छोटे तालाब को बड़ा किया बल्कि उसको गहरा भी कराया। उसमें पर्याप्त पानी आने के लिए जलभराव क्षेत्र में चौनलों का निर्माण कराया। चौनलों के मध्य छोटे छोटे कुंड भी बनवाये ताकि मटमैला पानी पहले वहां अपनी मिट्टी व गंदगी छोड़कर साफ होकर तालाब में जाए।
सितंबर 2015 में नागार्जुन, द्वाराहाट में 40 फीट लंबा 4 फीट ऊँचा पत्थरों के बाँध का निर्माण कराया। यहीं नागार्जुन, द्वाराहाट में एक टूटी खाल को ठीक करवाया और सफाई करवाई तथा एक बहुत छोटा बड़े पत्थरों का गली प्लग बनवाया।
ऋषिकेश से 20 किमी दूर दिल्ली मलेल गाँव में सड़क मार्ग पर वृक्षारोपण किया। वहां शिशु संस्थान के प्रबंधक ऋषि कुमारने कुछ ट्री गार्डों व पेड़ों को बच्चों द्वारा पानी देने की व्यवस्था की । अक्टूबर 2015 में यहीं जल पुनर्भरण हेतु 40 फीट लंबी कन्टूर ट्रेंच का निर्माण कराया।
अप्रेल-मई 2016 में बड़कोट गाँव नई टेहरी में एक तालाब को गहरा करवाया व एक नयी 50 फीट लंबी व 10 फीट चौड़ी चाल का निर्माण कराया।
जून 2016 में नट्टागुल्ली व कांडे गाँव द्वाराहाट में क्रमशः 6 व 2 चालों का, जल भराव क्षेत्र से पानी लाने के चौनलों समेत निर्माण कराया। इन चालों में कुछ कुछ पानी भरने व रुकने भी लगा है अर्थात इन्होंने जल पुनर्भरण व संरक्षण का काम शुरू कर दिया है।
नवंबर 2016 में गनोली, बयेला और द्वाराहाट में न सिर्फ 4 बड़ी नयी चालों का निर्माण कराया बल्कि छिछले दो तालाबों को 3 फीट गहरा करा दिया।
नारसिंग में एक नयी चाल का निर्माण व तीन पुरानी चालों को चौनलों से जोड़ दिया व ठीक करा दिया ताकि ये पानी रोक सकें।
जून 2017 में नट्टागुल्ली में ही एक सरकारी खर्च से बनाये तालाब में सिर्फ एक फीट गहराई तक पानी जमा होता, टिकता नहीं था क्योंकि पानी पत्थर की दीवारों के छेदों से बाहर निकल जाता था। गाँव वासियों ने इसको ठीक कराने व कुछ गहरा करने के लिए कहा। तो लेबर लगाकर दीवारों के छेदों में चिकनी मिटटी का प्लास्टर करवाया ताकि साइड लीकेज रुके। इसको कुछ गहरा भी करवा दिया। एक किनारे की दीवार को कुछ अतिरिक्त लम्बा करवाया ताकि वर्षा जल 3 फीट गहराई तक जमा हो जाये। इसमें वर्षा जल लाने वाले चौनल को भी बहुत लम्बा व गहरा करा दिया, ताकि यह तालाब जल्दी भर जाया करे।
अप्रेल 2018 में चौखटिया से 25 किमी दूर कूनाखाल में न सिर्फ 2 मीटर गहरी 4x5x2 मीटर साइज की एक बड़ी चाल का निर्माण, कराया बल्कि खुदाई से निकली मिट्टी का उपयोग करके पास में ही 20 मीटर लम्बा व 1 मीटर ऊंचा स्टाप डैम भी बनवाया। इन दोनों से लगभग 50 हजार लीटर से ऊपर वर्षा जल जमा हो सकेगा।
फिर अक्टूबर, 2018 में उपरोक्त स्थान पर ही कूनाखाल और सोंगरा गाँव में 4 बड़ी व 1 छोटी 4x7x1, 3ग8×1, 2x15x1, 2x3x0.75 मीटर की चालों का निर्माण कराया। सोंगरा में ही गांव की एक जीप योग्य सड़क बड़े बड़े बोल्डर्स के गिरने के कारण कई दिन से बंद पड़ी थी, उसको जेसीबी से बोल्डर हटवाकर खुलवा दिया। एक छोटे जलस्रोत की सफाई भी करवा दी।
