प्रश्न :- मुझे ‘पर्यावरण ऊर्जा टाइम्स’ पढ़ने से क्या लाभ होगा?
उत्तरः अगर आप प्रत्यक्ष लाभ की बात करते हों, तो भी इस पत्रिका को पढ़कर आप इसमें उपलब्ध ज्ञान का उपयोग कर हजारों-लाखों का लाभ अर्जित कर सकते हैं। अथवा हजारों-लाखों रूपयों के नुकसान को कम कर सकते हैं, या फिर जो आपके जीवन लागत में वृद्धि हो रही है, उस लागत को आप कम कर सकते हैं। इस प्रकार के प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष आर्थिक लाभ के अलावे अन्य अनेकों प्रमुख सामाजिक एवं नैसर्गिक लाभ हैं।
चूॅंकि, पूरे ब्रह्मांड में केवल पृथ्वी पर प्रकृति ने एक ऐसा पर्यावरण दिया है, जिसके कारण जीवन सम्भव हुआ है। वर्तमान सभ्यता के दबाव ने भयावह पर्यावरणीय संकट उत्पन्न किया है, जिसके प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष परिणाम हरेक जीव, वनस्पति एवं मनुष्य पर है। इन दुष्प्रभावों के परिणामस्वरूप जीवन की लागत भी बहुत बढ़ गई है, और निरंतर बढ़ रही है।
इस पत्रिका के निरंतर पठन-पाठन से आप अनेकों ऐसी अद्भुत एवं अद्यतनआधुनिक जानकारियों, ज्ञान, विज्ञान, तकनीकी के बारे में जानकर अपने स्वयं के जीवन को लाभान्वित कर सकते हो और अपने संगी-साथियों को लाभान्वित कर सकते हैं। एक छात्र या एक गृहस्थ या एक उद्यमी या एक उद्योगपति या व्यवसायी के रूप में आपको इतनी सारी महत्वपूर्ण जानकारी एक साथ प्राप्त होती है जिनसे आप अपने कैरियर को भी सफल करने हेतु इसका काफी उपयोग कर सकते हो। इस प्रकार, पत्रिका के पठन-पाठन के इतने ढेर सारे लाभ हैं कि उन सबको एक साथ उल्लेख करना सीमित शब्दों में सम्भव नहीं है। आप पत्रिका के पुराने अंकों को पढ़कर स्वयं अनुभव कर सकते हैं कि यह कितनी ज्यादा उपयोगी है।
प्रश्न : यह पत्रिका किन लोगों के द्वारा पढ़ा जाना ज्यादा उपयोगी है?
उत्तर : पत्रिका में पर्यावरण तथा ऊर्जा संरक्षण के इतने विशाल आयामों का प्रकाशन किया जाता है कि यह हरेक नागरिक के पढ़ने के लिए उपयोगी है। चाहे वह छात्र हो, गृहस्थ हो, उद्यमी हो, व्यापारी हो, उद्योगपति हो, किसान हो, अधिकारी हो, कर्मचारी हो, वकील हो, डॉक्टर हो, नेता हो, मंत्री हो या मजदूर हो, पत्रिका सबके लिए उपयोगी सामग्री लेकर आती है। चूॅंकि, पर्यावरण के बिना कोई जीवन सम्भव नहीं है, अतः यह सबके लिए उपयोगी है।
प्रश्न : पत्रिका का प्रकाशन मूल्य इतना अधिक क्यों है?
