कोरोना के कारण होने वाली खांसी आम खांसी नहीं होती। इस कारण लगातार खांसी हो सकती है यानी आपको एक घंटे या फिर उससे अधिक वक्त तक लगातार खांसी हो सकती है और 24 घंटों के भीतर कम से कम तीन बार इस तरह के दौरे पड़ सकते हैं। लेकिन अगर आपको खांसी में बलगम आता है तो ये चिंता की बात हो सकती है।
इस वायरस के कारण बुखार से शरीर का तापमान 37.8 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है जिस कारण व्यक्ति का शरीर गर्म हो सकता है और उसे ठंडी महसूस हो सकती है। व्यक्ति को शरीर में कंपकंपी भी महसूस हो सकती है। इसके कारण गले में खराश, सिरदर्द और डाएरिया भी हो सकता है। हाल में आए एक ताजा शोध के अनुसार कुछ खाने पर स्वाद महसूस न होना और किसी चीज की गंध का महसूस न होना भी कोरोना वायरस का लक्षण हो सकता है।
माना जा रहा है कोरोना वायरस के लक्षण दिखना शुरु होने में औसतन पांच दिन का वक्त लग सकता है लेकिन कुछ लोगों में ये वक्त कम भी हो सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार वायरस के शरीर में पहुंचने और लक्षण दिखने के बीच 14 दिनों तक का समय हो सकता है।
भर्ती होने की जरूरत कब?
जिन लोगों में कोरोना वायरस संक्रमण है उनमें से अधिकतर लोग आराम करने और पैरासिटामाल जैसी दर्द कम करने की दवा लेने से ठीक हो सकते हैं। अस्पताल में भर्ती होने की जरूरत तब होती है जब व्यक्ति को सांस लेने में दिक्कत आनी शुरू हो जाए। मरीज के फेफड़ों की जांच कर डाक्टर इस बात का पता लगाते हैं कि संक्रमण कितना बढ़ा है और क्या मरीज को आक्सीजन या वेंटिलेटर की जरूरत है। लेकिन इसमें मरीज को अस्पताल के आपात विभाग यानी ऐक्सीडंट ऐंड इमर्जेंसी में भर्ती होने की जरूरत नहीं होती।
भारत में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग की वेबसाइट पर कोरोना संक्रमण से जुड़ी हर जानकारी दी गई है। अगर मरीज को सांस लेने में काफी परेशानी हो रही है तो वो भारत सरकार के हेल्पलाइन नंबर 91-11-23978046 या फिर 24 घंटों चलने वाले टोल फ्री नंबर 1075 पर संपर्क कर सकते हैं। देश के विभिन्न राज्यों ने भी नागरिकों के लिए हेल्पलाइन शुरु किए हैं जहां जरूरत पर फोन किया जा सकता है।
इंटेंसिव केयर यूनिट (आईसीयू)
इंटेंसिव केयर यूनिट अस्पताल के खास वार्ड होते हैं जहां गंभीर रूप से बीमार मरीजों को रखा जाता है। यहां कोरोना वायरस के मरीजों के आक्सीजन की जरूरत को मुंह पर आक्सीजन मास्क लगा कर या फिर नाक में ट्यूब के जरिए पूरा किया जाता है। जो लोग गंभीर रूप से बीमार हैं उन्हं वेंटिलेटर पर रखा जाता है। यहां सीधे फेफड़ों तक आक्सीजन की अधिक सप्लाई पहुंचाई जाती है। इसके लिए मरीज के मुंह में ट्यूब लगाया जाता है या फिर नाक या गले में चीरा लगा कर वहां से फेफड़ों में आक्सीजन दिया जाता है।
