बात अगस्त 1977 की है। खगोलविज्ञानियों ने सुदूर अंतरिक्ष से आ रहे एक असामान्य से रेडियो सिग्नल को सहसा क्या देखा कि पूरी दुनिया के खगोलविज्ञानियों में परग्रही सभ्यताओं के वजूद को लेकर बहस छिड़ गई। इसका नामकरण ‘वाऊ सिग्नल’ किया गया। यह एक संकीर्ण यानी नैरो बैंड रेडियो सिग्नल था जिसे 15 अगस्त 1977 को अमेरिका के ओहियो विश्वविद्यालय के रेडियो टेलीस्कोप से प्राप्त किया गया था।
यह टेलीस्कोप परग्रही बुद्धिमान सभ्यताओं की खोज( SETI= Search for Extraterrestrial Intelligence ) में लगाया गया था। खगोलविज्ञानी जेरी एहमान ने इससे प्राप्त सिग्नल के कम्प्यूटर प्रिंट आउट – 6 EQUJ5 पर कलम से घेरा बनाकर लिखा वाऊ ( wow) और तभी से यह पूरी दूनिया में एलिएन अस्तित्व की खोज को लेकर एक जुमला बन गया। मगर यह सिग्नल बस वही एक बार सुना गया था और दुबारा कभी सुनाई नहीं दिया। खोजबीन जारी रही किंतु वैसा ही एक सिग्नल वर्ष 2020 में सुनाई पड़ा जिसे ‘वाऊ सिग्नल 2020’ कहा जा रहा है।
इस नए सिग्नल को भी सूर्य के निकटतम तारे प्रोक्जिमा सेंटौरी से आने वाला बताया जा रहा है। 17 दिसम्बर, 2020 मे गार्जियन समाचार पत्र में विज्ञान संपादक इयान सैम्पल ने एक स्टोरी ब्रेक की जिससे आम लोगों को इस नए सिग्नल की जानकारी हुई। इस नए सिग्नल को लेकर दुनियाभर के खगोलविज्ञानियों की दिलचस्पी इस बात को लेकर थी कि इसे 982.002 मेगाहर्ट्स पर सुना गया था जो अंतरिक्षीय दूरी के हिसाब से हमारे बहुत करीब की थी। यह प्रोक्जिमा सेंटौरी की दिशा की ओर संकेत कर रही थी यानी हमसे लगभग केवल चार प्रकाशवर्ष दूर।
दुनिया के अब तक के सबसे बड़े परग्रही सभ्यता खोज के वैज्ञानिक अभियान ‘ब्रेकथ्रू लिसेन’ के वैज्ञानिकों ने इस संकेत को 29 अप्रैल 2019 को ऑस्ट्रेलिया की पार्केस ऑब्जर्वेटरी में भांपा। गार्जियन सामाचार पत्र ने चूंकि वैज्ञानिकों का नाम नहीं छापा था इसलिए समझा गया कि किसी ने नाम न छापने की शर्त पर खबर लीक कर दी थी। किन्तु जल्दी ही इस खबर की सच्चाई सत्यापित हो गई।
साइंटिफिक अमेरिकन ने इसी खबर के संदर्भ में बीते वर्ष 18 दिसम्बर को जोनाथन ओ कालघन और ली बिलिंग्स के संयुक्त नाम से एक लेख प्रकाशित किया। इसके कुछ दिनो बाद, नेशनल जियोग्राफिक ने भी एक विस्तृत लेख प्रकाशित किया। इन लेखों ने दुनियाभर के वैज्ञानिकों में ‘वाऊ सिग्नल’ को लेकर एक तीव्र अभिरूचि जगा दी है। मगर क्या यह सचमुच किसी एलियन सभ्यता का संपर्क संकेत है। इसको लेकर वैज्ञानिकों में अभी मतभेद है।