उत्तर : सर्वप्रथम महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि बाजार में उपलब्ध अधिकांशतः अन्य पत्रिकाएॅं व्यवसायिक लाभ के उद्येश्य से प्रकाशित होती हैं, जिनमें भारी मात्रा में व्यावसायिक विज्ञापन होता है। इन पत्रिकाओं में जन-कल्याण का कोई विशेष भाव नहीं होता। इनका प्रकाशन भी लाखों की संख्यामें होता है। इनमें प्रकाशित ज्यादातर सामग्रियॉं- राजनैतिक, मनोरंजन, अपराध, खेलकूद, समाचार आदि से संबंधित होते हैं, जिनका कोई दीर्घकालीन उपयोग जन-सामान्य के लिए नहीं होता।
जबकि, हमारी पत्रिका एक अभियान पत्रिका है। इसके ज्यादातर पाठक बुद्धिजीवी, पढ़े-लिखे लोग होते हैं। पत्रिका का व्यावसायिक उद्देश्य नहीं है, तदैव, विज्ञापन समर्थन बहुत कम ही प्राप्त होता है। पत्रिका को कहीं से अनुदान भी प्राप्त नहीं होता है। पत्रिका के प्रकाशन का व्यय तथा ‘पर्यावरण ऊर्जा संरक्षण अभियान’ का व्यय पत्रिका के सब्सक्रिप्सन से ही पूरा किया जाता है। इन्हीं कारणों से, सामान्य रूप से बाजार में उपलब्ध समाचार पत्रिकाओं या राजनीतिक पत्रिकाओं की तुलना में पत्रिका के मूल्य ज्यादा लगते हैं। किन्तु, यदि तकनीकी ज्ञान-विज्ञान पर प्रकाशित अंग्रेजी जर्नलों से तुलना की जावे तो आप पाएंगे कि पत्रिका के मूल्य ज्यादा नहीं हैं।
उदाहरण के तौर पर मिनरल मेटल बुलेटिन का मासिक अंक मूल्य 300 रूपए हैं जबकि हमारे अंक का मूल्य 90 रूपए है। उसके अतिरिक्त उन पत्रिकाओं में प्रकाशनार्थ सामग्री बहुत ही विपुल मात्रा में लगभग निःशुल्क उपलब्ध होती है। जबकि, हमारी पत्रिका में प्रकाशित तकनीकी ज्ञान एवं जानकारियों को एकत्र करने तथा उन्हें हिन्दी में अनुवाद करने, संपादित करने में भारी व्यय आता है। अभियान स्वरूप प्रकाशित इस पत्रिका को चूॅंकि अन्यत्र और कहीं से अनुदान प्राप्त नहीं होता और न ही आय के अन्य साधन हैं, अतः बढ़ते हुए कागज के मूल्य, छपाई लागत, डाक व्यय के साथ पत्रिका में कार्यरत तकनीकी अधिकारियों एवं कर्मचारियों के वेतन व्यय के साथ उपकरणों के रख-रखाव, विद्युत व्यय, संचार व्यय आदि को पत्रिका मूल्य से ही भरपाई करना होता है।
हमारा लक्ष्य है कि पत्रिका अपने प्रकाशन की लागत को भी यदि सब्सक्रिप्शन मूल्य से निकाल पाए तो यह अभियान जीवित रहेगा। इसलिए पत्रिका का प्रकाशन मूल्य यद्यपि थोड़ा ज्यादा लगता है, फिर भी इस प्रकाशन से कोई लाभ अर्जन अभी तक संस्था को नहीं हो रहा है और न ही भविष्य में ऐसी अपेक्षा है। संस्था द्वारा पत्रिका प्रकाशन के साथ जन-जागृति अभियान आयोजन करने में भी समय-समय पर कार्यक्रम किए जाते हैं। उस हेतु भी आंशिक व्यय पत्रिका के पाठक सदस्यता से पूर्ति किया जाता है। अभियान के महत्व एवं अनिवार्यता को देखते हुए पाठकों का इतना मूल्य सहयोग अपेक्षित है।
प्रश्न : पत्रिका का प्रकाशन हिन्दी भाषा में क्यों किया जाता है?
