21वीं सदी में पृथ्वी और उस की मिट्टी के संरक्षण, संवर्धन के लिए समूचा विश्व पहल कर रहा है, विश्व मिट्टी दिवस मनाकर और उसे बचाने के लिए आगे आया है। हमारे प्राचीन ग्रंथों में पृथ्वी को माता और मिट्टी को कन्या संबोधित कर उसे संवर्धित, संरक्षित किया गया है। इस संदर्भ में एक प्रसंग महाभारत में आया है।
‘‘माधव! तुम मेरा अंतिम संस्कार कुंवारी मिट्टी में ही करना।“ कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर बाणों से बिंधे पड़े हुए भीष्म पितामह ने श्री कृष्ण से अपनी अंतिम इच्छा में यही कहा था। श्रीकृष्ण को तिल की नोंक बराबर कुंवारी मिट्टी का कण मिला, जिस पर भीष्म पितामह का अग्नि संस्कार किया गया।
कुंवारी मिट्टी क्या
कुंवारी मिट्टी का तात्पर्य उस भूमि से है जिस पर कभी किसी का अंतिम संस्कार न किया गया हो। शरशैय्या पर पड़े भीष्म पितामह की अंतिम इच्छा में ‘कुंवारी मिट्टी’ का महत्व आज के पर्यावरणविद भली-भांति समझते हैं। समूची दुनिया मिट्टी को बचाए रखने के लिए एकजुट हुई है। इसी के साथ हर बरस 5 दिसंबर को ‘‘विश्व मृदा दिवस’’ मनाने की शुरुआत हुई है। मृदा को समझने के लिए हम कह सकते हैं कि जैसे हमारा शरीर मिट्टी से बना है और शरीर की त्वचा मृदा है।
मिट्टी और मृदा को क्या बचाना! वह तो सारी पृथ्वी में है। हम ऐसा कह सकते हैं। लेकिन खेती-किसानी करने वाले किसान, वैज्ञानिक, पर्यावरणविद मिट्टी का मोल जानते हैं। धरती पर इंसान के सुखद भविष्य के लिए मिट्टी और मृदा को बचाए रखना निहायत जरूरी है। मिट्टी के बिना खाद्य सुरक्षा की परिकल्पना साकार नहीं हो सकती। प्रकृति के अनुरूप मिट्टी को उसके मूल स्वरूप में बनाए रखने के लिए हमें काम करना होगा ताकि मिट्टी की उर्वरता बनी रहे और उसमें उपजने वाला अन्न हमारा सतत पोषण करता रहे।
जीवित संसाधन है मृदा
आधुनिकता के फेर में इंसान ने मिट्टी के महत्व को नहीं समझा था। खाद्य उत्पादन बढ़ाने के लिए रसायनिक उर्वरक और कीटनाशक के अंधाधुंध उपयोग से मिट्टी की संरचना में बिगाड़ हो रहा है। ऐसी मिट्टी में उपजने वाली फसल भी हमें पर्याप्त पोषण नहीं दे पा रही है।
दरअसल मिट्टी में जो पोषक तत्व होते हैं वही फसलों से होकर उपजने वाले अनाज में समाहित होते हैं। रसायन मिट्टी की गुणवत्ता को खत्म कर देते हैं और ऐसी गुणवत्ता विहीन जमीन पर होने वाली फसलों के सेवन से इंसान भी बीमार होने लगा है।
मृदा एक जीवित संसाधन हैं जिसका हमारी धरती पर 25 फ़ीसदी से ज़्यादा आश्रय स्थल है। इनमें पनपने वाले पौधों की 80 प्रतिशत प्रजातियों को ही हम जान सके हैं, वहीं हम मृदा में निवास करने वाले एक फ़ीसदी सूक्ष्मजीवों के बारे में जान सके हैं। 90 फीसदी जीवित जीव अपने समूचे जीवन चक्र के लिए मृदा पर आश्रित रहते हैं। मिट्टी में रहने वाले सूक्ष्मजीव प्रदूषित पदार्थों को विखंडित कर देते हैं। यही सूक्ष्मजीव मृदा में कार्बन संग्रहण में मदद करते हैं।