56,000 संक्रमित लोगों के बारे में एकत्र की गई जानकारी आधारित विश्व स्वास्थ्य संगठन का एक अध्ययन बताता है कि – 6 फीसदी लोग इस वायरस के कारण गंभीर रूप से बीमार हुए। इनमें फेफड़े फेल होना, सेप्टिक शाक, आर्गन फेल होना और मौत का जोखिम था।
14 फीसदी लोगों में संक्रमण के गंभीर लक्षण देखे गए। इनमें सांस लेने में दिक्कत और जल्दी-जल्दी सांस लेने जैसी समस्या हुई। 80 फीसदी लोगों में संक्रमण के मामूली लक्षण देखे गए, जैसे बुखार और खांसी। कइयों में इसके कारण निमोनिया भी देखा गया।
कोरोना वायरस संक्रमण के कारण बूढ़ों और पहले से ही सांस की बीमारी (अस्थमा) से परेशान लोगों, मधुमेह और हृदय रोग जैसी परेशानियों का सामना करने वालों के गंभीर रूप से बीमार होने की आशंका अधिक होती है।
कोरोना वायरस का इलाज इस बात पर आधारित होता है कि मरीज के शरीर को सांस लेने में मदद की जाए और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जाए ताकि व्यक्ति का शरीर खुद वायरस से लड़ने में सक्षम हो जाए।
बचाव कैसे करें
हाथों को बार-बार साबुन और पानी से धोएं या सैनिटाइजर का इस्तेमाल करें। खांसते और छींकते वक्त डिस्पोजेबल टिशू का इस्तेमाल करें। इस्तेमाल किए गए टिशूज को फेंक दें, इसके बाद हाथ धो लें। टिशू नहीं है तो छींकते और खांसते वक्त अपने बाजू का इस्तेमाल करें। बिना हाथ धोए अपनी आंखों, नाक और मुॅंह को न छुएं। जो बीमार हैं, उनके सम्पर्क में न आने की पूरी कोशिश करें। सर्दी या फ्लू से संक्रमित लोगों के पास जाने से बचें। पूरी तरह से पका हुआ मांस या अंडा ही खाएं। जीवित जंगली या पालतू पशुओं से दूर रहें।
संक्रमित इलाके से आने पर बचाव
अगर आप संक्रमित इलाके से आए
हैं या किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में रहे हैं तो आपको अकेले रहने की सलाह दी जा सकती है।
ऐसे में घर पर रहें, आफिस, स्कूल या सार्वजनिक जगहों पर न जाएं, सार्वजनिक वाहन जैसे बस, ट्रेन, आटो या टैक्सी से यात्रा न करें, घर में मेहमानों को न बुलाएं, कोशिश करें कि घर का सामान किसी और से मंगाएं। अगर आप और भी लोगों के साथ रह रहे हैं तो ज्यादा सतर्कता बरतें। अलग कमरे में रहें और साझा रसोई व बाथरूम को लगातार साफ करें। 14 दिनों तक ऐसा करते रहें ताकि संक्रमण का खतरा कम हो सके।
अस्पताल स्टाफ के लिए सावधानी
संक्रमित मरीजों को अलग रखें और उनकी गतिविधियों को नियंत्रित करें। मेडिकल मास्क, दस्ताने और गाउन पहनें, आंखों की सुरक्षा का भी ख्याल रखें। मेडिकल उपकरणों को साफ रखें। मरीजों से सम्पर्क में आने के बाद हाथ साफ करें।
सोशल डिस्टेंसिंग क्या और क्यों?