वर्षा जल संरक्षण व कुछ रोजगार देने के उद्देश्य से मल्लीकहाली, द्वाराहाट गांव की महिलाओं को कुछ चालें बनाने का कार्य दे दिया। उनको स्वतंत्रता थी कि अपने खाली समय में या कभी भी कार्य करें और जितने दिन में चाहें कार्य पूरा करें तथा चालें बनाने के उपरांत एक निश्चित दर पर धन लेती जाएं। मई 2019 में उन्होंने चाल बना ली। इसका महिलाओं को भुगतान भी किया गया।
अगस्त 2019 की द्वाराहाट यात्रा में फिर 2बड़ी चालें 1x2x32 मीटर की मल्ली कहाली व कुई गांवों में बनवाई, जिनमें एक बार में लगभग 50 हजार लीटर वर्षा जल जमा हो सकता है।
इसके अलावा पात्र स्कूली बच्चों को ड्रेस, स्वेटर्स, शूज, बस्ते व खेल सामग्री वितरण करते हैं। अल्मोघ, द्वाराहाट के चौरा, गनौली व बेढुली गाँवों में 3 बालवाड़ियों के लिए जहां बच्चों को गणित, कला, विज्ञान, खेल कूद आदि में और निष्णांत किया जाता है, 3 स्टूडेंट टीचर्स को 1200 रुपये प्रति माह देते हैं ।
ग्रामीण महिलाएं कुछ आय अर्जित कर सकें इस हेतु सिलाई कढ़ाई आदि निशुल्क सिखाने हेतु गांव गाँव में केंद्र खोलते हैं, ताकि महिलाएं घर में ही सिलाई आदि करके कुछ बचत कर सकें या कमा सकें। इस क्रम में अभी सिमलगांव, पैथानी, बनोली व मल्लीकहाली गांवों से लगभग 100 से ज्यादा महिलाएं सिलाई कढ़ाई सीखकर अपने घरों में कार्य कर कुछ न कुछ बचत या आमदनी कर रही हैं। अभी द्वाराहाट के छतीना खाल व बेढुली में तथा छत्तीसगढ़, कोरबा के धनगांव में निशुल्क केंद्र चल रहे हैं, जहां महिला ट्रेनर्स को प्रति केंद्र 3 हजार प्रति माह देते हैं। इस लाकडाउन पीरियड में उन्होंने अल्मोघ, द्वाराहाट के लगभग 150 परिवारों को भोजन सामग्री मुहैया कराई।
मध्य प्रदेश के हाथीपावा, कालीघाटी, मनास्या, गामड़ी, रूपापाड़ा, पांचपिपला वडलीपाड़ा (झाबुआ), सारोला व गजानन पहाड़ी चिंचाला (बुरहानपुर), देड़तलाई (खंडवा), वाकानेर (अलीराजपुर), आगर जिले के आमला, महारुंडी, सारंगाखेड़ी व उत्तर प्रदेश के महोबा में कुलपहाड़ के इंदौरा गाँव, बांदा के कालिंजर आदि में लगभग 45-50 छोटे व मध्यम आकार के तालाबों का निर्माण कराया, जिनमें 30 फीट से लेकर 150 फीट लंबे बाँध बने। वर्षा में लगभग सभी तालाब भरकर सुरक्षित रूप से जल पुनर्भरण व संरक्षण का कार्य कर रहे हैं। बुरहानपुर की फोपनार पहाड़ी खंडवा के देड़तलाई, पेटलावद झाबुआ के रूपापाड़ा, मलेल ड्यूली, ऋषिकेश व बुरहानपुर चिंचाला की गजानन पहाड़ी आदि अन्य स्थानों में उचित तरीके से सैकड़ों पेड़ लगवाए।
अप्रैल 2012 में नांदगांव, वारासिवनी, बालाघाट में गायत्री परिवार के लोगों ने मिलकर 1100 पेड़ लगाए थे जिनके लिए पानी की समुचित व्यवस्था नहीं थी तो वहां एक कुआँ बनवा दिया।
दिसंबर 2012 में इसी तरह छायन पश्चिम गाँव, झाबुआ में 3000 पेड़ लगवाये। पानी देने हेतु 1200 फीट लंबे मोटे पीवीसी पाइप की जरूरत थी, तो उनकी इस आवश्यकता की पूर्ति कर दी।