कैसे बनती है मृदा
मृदा को बनने में सैकड़ों साल लगते हैं। वास्तव में मृदा खनिज, जल, वायु, कार्बनिक पदार्थ और अनगिनत जीवों के अवशेषों का जटिल मिश्रण है। दूसरे शब्दों में मृदा प्राकृतिक तत्वों के संयोजन से बना हुआ एक ऐसा तत्व है जिसमें जीवित पदार्थ तथा पौधों को पोषित करने की क्षमता होती है। मृदा लंबे समय में बनती है जिसमें स्थलमंडल, वायुमंडल, जलमंडल तथा जीवमंडल अपना अपना योगदान देते हैं।
मृदा निर्माण की प्रक्रिया का आरंभ पैतृक चट्टान के अपरदन से होता है। चट्टानों में विघटन के कारण विघटित चट्टानों के रंध्रों में गैसे, जल आदि मिल जाते हैं, धीरे-धीरे इनमें कई निकृष्ट पौधे व सूक्ष्मजीव निवास करने लगते हैं। सूक्ष्म जीवों के अवशेषों से इस में ह्यमस भी शामिल हों जाते हैं। बाद में इसमें झाड़ियां एवं वृक्ष के उगने से उनकी जड़ों के साथ भूमि के नीचे जीव जंतु के निवास नीचे की ओर चले जाते हैं इस से नीचे की मृदा ऊपर आती है और ऊपर की मृदा नीचे चली जाती है। इस प्रक्रिया से इसका स्वरूप एक स्पंज के समान हो जाता है और तब एक परिपक्व मृदा का निर्माण होता है।
2021 की थीम- मृदा दिवस मनाने का उद्देश्य लोगों का ध्यान मृदा संरक्षण और टिकाऊ प्रबंधन की ओर लाना है। मिट्टी के क्षरण के बारे में जागरूकता पैदा करना है। यह एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या है, जिसे मिट्टी की स्थिति में गिरावट के रूप में जाना जाता है। उद्योगों द्वारा पर्यावरणीय मानकों के प्रति लापरवाही बरतना व कृषि भूमि के कुप्रबंधन से मिट्टी की स्थिति खराब हो रही है जिसका समुचित प्रबंधन करना है।
खाद्य और कृषि संगठन के अंतर्गत मृदा दिवस मनाया जाता है। 2021 के मृदा दिवस की थीम है, ‘‘हाल्ट साइल सैलिनाइजेशन, बूस्ट साइल प्रोडक्टिविटी अर्थात मृदा लवणीकरण रोके, मृदा उत्पादकता बढ़ाएं।’’
मिट्टी, मृदा जीवन जगत के लिए सबसे महत्वपूर्ण है, जिसमें पेड़ पौधों का विकास होता है, कई कीड़े मकोड़े को रहने की जगह है। यह भोजन, कपड़े, आश्रय और चिकित्सा सहित चार आवश्यक जीवित कारकों का स्रोत है इस लिए मिट्टी के नुकसान के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मृदा दिवस मनाया जाता है।
मिट्टी को जीवंत रखने और मिट्टी के जैव विविधता की रक्षा कर हम पारिस्थितिकी तंत्र को बचाए रख सकते हैं। लोग मिट्टी के महत्व को समझें और इसके प्रति जागृत-जागरूक हो यह सुखद भविष्य के लिए जरूरी है। इसलिए जैविक खेती को सर्वोपरि महत्व दिया जा रहा है, ताकि हमारी मृदा स्वस्थ बनी रहे और हमें सतत पोषण देती रहे।
रविन्द्र गिन्नौरे