पेन्न स्टेट यूनवर्सिटी, अमेरिका की वैज्ञानिक सोफिया शेख के अनुसार अद्यावधि ऐसे सिग्नल केवल मानव जनित प्रौद्योगिकी की देन रहे हैं। हमारे वाई-फाई, सेल टावर, जीपीएस और सैटेलाइट रेडियो ऐसे ही सिग्नल उत्पन्न करते हैं। इसलिए किसी बाह्य अंतरिक्ष सभ्यता से आ रहे सिग्नल और हमारी किसी प्रौद्योगिकी से उपजे संकेतों में विभेद कर पाना बहुत मुश्किल है। किसी भी नए सिग्नल की कड़ी जांच परख जरूरी है। जहां तक ‘वाऊ सिग्नल’ की बात है, यह अभी तक के प्राप्त समान रेडियो संकेतों में सबसे अजीब है। अनेक फिल्टर जांचों में इसका अनूठापन देखा गया है।
वर्ष दिसम्बर 2020 में पाए गए ‘वाऊ सिग्नल’ सरीखे इस नए सिग्नल का नाम ‘बीएलसी 1’ (ब्रेकथ्रू लिसेन कैंडीडेट 1) रखा गया है। ब्रेकथ्रू लिसेन परियोजना के अंतर्गत प्रोक्जिमा सेंटौरी की जांच परख के दौरान पाया गया कि एक बहुत ही हल्का सिग्नल 982.002 मेगाहर्ट्स पर 30 मिनट के लंबे-लंबे प्रेक्षणों में 5 बार नोटिस किया गया। यह पूरा प्रेक्षण पार्केस टेलीस्कोप द्वारा 30 घंटे की अवधि में किया गया था। पहले तो ऐसा लगा की यह अंतरिक्ष से आने वाला कोई मानव-प्रौद्योगिकी जनित सिग्नल है। मगर अभी तक उसके मानव जनित होने का पुख्ता सबूत नहीं मिल सका है। तो क्या यह सिग्नल सचमुच किसी एलियन सभ्यता की देन है? इसकी खोजबीन अभी जारी है।
सन् 1977 के ‘वाऊ सिग्नल’ की ही तरह वर्ष 2020 का सिग्नल भी अभी तक दुबारा सुनाई नहीं दिया है। अब इंतजार अगले सिग्नल का है, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह प्रोक्जिमा सेंटौरी से ही आ रहा है या फिर इसका स्रोत कोई और है। खगोलविज्ञानी जैसन राइट का मानना है कि यह भी बहुत संभव है कि यह सिग्नल किसी दूसरे स्रोत से आया हो जो टेलीसकोप के दृश्य दायरे में उस समय प्रोक्जिमा सेंटौरी के सन्निकट रहा हो।
प्रोक्जिमा सेंटौरी हमारे सूर्य से सबसे पास का तारा है जो 4.2 प्रकाशवर्ष दूर है। वस्तुतः यह एक रक्ताभ वामन (रेड ड्वार्फ) है, जिसके दो ग्रह भी है। इसका एक ग्रह प्रोक्जिमा सेंटौरी-बी धरती से बस थोड़ा ही बड़ा है। मगर दूसरा ग्रह प्रोक्जिमा सेंटौरी-सी धरती से सात गुना बड़ा और विशालकाय है। यहां अभी तक जीवन के सबूत नहीं मिले हैं, क्योंकि यहां से आयनकारी विकिरण की लपटें उठती रहती है। इस क्षेत्र से दो बार आने वाले संकेतों ने ख्रगोलविज्ञानियों की अभिरूचि परग्रही जीवन की संभावनाओं में फिर से जगा दी है। धरती से इतर जीवन की संभावनाओं को टटोलने मे वैज्ञानिक जुटे हुए हैं। कौन जाने, ‘नक्षत्रों से कौन दे रहा निमंत्रण हमें मौन’, कवि की इस जिज्ञासा का समाधान हमें ‘वाऊ सिग्नल’ से मिल ही जाए।