मनास्या गाँव व पांच पिपला पेटलावद, झाबुआ के पठार पर इतनी अच्छी जगहें मिलीं कि एक के बाद एक 19 बहुत छोटे, छोटे व मध्यम आकार के तालाब बनाए। मनास्या में एक तालाब 15 दिसंबर को बनवाया था और 2 माह बाद इसके बांध की ऊंचाई व लम्बाई भी कुछ बढ़ाई। यह सुनकर बहुत अच्छा लगा जब मनास्या गाँववासियों ने बताया कि कुछेक किलोमीटर तक आसपास के क्षेत्र में केवल यही तालाब था, जिसमें लम्बे समय तक पानी रहता है और उनके पशु पानी के लिए यहीं आते हैं। इसलिए फिर फरवरी 2019 में तीसरी बार इसके बांध को कुछ और ऊंचा व लम्बा करवाया ताकि पानी साल भर टिका रहे।
जनवरी 2016 में इसके ठीक विपरीत यहीं पर बनाये एक 100 फीट लम्बे बाँध से निर्मित तालाब का तल काफी झरझरा है अर्थात जमीन जल्दी पानी सोख लेती है। लेकिन इस मायने में बहुत उपयोगी है कि यदि एक वर्षा ऋतु में 5-6 बार भरता है, तो इसका अर्थ है कि यह अपनी क्षमता यानि 10 लाख लीटर का 5-6 गुना अर्थात 50-60 लाख लीटर जल से भूगर्भ रिचार्ज करेगा। यानि कुछ तो वाटर टेबल ऊपर करने में सहयोग करेगा।
2016 में यहीं मनास्या पर एक सरकारी बाँध के वेस्ट वीयर (अतिरिक्त जलनिकास मार्ग) में गाद भर जाने से बाँध से डेड़ फीट नीचे तक पानी आ जाता था। उसकी ऊपरी पिचिंग निकल गयी थी और बाँध टूटने के कगार पर था। बांध के वेस्ट वीयर को गाद मुक्त व कुछ गहरा करा दिया। दो साल बाद पुनः उस पूरे बांध को 2 फीट ऊंचा करा दिया। क्योंकि बीच से कुछ दब गया था जिससे उसके टूटने के सम्भावना लगभग खत्म हो गयी है और अब वह बांध सुरक्षित रूप से साल दर साल करोड़ों लीटर वर्षा जल जमा कर रहा है।
सरकारी फण्ड से बनाये और बाद में टूट गए 4 बांधों को बनवाया। ऐसे टूटे बांधों पर सालों तक किसी का ध्यान नहीं जाता है और वह क्षेत्र पानी के अभाव से पीड़ित रहते हैं। जबकि टूटे बांधों की मरम्मत बहुत कम खर्च करके इनका आसानी से पुनरुद्धार किया जा सकता है। इस प्रकार के कार्यों से उनको इस बात की खुशी मिलती है कि इससे लाखों रूपये के जनता के टैक्स की बचत होती है।
इस कड़ी में दिसंबर, 2015 में पेटलावद से 25 किमी दूर काली घाटी में टूटे हुए 2 सरकारी बांधों की और उनके वेस्ट वीयर की हजारों रुपये अपनी तरफ से लगाकर मरम्मत करा दी। अब हर वर्षा में वे दोनों सुरक्षित रूप से लबालब भर जाते हैं। इसी तरह से फरवरी, 2017 में गामड़ी और फरवरी, 2020 में सारंगाखेड़ी में एक-एक टूटे हुए तथा मनास्या (जनवरी, 2016 व फरवरी, 2019 में दो बार)) और पांचपिपला (दिसंबर, 2017 व 18 में दो बार) में एक-एक टूटने वाले बांधों को दुरुस्त व ऊंचा करके सालों साल के लिए उनका पुनरुद्धार कर दिया। अब ये सब साल दर साल करोड़ों लीटर पानी जमा करके वातावरण को लाभ पहुंचाते रहते हैं।
दिसम्बर 2016 में कालिंजर बाँदा में एक तालाब का चौकडैम 60 फीट की लंबाई में 6 फीट ऊंचा करा दिया। फिर नवंबर, 2017 में दुबारा उसको थोड़ा और ऊंचा करा दिया, जिससे उसमें पहले के केवल 2 फीट की अपेक्षा अब लगभग 5-6 फीट गहराई तक जल जमा हो रहा है।
जनवरी 2017 में पेटलावद, झाबुआ के गामड़ी गाँव में एक टूटे बाँध को न सिर्फ ठीक कराया बल्कि वहीं आसपास 3 छोटे तालाबों को गहरा किया व उनके बांध ऊंचे कराये ताकि वे ज्यादा पानी संजो सकें।
