पृथ्वी दिवस पर कुछ भी कहने से पूर्व हमें पृथ्वी के विषय में जानना बहुत आवश्यक है। पृथ्वी सौर मण्डल के ग्रहों में से तीसरे स्थान का ग्रह है। यह एक गैसीय पिण्ड के रूप में था। प्रारंभ में आग के गोले के रूप में थी। कालान्तर जब यह वातावरण के संपर्क में आयी और इसका तापमान जो उस समय 1200 डिग्री सैल्सियस था, फिर वह शनै-शनै ठंडा हुआ और ऊपरी सतह ठण्डक पाकर सिकुड़ने लगी तभी यह पठार, समतल, पर्वत का आकार लेने लगी। और भूमिगत जल के कारण नदी, झील का निर्माण हुआ। इसके मुख्य रूप से 4 सतह हैं।
1. बाहरी आवरण, 2. मध्य आवरण, 3. भीतरी आवरण, 4. भू – पर्पटी
पृथ्वी की आयु
भूर्गभशास्त्री और वैज्ञानिकों के अनुसार कार्बन डेटिंग रेडियो कार्बन डेटिंग तकनीकी का अविष्कार 1949 में शिकागो विश्वविद्यालय, अमेरिका में बिलियर्ड लिबी और उनके साथियों द्वारा किया गया) के माध्यम से हमारी पृथ्वी की अनुमानित आयु 4.543 अरब वर्ष आंकी गई है। पृथ्वी की कार्बन डेटिंग के माध्यम से अनुमानित आयु को और अच्छी तरह समझने के लिये कुछ और आंकडे़, यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ, किस कालखण्ड में पृथ्वी पर क्या वनस्पतीय व जीवन हुआ करते थे। पूरे ब्रहमाण्ड पर जीवन मात्र पृथ्वी पर ही संभव है। किसी और गृह पर नहीं।
1. प्री -कैम्ब्रीयन ;च्तम – ब्ंउइतपंदद्ध. 4.500 लाख वर्ष पूर्व। वनस्पति – सी बीड्स। जीवन – जलीय जीवन।
2. कैम्ब्रीयन ;ब्ंउइतपंदद्ध- 53.4 लाख वर्ष पूर्व। वनस्पति – पेड़ पौधे, जीवन – पशु – मछली।
3.ओर्डोविसिन ;व्तकवअपबपंदद्ध . 41.6 लाख वर्ष पूर्व। वनास्पति – प्लांट लाईफ, जीवन- मौलस्क, सी लिली स्टार फिश।
4. सिलियूरियन ;ैपसपनतंपदद्ध – 24.6 लाख वर्ष पूर्व। वनस्पति – पत्तियां विहीन पौधे, फॉसिल, जीवन-जलीय।
5. डेवोनियन ;क्मअवदपंदद्ध – 60.30 लाख वर्ष पूर्व। वनस्पति – हरे पौधे, झाड़ियां। जीवन – मछली, शार्क 20 फिट तक लम्बी।
6. कार्बोनिफेरस
;ब्ंतइवदपवितमवननेद्ध – 60 लाख वर्ष पूर्व। वनस्पति – बडे़-बडे़ एवग्रीन वृक्ष। जीवन- जलीय जीवन।
7. पेरिमियन ;च्मतउंपदद्ध -40 लाख वर्ष पूर्व। वनस्पति – छोटे-छोटे वृक्ष। जीवन – जलीय व थलीय जीवन।
8. ट्राईसिक ;ज्तपेंपबद्ध – 50 लाख वर्ष पूर्व। वनस्पति – प्लांट लाईफ प्रारंभ। जीवन – सरीसर्प, जलीय जीव।
9. ज्यूरासिक ;श्रनतेंपबद्ध -140 से 20 लाख वर्ष। वनस्पति – कोनीफायर, फर्न, साईकास – सरिसर्प। जीवन – डायनोसार।
10. क्रिटेसियस
;ब्तमंजंबवनेद्ध – 145 से 66 लाख वर्ष। वनस्पति – फिग, पोपुकर, पराग युक्त फूलवाले वृक्ष। जीवन – आर्चिन जलीय।
11. इकोसीन$ पेलेओसीन ;म्बवबमदम़च्मसमवबमदमद्ध 140 से 20 लाख वर्ष। वनस्पति – फूलदार वृक्ष – जंगल। जीवन – जलीय जीवन समाप्ति की और प्रारंभ स्तनधारी जीव।
12. ओलिगोसिन
;व्सपहवबमदमद्ध- 33.9 से 13.0 लाख वर्ष पूर्व। वनस्पति – ठन्डे मौसम के घास के मैदान। जीवन – कैंकडे़ – घोंघा।
13. मियोसिन ;डपवबमदमद्ध. 23.03 से 5.33 लाख वर्ष पूर्व। वनस्पति – मैपल, पोपलर ट्री। जीवन – बोनी फिश, शार्क।
14. प्लीओसिन ;च्सपवबमदमद्ध – 5.33 से 2.50 लाख वर्ष पूर्व। वनस्पति – मैडेन हेयर प्रजाति वृक्ष। जीवन – जलीय, थलीय जीव।
15. प्लेसिओस्टोसीन – ;च्समपवबमवेजबमदमद्ध – 1.6 लाख वर्ष पूर्व। वनस्पति – आज की तुलना मे मरीन लाईफ बेहतर। जीवन – हाथी, घोड़े।
16. होलोसिन ;भ्वसवबमदमद्ध. 10 से 11.700 लाख वर्ष। वनस्पति – कृषि, घरेलू। जीवन – खेतिहर पशु, जलीय थलीय जीवन।
दोस्तों, ये पृथ्वी की आयु का अनुमानित लेखा है किस कालखण्ड में कौन सा जीवन रहा होगा। यह सत्यता के कितने करीब है यह कहना नामुमकिन है क्योंकि यह कार्बन डेटिंग पद्यति से निकाले गये अनुमानित आंकड़े हैं । इसके अतिरिक्त पृथ्वी पर अनके मंडल चक्र भी हैं। वे इस प्रकार है।