जब कोरोना वायरस से संक्रमित कोई व्यक्ति खांसता या छींकता है तो उसके थूक के बेहद बारीक कण हवा में फैलते हैं। इन कणों में कोरोना वायरस के विषाणु होते हैं। संक्रमित व्यक्ति के नजदीक जाने पर ये विषाणुयुक्त कण सांस के रास्ते आपके शरीर में प्रवेश कर सकते हैं।
अगर आप किसी ऐसी जगह को छूते हैं, जहां ये कण गिरे हैं और फिर उसके बाद उसी हाथ से अपनी आंख, नाक या मुंह को छूते हैं तो ये कण आपके शरीर में पहुंचते हैं।
ऐसे में खांसते और छींकते वक्त टिश्यू का इस्तेमाल करना, बिना हाथ धोए अपने चेहरे को न छूना और संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से बचना इस वायरस को फैलने से रोकने के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। इसी कारण कोरोना से बचने के लिए लोगों को एक जगह पर अधिक लोग इकट्ठा न होने देने, एक दूसरे से दूरी बनाए रख कर बात करने या फिर हाथ न मिलाने के लिए कहा जा रहा है।
सोशल डिस्टेंसिंग हेतु एडवायजरी
भारत सरकार द्वारा जारी सोशल डिसटेंसिंग एडवायजरी के अनुसार जहां-जहां अधिक लोगों के एक दूसरे के संपर्क में आने की संभावना है उस पर सरकार ने प्रतिबंध लगा दिए हैं।
सभी शैक्षणिक संस्थानों (स्कूल, विश्वविद्यालय आदि), जिम, म्यूजियम, सामाजिक और सांस्कृतिक केंद्रों, स्विमिंग पूल और थिएटरों को बंद रखने की सलाह दी है। छात्रों को घरों में रहने की सलाह दी गई और उन्हें आनलाइन पढ़ाई करने को कहा गया है।
प्राइवेट क्षेत्र के संस्थान से कहा गया है कि हो सके तो अपने कर्मचारियों से घर से काम करवाएं।
संभव हो तो मिटिंग वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए करने पर जोर दिया गया है। बहुत जरूरी ना हो तो बड़ी बैठकों को स्थगित करने या उनमें लोगों की संख्या को कम करने की बात की गई है।
एक दूसरे से हाथ मिलाने और गले लगने से बचना चाहिए।
अत्यावश्यक वस्तुओं की खरीदी-बिक्री में लगे लोग ग्राहकों के साथ एक मीटर की दूरी बनाए रखें। साथ ही प्रशासन बाजारों में भीड़ कम करने के लिए कदम उठाएं। सभी अस्पतालों को कोविड-19 से जुड़े जरूरी प्रोटोकाल का पालन करना चाहिए। साथ ही परिवार, दोस्तों, बच्चों को अस्पताल में मरीजों के पास जाने न दें।
खुद संक्रमित होने की आशंका पर
डॉक्टर, फार्मेसी या अस्पताल जाने से बचें। अपने इलाके में मौजूद स्वास्थ्य कर्मी से फोन पर या ऑनलाइन जानकारी लें। आपको खुद को दूसरों से दूर रखने की सलाह दी जा सकती है। आपके बारे में जानकारी स्थानीय स्वास्थ्य टीमों के पास भेजी जा सकती है। कोविड 19 वायरस के लिए आपकी जांच की जा सकती है।
मास्क पहनना अब और जरूरी
