मानसिक रोगों का उपचार सर्पगंधा से

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सर्पगंधा पादप का वानस्पतिक नाम राउल्फिया सर्पेंटिना है । यह एपोसाइनेसी कुल का सदस्य है । सर्पगंधा नाम से चौंकिए नहीं । सर्प से इसका कोई संबंध नहीं है । लगभग 70-80 वर्षों से सर्पगंधा एक ओषधीय पादप के रूप में विख्यात है । इसकी जड़ के अर्क से उच्चरक्त चाप की दवा वर्षों से बनाई जाती रही है । हिस्टीरिया की चिकित्सा में भी लाभदायक है । पत्तियों का रस आँखों की रोषनी बढ़ाने में कारगर होता है ।
सर्पगंधा पर खोज
सर्पगंधा एक बार पुनः अपने औषधीय गुणों के कारण अखबार की सुर्खियों में है । सर्पगंधा पादप अब मानसिक रोगों के लिए भी मुफीद है, इस तथ्य का खुलासा इलाहाबाद केन्द्रीय विष्वविद्यालय के भौतिकी विभाग के प्रोफेसर डॉ. के.एन.उत्तम और उनकी दो शोध छात्राओं-ष्वेता शर्मा और अभिसारिका भारती के शोध से हुआ है ।
शोध निर्देषक डॉ. के.एन.उत्तम ने बताया कि सर्पगंधा मनोविदलन नामक मानसिक रोग की भी औषधि है । यही नहीं, कई अन्य रोगों के लिए भी सर्पगंधा लाभदायक है। डॉ. उत्तम ने आगे बताते हुए कहा कि उनके निर्देषन में शोधछात्रा श्वेता शर्मा और अभिसारिका भारती ने मिलकर स्पेक्ट्रोस्कोपी तकनीक का इस्तेमाल करते हुए सर्पगंधा में पाये जाने वाले तत्वों का परीक्षण करने के दौरान पाया कि सर्पगंधा में सोडियम, पोटैषियम, मैग्नीज, लोहा, कैल्षियमए मैगनीषियमए मोलिब्डेनम, अल्युमिनियम आदि तत्व पाये जाते हैं ।
मानसिक रोगों पर
उपरोक्त तत्वों की उपस्थिति के कारण सर्पगंधा एण्टीहाइपरसेंटिव और ट्रॉक्किलाइजिंगएजेण्ट के रूप में इस्तेमाल किया जाता है । ‘‘इन तत्वों की जांँच के लिए प्रयोगषाला में एकदिष धारा आर्क प्रकाषिक उत्सर्जन स्पेक्ट्रोस्कोपी का निर्माण किया गया । इसके बाद सर्पगंधा की पत्ती और बीज को गर्मभट्टी में डालकर पानी को वाष्पित कर पाउडर के रूप में परिवर्तित किया । इसके बाद पाउडर को कार्बन इलेक्ट्रोड में भरकर उच्चताप पर गर्म किया गया । उत्सर्जित विकिरण का विष्लेषण किया गया । अब मानसिक रोगियों के लिए दवा तैयार की गई ।’’ शोधार्थियों ने बल देकर कहा कि यह दवा सिजोफ्रेनिया जैसी गंभीर बीमारी को नियंत्रित कर सकती है ।
सर्पगंधा के क्षार
डॉ. उत्तम के अनुसार इस शोधपत्र को स्प्रिंग नेचर पब्लिषिंग हाउस द्वारा प्रकाषित अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिका ‘नेषनल अकादमी साइंस लेटर्स’ के जनवरी 2020 के अंक में प्रकाषित करने के लिए चुना गया है। सूचना के अनुसार 55 से अधिक क्षार सर्पगंधा की जड़ में पाये जाते हैं और इसका 80 प्रतिषत जड़ की छाल में क्षार पाये जाते हैं । इस प्रकार सर्पगंधा की जड़ों में सर्वाधिक क्षार पाये जाता है। सर्पगंधा उष्ण कटिबंधीय हिमालय तथा हिमालय के निचले प्रदेषों में सिक्किम तक वितरित है । इसके अतिरिक्त असम, गोरखपुर प्रायदीपीय भारत में पष्चिमी तट, श्रीलंका, म्यानमार,मलेषिया, इण्डोनेषिया, चीन तथा जापान में भी पाये जाते हैं ।
इस शोध के लिए डॉ. उत्तम और उनकी दोनों शोध छात्राएॅ साधुवाद की पात्र हैं । अब ओषधि निर्माण कम्पनियों को आगे आकर व्यापारिक स्तर पर दवा को जन कल्याण के लिए बनाना चाहिए। यह समय की मॉँग भी है ।
 प्रेमचन्द्र श्रीवास्तव
‘अनुकम्पा’,वाई 2 सी, 115/6 त्रिवेणीपुरम्, झूँसी, प्रयागराज