यहीं एक तालाब गहरा कराने के दौरान एक जगह कुछ पानी निकलने पर उस स्थान को कुछ और गहरा व चौड़ा करा दिया। क्योंकि गाँव वाले सामूहिक श्रम से अब उस स्थान पर कुआँ बनाने को उत्सुक हो गए थे, जो उन्होंने कर दिया अर्थात यह कार्य वहां कुआँ बनने में निमित हो गया।
इसी तरह रूपापाड़ा में एक व दौलतपुरा पेटलावद, झाबुआ में दो बहुत छोटे कनह-वनज तालाबों का निर्माण कराया।
दिसंबर 2017में फिर गामड़ी में ही एक छोटे तालाब को गहरा कराया व इससे निकली मिट्टी से दो छिछले स्थानों के चारों ओर पाल बना दिए, जिससे वे छोटे छोटे तालाब बन गए – एक पंथ तीन काज। यहीं सड़क के दूसरी ओर एक अन्य छिछले क्षेत्र को कुछ गहरा कराकर इसके चारों ओर की मेड़ को इस तरह दुरुस्त कराया कि यह भी एक छोटा तालाब बन गया और यहां भी अधिक वर्षा जल रुक सकेगा। गामड़ी और दौलतपुरा में 11 छोटी छोटी जल संरक्षण संरचनाओं का गहरीकरण, निर्माण और पुनरुद्धार किया।
जुलाई 2017 में रूपापाड़ा गाँव के पास के एक पठार पर लगाने हेतु आम, आंवला, इमली, सिरस, सहजन, सेवन, सीताफल, शीशम, जंगल जलेबी, ओहला, बांस, बहेड़ा आदि के 210 पौधे खरीदे। अपने घरों के आसपास या खेतों में लगाने हेतु आम, आंवला, इमली और बांस आदि का उपयोग देखकर 20-25 पौधे गाँव वालों ने चुपके से निकाल लिए। इससे खुशी ही हुई कि ये इनकी ज्यादा देखभाल करेंगे। इन पौधों को पठार के ऊपरी हिस्से में पहुंचवाकर यह कल्पना कर लगवाया कि पहाड़ी के ऊपर एक बार पेड़ लग गए तो नीचे की तरफ अपने बीजों को गिरा गिराकर नए पेड़ बनाते जाएंगे। यहीं पर कई वर्ष पहले किसी संस्था द्वारा बनाया एक बांध टूट गया था, मजदूर लगाकर उसको भी ठीक करवा दिया।
दिसंबर, 2017 में पांचपिपला गांव के पास के पठार पर कई उपयुक्त स्थल ग्राम प्रधान पूनम चंद्र डामर व सम्पर्क संस्था के लक्ष्मण मुनिया ने दिखाए। यहां भी 3 छोटे चौकडैम, 4 मिनी बांध बनाये व एक मनरेगा के अंतर्गत बना बड़ा बाँध जो लगभग टूटने वाला था, उसको 3 फिट ऊंचा करा दिया व उसके अतिरिक्त जल निकास मार्ग को कुछ और चौड़ा व ऊंचा करा दिया ताकि उसके टूटने की सम्भावना लगभग खत्म हो जाये और पानी भी ज्यादा जमा हो। इससे यह तालाब लगभग 5-6 लाख लीटर ज्यादा पानी भी साल दर साल ज्यादा जमा करेगा। एक महीने बाद जनवरी 2018 में फिर इसी पांचपिपला पठार पर 3 और चौकडैम बनवाये व पिछले बनाये वालों को कुछ दुरुस्त किया।
दिसंबर 2018 में वडलीपाघ के पास पांचपिपला में एक 80 फीट लम्बा व 11 फीट ऊंचा बांध बनाया, जिससे निर्मित तालाब 12.06.07 लम्बे, चौड़ा व गहरे क्षेत्र में लगभग 10 लाख लीटर वर्षा जल जमा कर सकेगा। इस बांध बनाने हेतु 3-4 स्थानों से मिट्टी उठाने से जो छोटे छोटे गड्ढे बन गए थे उनको भी एक किनारे से बांध दिया ताकि वे भी कुछ वर्षा जल रोक कर जमीन में डाल दें।