विशेषज्ञों का यह समूह अब ये जानने के लिए शोध करेगा कि क्या कोरोना वायरस छींक के जरिए 6-8 मीटर से भी ज्यादा दूरी तक जा सकता है? अमरीका में हुए एक अध्ययन का कहना है कि कोविड-19 वायरस छींक के जरिए 6-8 मीटर की दूरी तक जा सकता है। कैंब्रिज में एमआईटी के शोधकर्ताओं ने ये देखने के लिए एक हाई स्पीड कैमरा और अन्य सेंसर इस्तेमाल किया कि असल में किसी के खांसने या छींकने के बाद क्या होता है। इसमें उन्होंने पाया कि सांस लेने से गैस का एक धुआं पैदा होता है जिसकी गति बहुत तेज होती है। इस गैस में कुछ अलग-अलग आकार की कुछ बूंदें भी होती हैं। इनमें जो सबसे छोटी बूंदें होती हैं वो सबसे ज्यादा दूर तक जाने की क्षमता रखती हैं।
प्रयोगशाला में किए गए इस अध्ययन से पता चला कि खांसी से निकलने वाली बूदें छह मीटर और आठ मीटर की दूरी तक जा सकती हैं। इस रिसर्च की अगुवाई करने वाली प्रोफेसर लिडिया बराबिया ने कहा, ‘जब हम सांस लेते, खांसते या छींकते हैं तो ये इससे निकलने वाली बूंदें काफी दूर तक जा सकती हैं। यहां तक कि पूरे कमरे में भी फैल सकती हैं। इसलिए दो मीटर वाली दूरी और ये सोचना कि बूंदें जमीन पर गिर जाएंगी, ये बहुत ज्यादा विश्वसनीय नहीं है। ये धारणा हमने बिना पूरी तरह नापतौल किए और सीधे देखे बनाई है।’
विश्व स्वास्थ्य संगठन के पूर्व निदेशक प्रोफेसर हेमैन कहते हैं कि एमआईटी की नई रिसर्च का मूल्यांकन किया जाएगा। नई रिसर्च से ऐसा लगता है कि मास्क पहनना सोशल डिस्टेंसिंग से कहीं ज्यादा प्रभावी होगा। वो मास्क को ठीक तरीके से पहने जान पर भी जोर देते हैं। वो कहते हैं, ‘मास्क में नाक वाले हिस्से पर एक सील होनी चाहिए क्योंकि अगर वो हिस्सा नम हो गया तो बूंदें अंदर जा सकती हैं। मास्क को उतारते वक्त भी सावधानी बरतनी होगी ताकि हाथों का संक्रमण न पहुंच जाए। मास्क लगातार पहना जाए।’
दवाइयों के जारी परीक्षण
यह सही है कि फिलहाल कोविड-19 के लिए कोई दवा नहीं है किंतु दुनिया भर में विभिन्न दवाइयों का परीक्षण चल रहा है और कुछ प्रयोगशालाएं इसके खिलाफ टीका विकसित करने के प्रयास में युद्ध स्तर पर जुटी हैं। ताजा रिपोर्ट के मुताबिक इस समय दुनिया की अलग-अलग संस्थाओं द्वारा 86 क्लीनिकल परीक्षण चल रहे हैं और जल्दी ही सकारात्मक परिणाम की उम्मीद है। आइए ऐसे कुछ प्रयासों पर नजर डालें।
जापानी फ्लू की औषधि
जापान की कंपनी फ्यूजीफिल्म टोयोमा केमिकल द्वारा विकसित एक औषधि ने कोविड-19 के कुछ हल्के-फुल्के और मध्यम तीव्रता के मामलों में उम्मीद जगाई है। यह एक वायरस-रोधी दवा है – फैविपिरेविर। जापान में इसका उपयोग फ्लू के उपचार में किया जाता है। हाल ही में इसे कोविड-19 के प्रायोगिक उपचार हेतु अनुमोदित किया गया है। अब तक इसका परीक्षण वुहान और शेनजेन में 340 मरीजों पर किया गया है और बताया गया है कि यह सुरक्षित है और उपचार में कारगर है।
यह दवा (फैविपिरेविर) कुछ वायरसों को अपनी संख्या बढ़ाने से रोकती है और इस तरह से यह बीमारी की अवधि को कम कर देती है और फेफड़ों की सेहत को बेहतर बनाती है। वैसे अभी इस अध्ययन का प्रकाशन किसी समकक्ष-समीक्षित शोध पत्रिका में नहीं हुआ है।
क्लोरोक्वीन और हायड्राक्सी- क्लोरोक्वीन
इन दवाइयों को मलेरिया, ल्यूपस और गठिया के उपचार हेतु मंजूरी मिली है। मनुष्यों और प्रायमेट जंतुओं की कोशिकाओं पर किए गए प्रारंभिक परीक्षण से संकेत मिला है कि ये दवाइयां कोविड-19 के इलाज में कारगर हो सकती हैं।