1. स्ट्राटोस्फीयर, 2. मिसोस्फीयर, 3. थर्मोस्फीयर, 4. एक्सोस्फीयर, 5. आईनोस्फीयर, 6. एटमोस्फीयर
ये सभी मिलकर पृथ्वी की संरचना में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
पृथ्वी दिवस की प्रासंगिता
मानव स्वभाव है कि जब भी हमारी किसी भी अमूल्य वस्तु का क्षरण होता है तभी हम उसे संचित करने में लग जाते है पृथ्वी के सम्बंध मैं भी यही उक्ति कार्य की है। पहले पृथ्वी और उसकी सम्पदा, आवश्यक तत्व हमारी आवष्यकता से अधिक थे। हमारी सभी जरूरतें परिपूर्ण हो रही थीं। समय के साथ जनसंख्या का बिस्फोटक स्वरूप ने आवश्यकतायें बढ़ा दी पर हमारी पृथ्वी रूपी चादर तो उतनी ही थी। चादर छोटी पड़ने लगी कभी पैर खुल जाते कभी सिर।
तभी मानवीय चेतना में, जागृति का संचार हुआ, हम इस दिशा में सोचने पर मजबूर हुये। सोचा कि सारा वर्ष नहीं तो कम से कम एक दिन तो पृथ्वी को समर्पित करें। जन चेतना जागृत कर पृथ्वी क्षरण पर विचार करें।
पृथ्वी दिवस एक वार्षिक आयोजन है। इसका प्रार्दुभाव 22 अप्रेल 1970 से प्रतिवर्ष हुआ। 192 देशोँ में प्रतिवर्ष इस दिन पृथ्वी के प्रति जनचेतना फैलाने का कार्य किया जाता है। निश्चित ही इस दिन की पहचान अन्य दिवसों के समान पाश्चात्य देशों से मिली है। इस एक दिन पृथ्वी का समर्पित कर सम्भवतः अपनी लापरवाही का प्रायश्चितत कर हम सजगता, जन- जागरण में चेतना जागृत करने का प्रयास करते हैं। पृथ्वी की उपयोगिता अपने जीवन में कारगर उपाय सुझाने पर बल देते हैं ।
पृथ्वी कल और आज
सम्भवतः यह इस विषय का सबसे अधिक आवश्यक और संवेदनशील तथ्य है। पृथ्वी की स्थिति को हम यदि अपने परिवार की कसौटी पर कसें तो पाएंगे कि, एक उक्ति जो अक्सर देखी और सुनी जाती है। कि, छोटा परिवार, सुखी परिवार या इसे यूँ समझे कि, सीमित लोग, पर्याप्त संसाधन जीवन को खुशहाल रखने का मूल मंत्र है, लेकिन जहां संसाधन उतने ही और उपभोक्ता बढ़ जाएँ, वहाँ इस तरह की रस्सा कसी होना लाजिमी है।
अधिक जनसंख्या अधिक दोहन का परिणाम हम देख रहे हैं। कांक्रीट के जंगलों के विस्तार और और प्राकृतिक क्षरण जारी है सभी संसाधन घट रहे हैं। ग्रीष्म ऋतु मैं अक्सर सुनने में आता है अमुक जगह पानी की मात्रा घट गई। गत वर्ष शिमला में मात्र 10 दिन का ही भूमिगत पानी शेष था। खबर यह भी थी कि, यदि समय पर उचित वर्षा न हुई तो जल संकट अपने पैर पसार लेगा।
जंगलों के दोहन से पर्यावरण निरन्तर क्षतिग्रस्त हो रहा है या यूं कहें कि हमारा पर्यावरण आज वेंटिलेटर पर है तो अतिश्योक्ति न होगी, जिसे हम स्वयं ही नित प्रतिदिन बीमार कर रहे हैं, जंगल काट रहे हैं ।
ज्ञात हो कि, वृक्षों की जड़ों में पानी संचित होकर भूमिगत जल संग्रह होता है। जड़ों से मिट्टी का क्षरण भी बचता है। ये एक लम्बी चैन व्यवस्था (श्रंखला) है। जो हमारी प्राण वायु से लेकर हमारी खाद्य प्रणाली को भी प्रभावित करती है। पृथ्वी जब स्वयं बीमार हो रही हो तो वह हमारी आवश्यकता पूर्ति कैसे कर सकती है? क्या हमें पृथ्वी को इस स्थिति तक पहुँचाने के बाद भी उससे कोई मदद की उम्मीद रखनी चाहिये?
पृथ्वी पर स्वयं हमारे द्वारा किये जा रहे अत्याचार या दोहन की अधिकता का तमाशा हम आये दिन प्रकृति प्रकोप के रूप में देखते हैं। मौसम की विभीषिका, भूकंप, ज्वालामुखी का रौद्ररूप, नदियों में बाढ़, सूखा, सुनामी, केदारनाथ का जल प्लावन को हमें कभी भूलना नहीं चाहिये। ये विपित्तयां हमको हर पल चेता रहीं है कि, बस अब संभल जा मानव वरना तेरा विनाश तय है।
स्रोत : (1). ग्रेट वर्ल्ड एटलस – रीडर्स डाईजेस्ट (2). डी.के. विजुअल डिव्सनरी
कमल चंद्रा
भोपाल (मध्यप्रदेश)