जनवरी 2019 में 200 पौधे बुरहानपुर चिंचाला की गजानन पहाड़ी पर रोपने हेतु जेसीबी से इस तरह गड्ढों को खुदवाया व निकले मलबे को फैलाया कि वे गड्ढों के साथ खंतियां भी बन गई। यानि 200 बहुत छोटे पोखर से बन गए, जिनमें पौधे भी लगेंगे और वे वर्षा जल भी जमा करेंगे – एक पंथ दो काज। गजानन मंदिर पहाड़ी के टाप पर भी pits and cum & contour trench बनाकर पौधे लगाये। ताकि वर्षाजल जमा करने के साथ जब ये पौधे पेड़ बन जाएं तो उनके बीज नीचे की ढलानों पर गिरकर प्राकृतिक रूप से वृक्ष बनें। ऊपर हरियाली होगी तो नीचे स्वयंमेव फैलेगी। 11 ट्रेक्टर ट्रालियां काली मिट्टी व तालाब गाद की तथा डेड़ सौ किलो केंचुआ खाद 6-7 तसले प्रति गड्ढे में डालने हेतु मंगाए ताकि पौधे उचित रूप से बढ़ सकें।
2 छोटे सोख्ता टाइप के तालाब भी छोटे चौकडैमों द्वारा गजानन पहाड़ी पर बनाये। यदि एक वर्षा ऋतु में ये 5 बार भरें तो इसका अर्थ होगा 5×1 लाख ग 2 तालाब – यानी 10 लाख लीटर वर्षा जल भूगर्भ में डाल देंगे। कुछ हरियाली भी बढ़ाएंगे और कुछ भूजल भी। मई 2019 में यहीं पर एक और तीसरा छोटा तालाब भी बनवा दिया ।
फरवरी, 2020 में आगर जिले के आमला व महारुंडी गांवों में 80 फीट लम्बे 2 चौकडैम बनाये। सारंगाखेड़ी में वर्षों से टूटे पड़े एक चौकडैम को न सिर्फ ठीक किया बल्कि उसको कुछ ऊंचा करा दिया व उसके जल निकास मार्ग को कुछ चौड़ा व गहरा करा दिया ताकि उसके टूटने की सम्भावना खत्म हो जाये। महारूंडी गांव में ही एक घन मीटर क्षमता वाली लगभग 100 खंतियां बनवा दीं। एक भराव में ये एक लाख लीटर वर्षा जल भूमि में डाल देंगी। यदि एक वर्षा ऋतु में 15 बार भरें तो 15 लाख लीटर जमीन में डाल देंगी।
यहीं पर गांव वालों के अनुरोध पर एक नाले में वर्षों पहले रखे गए पानी निकालने के एक मीटर व्यास के तीन कतारों में रखे 6 पाइपों के ऊपर कच्ची सड़क का निर्माण करा दिया ताकि वर्षा ऋतु में गाँव वालों को नाले में बहते हुए पानी के अंदर न जाना पड़े। यहां सरकार द्वारा एक पक्की पुलिया का निर्माण किया जाना था जो वर्षों से लंबित है।
जितने भी अभी तक तालाब बनाये उनमें वर्षा जल पहुंचाने हेतु जलागम क्षेत्र को अधिकतम घेरते हुए चौनल भी खोदकर तालाबों तक पहुंचाए ताकि अधिकतम वर्षा जल उनमें जाए। क्षेत्रानुसार कईयों के चारो ओर गहरी नालियां और वर्षा जल लाने वाले रास्तों/चौनेलो में उचित दूरी पर कई कई गड्ढे बनवाए ताकि कुछ भूमि क्षरण रुके और वर्षा जल भी अपनी कुछ कुछ गाद इनमें छोघ्कर साफ होकर तालाब में जाये। विरमानी इन कार्यो के लिए अधिकतर गाँव निवासियों के घरों में ही पेइंग गेस्ट हो जाते हैं। इससे न सिर्फ कार्य क्षेत्र के नजदीक होते हैं बल्कि किसी पर अपनी आवश्यकताओं व खानपान हेतु बोझ भी नहीं डालते और गाँव वालों को कुछ रोजगार भी मुहैया कराते हैं। गाँव वालों के कार्यक्रमों शादी-सगाई आदि में भी हिस्सा लेते हैं। वीरमानी ने ये सब कार्य अपने स्वयं के धन व सुपरविजन में कराये।
उनका कहना है कि भगवन की इच्छा से वे आगे भी पर्यावरण और अन्य कार्यों में लगे रहेंगे। इस से मन को बड़ी संतुष्टि व आह्लाद मिलता है। सुदूर गाँवों में लोगों को घर बैठे काम मिलने से अच्छा भी लगता है क्योंकि पहाड़ी व अन्य दुर्गम क्षेत्र के गाँवों से लोगों के पलायन का एक कारण रोजगार का न मिलना भी है। उनका मानना है कि वे गिलहरी की भांति कुछ तो बालू समुद्र में डाल रहे हैं।
हिमांशु भट्ट