उत्तर : चूॅंकि, भारत वर्ष में आज भी ज्यादातर लोग हिन्दी भाषा को ही मूलतः व्यवहार में लाते हैं। इसके अतिरिक्त जिस प्रकार प्रदूषण के कारण पर्यावरण संकट में है, उसी प्रकार अंग्रेजी के आक्रमण से हिन्दी भाषा पर भी संकट उत्पन्न हो गया है। हिन्दी भाषी लोगों को, आसन्न पर्यावरण संकट, प्रदूषण के स्तर, धारणीय विकास, मौसम परिवर्तन, विज्ञान-प्रौद्योगिकी में तरक्की, पर्यावरणीय कानूनों आदि के बाबत् हिन्दी भाषा में जानकारी बहुत कम उपलब्ध है। जबकि पर्यावरण संकट से प्रभावित तथा पर्यावरणीय संकट पैदा करने में भी आम आदमी की भी उतनी ही भूमिका है, जितनी कि किसी शहरी, अंग्रेजी बोलने-लिखने, पढ़ने वाले व्यक्ति की एवं आम आदमी पर भी उतना ही दुष्प्रभाव है। इसलिए पर्यावरण को बचाने के लिए हरेक साधारण से साधारण व्यक्ति तक यह जानकारी, उसकी समझ वाली भाषा में पहुॅंचाना बहुत जरूरी है। इसलिए उसकी ही भाषा में इसे प्रकाशित किया जा रहा है।
प्रश्न : वर्तमान में पत्रिका किन-किन राज्यों में जाती है?
उत्तर : पत्रिका के अंक वैसे तो पूरे भारत में सभी राज्यों में प्रेषित किए जाते हैं, किन्तु प्रमुखतः हिन्दी भाषी राज्य यथा- छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, झारखंड, उड़ीसा, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, बिहार, बंगाल, महाराष्ट्र, गुजरात में ज्यादा प्रसारित है।
प्रश्न : पत्रिका के वर्तमान में पाठक किस वर्ग के लोग हैं?
उत्तर : पत्रिका के वर्तमान पाठकों में उद्योगपति, उद्यमी, अधिकारी, कर्मचारी, वैज्ञानक, छात्र, चिंतक, नीति नियोजक, वकील, डॉक्टर, गृहस्थ, किसान, मजदूर सभी वर्ग के लोग पढ़ते हैं।
प्रश्न : क्या पत्रिका का प्रकाशन नियमित है?
उत्तर : हॉं, पत्रिका का प्रकाशन पिछले 18 वर्षों से अधिक समय से निरंतर प्रतिमाह किया जा रहा है।
प्रश्न : क्या पत्रिका की प्रतियॉं न्यूज स्टैण्ड पर मिलती हैं?
उत्तर : जी नहीं। पत्रिका की प्रतियॉं न्यूज स्टैण्ड पर विक्रय हेतु उपलब्ध नहीं हैं। चूॅंकि इसे व्यावसायिक उद्देश्य से प्रकाशित न किया जाकर केवल अभियान स्वरूप सदस्यों के लिए प्रकाशित किया जा रहा है। न्यूज स्टैण्ड पर प्रेषित पत्रिकाओं में से बिना बिकी पत्रिकाओं को वापस संकलित करना एवं इस हेतु मानव श्रम को नियोजित करना ज्यादा दुष्कर एवं व्यय साध्य कार्य है। अतः पत्रिका को डाक से ही प्रेषित किया जाता है।
प्रश्न : क्या पत्रिका की पुरानी प्रतियॉं भी उपलब्ध हो सकती हैं?
उत्तर : जी हॉं, पत्रिका की पुरानी प्रतियॉं भी उपलब्ध हैं। पर वहीं सारे वर्षों के सारे अंकों की केवल मूल प्रतियॉं ही उपलब्ध हैं। जिन अंकों की अतिरिक्त प्रतिलिपियॉं नहीं हैं, उनकी स्कैन प्रतियॉं सी.डी. में प्रदाय की जाती हैं।स