विज्ञान तत्वदर्शी स्व. शुकदेव प्रसाद

प्रख्यात विज्ञान लेखक सोवियत लैंड नेहरु अवार्ड से सम्मानित शुकदेव प्रसाद ने दुनिया को अलविदा कह दिया। छोटा बघाड़ा स्थित निवास में इसी 23 मई को उन्हें हार्ट अटैक आया और उनका निधन हो गया।
हिंदी-विज्ञान के सभी पत्रिकाओ में प्रकाशित लेख सभी विज्ञान प्रेमियों के लिए मार्गदर्शक है। उन्हें किताबों से अत्यधिक लगाव था। किताबों से अधिक लगाव के कारण उन्हें गुदरी के लाल कहा जाता है । उनसे मेरी पहली मुलाक़ात आईआईटी, रुड़की में 6-7 दिसंबर 2011 में एक राजभाषा विज्ञान संगोष्ठी में हुआ। उस समय रुड़की का तापमान 5-6 डिग्री पर था, लेकिन मुझे जाना इसलिए आवश्यक था कि हमने हिंदी दिवस के अवसर पर 14 सितम्बर 2004 को नाभिकीय रिएक्टर के विषयां के अंतर्गत, संगलन रिएक्टर क़ो परिषद के इस कार्यक्रम के संयोजक व भाभा एटामिक रिसर्च सेंटर के वरिष्ठ वैज्ञानिक श्री सत्य प्रभात प्रभाकर (जो इस समय वैज्ञानिक पत्रिका के मुख्य संपादक हैं ) ने इस वार्ता के लिए बीएआरसी के सभा गृह में हुई थी, उसमें बीएआरसी के तत्कालीन आदरणीय निदेशक महोदय व हिंदी विज्ञान साहित्य परिषद के प्रमुख व अन्य परमाणु वैज्ञानिक भी उपस्थित थे, जिसमें परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व प्रमुख डॉ. रतन कुमार सिन्हा भी मंच पर उपस्थित थे। लेकिन संगलन रिएक्टर पर जो वार्ता दी थी, वो मैंने जब उनकी पुस्तक ऊर्जा संसाधनों की खोज में नाभिकीय संगलन का एक लेख पढ़ा।
बाद में मैं उसका बहुत अध्ययन किया और उसे हिंदी विज्ञान साहित्य परिषद द्वारा आयोजित डॉ. होमी भाभा लेख प्रतियोगिता 2002 में भेज दिया। लेख को परमाणु रिएक्टर विषय के अंतर्गत वार्ता के लिए श्री प्रभाकर द्वारा लेख को चुनने के कारण हुआ।
विज्ञान प्रगति में उनके इस विषय पर उनके कई लेख पढ़े और उनके संपर्क सूत्र से मोबाइल का नम्बर मिला व जब वार्ताकार व सत्र के अध्यक्ष की सूची में नाम देखा तो फोन पर इस सम्बन्ध में बाते हुई और संगोष्ठी में जाने के लिए प्रोत्साहित किया।
उनसे इस वजह से उनसे मिलने हेतु रुड़की जाने का मन बनाया व उस समय अपने विभाग के प्रमुख से अनुमति लेकर रुड़की गया व सुबह उनसे मुलाक़ात हुई व उसी रात मुझे उन्होंने अपने रूम में आमंत्रित किया व मुझे उन्होंने ऊर्जा व विज्ञान के बारे मेँ बहुत कुछ बताया। उनके अंदर एक बहुत अच्छी खूबी दिखी उनके पास एक विज्ञान की डिक्शनरी थी जिसमे आप किसी भी विज्ञान के विषय पर पूछ लें सभी के बारे में उनकी जानकारी बेमिसाल थी। यानि आप विज्ञान के किसी शाखा पर सवाल कर लें, उसपर वो आपको बहुत अच्छी जानकारी देते थे। इसलिए वो सैकड़ो हिंदी विज्ञान की पुस्तक भी अपने इसी काबिलियत के कारण लिखीख् जो हजारों हिंदी विज्ञान प्रेमीयों के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
जब मैंने अपनी पत्रिका वैज्ञानिक के बारे में बताया तो तुरंत ही उन्होंने उसके कर्णधार संपादक डॉ. कोठियालजी का नाम लिया व उनके बारे में भी बहुत अच्छी बातें बताई व उनके काबिलियत की तारीफ की।
पुस्तकालय में मैंने जितना भी विज्ञान का पुस्तक पढ़ा उसमें अधिकतर स्व. शुकदेव प्रसाद की ही पुस्तक थी जो बहुत ही रूचिकर व वैज्ञानिक ज्ञान से परिपूर्ण थीं। यहां तक की इंडियन जर्नल आफ़ साइंस कम्युनिकेशन में भी उनके विज्ञान कथा व शोध पत्र पढ़ा।
उसके बाद मेरी दूसरी मुलाक़ात विज्ञान परिषद प्रयाग में परिषद के शताब्दी समापन समारोह में हुई। मैंने उन्हे नहीं देखा, लेकिन उन्होंने ही पीछे से पूछा क्या गोस्वामी क्या हाल है। बहुत सारी विज्ञान की बातें हुई। यानि हिंदी विज्ञान व विज्ञान लेखकों का पूरा ख्याल रखते थे। सचमुच नवीन विज्ञान लेखकों के लिए अपने दिल में कितना प्यार था उसे शब्दों में बया करना मुश्किल है।
आज वो इस दुनिया से अलविदा हुए हैं लेकिन उनके विभिन्न विज्ञान लेखों से विज्ञान लेखन एक नया खोज लेकर आएगी। विज्ञान लेखन में परिवृद्धि के लिए उनके प्रयास अनुकरणीय हं।ै मैं उनके आकस्मिक निधन से भावपूर्ण श्रद्धांजलि देता हूं व ईश्वर से उनकी आत्मा की शांति की प्रार्थना करता हूं. जहाँ न जाय विज्ञान का रवि, वहां जरूर जायगा ऐ विज्ञान तत्वदर्शी।
                                                                                 संजय गोस्वामी
अणशक्ति नगर, मुंबई-94