पूर्व (2005) में किए गए एक अध्ययन में पता चला था कि संवर्धित मानव कोशिकाओं का उपचार क्लोरोक्वीन से किया जाए तो SARS&CoV ब्वटका प्रसार थम जाता है। नया वायरस SARS&CoV&2 इससे मिलता- जुलता है। क्लोरोक्वीन SARS&CoVब्वटको मानव कोशिकाओं में प्रवेश करके संख्यावृद्धि करने से रोकती है। हाल में किए गए अध्ययनों से पता चला है कि क्लोरोक्वीन और उस पर आधारित हायड्राक्सी-क्लोरोक्वीन दोनों ही नए वायरस की संख्यावृद्धि पर भी रोक लगाती हैं।
फिलहाल चीन, दक्षिण कोरिया, फ्रांस और यूएस में कोविड-19 के कुछ मरीजों को ये दवाइयां दी गई हैं और परिणाम आशाजनक बताए जाते हैं। अब यूएस का खाद्य व औषधि प्रशासन इन दवाइयों का विधिवत क्लीनिकल परीक्षण शुरू करने वाला है। फरवरी में ऐसे 7 क्लीनिकल परीक्षणों का पंजीयन हो चुका था। इसके अलावा, मिनेसोटा विश्वविद्यालय में इस बात का भी अध्ययन किया जा रहा है कि क्या हायड्राक्सी-क्लोरोक्वीन मरीज की देखभाल करने वालों को रोग से बचा सकती है। हायड्राक्सी-क्लोरोक्वीन से सम्बंधित एक अन्य अध्ययन फ्रांस में भी किया गया है। इसके तहत कुछ मरीजों को अकेला हायड्राक्सी-क्लोरोक्वीन दिया गया और कुछ मरीजों को हायड्राक्सी- क्लोरोक्वीन और एक अन्य दवा एजिथ्रोमायसीन दी गई। एजिथ्रोमायसीन एक एंटीबायोटिक है। शोधकर्ताओं का कहना है कि जिन मरीजों को ये दवाइयां दी गइंर्, उनमें SARS&CoV&2 की मात्रा में फ्रांस के अन्य मरीजों की अपेक्षा काफी तेजी से गिरावट आई। लेकिन इस अध्ययन में तुलनात्मक आकलन का कोई प्रावधान नहीं था। वैसे भी कहा जा रहा है कि इन दवाइयों का उपयोग काफी सावधानी से किया जाना चाहिए, खास तौर से गुर्दे की समस्याओं से पीड़ित मरीजों के संदर्भ में।
एबोला की नाकाम दवा
जिलीड साइन्सेज ने एक दवा रेमडेसिविर विकसित की थी जिसका परीक्षण एबोला के मरीजों पर किया गया था। अब इस दवा को कोविड-19 के मरीजों पर आजमाया जा रहा है। वैसे रेमडेसिविर एबोला के इलाज में नाकाम रही थी लेकिन प्रयोगशालाओं में किए गए अध्ययनों से यह प्रमाणित हो चुका है कि यह दवा SARS&CoV&2 जैसे अन्य वायरसों की वृद्धि को रोक सकती है। प्रायोगिक तश्तरियों में किए गए प्रयोगों में रेमडेसिविर मानव कोशिकाओं को SARS&CoV&2 के संक्रमण से बचाती है। अभी यूएस के खाद्य व औषधि प्रशासन ने कोविड-19 के गंभीर मरीजों के लिए रेमडेसिविर के अनुकंपा उपयोग की अनुमति दे दी है।
चीन व यूएस में 5 क्लीनिकल परीक्षण इस बात की जांच कर रहे हैं कि क्या रेमडेसिविर कोविड-19 के रोग की अवधि को कम कर सकती है और उसके साथ होने वाली पेचीदगियों को कम कर सकती है। कई डाक्टरों का विचार है कि यही सबसे कारगर दवा साबित होगी। लेकिन अध्ययनों से पता चला है कि यह तभी ज्यादा कारगर होती है जब रोग की शुरुआत में दे दी जाए। वैसे अभी इस दवा के असर को लक्षणों के स्तर पर ही परखा गया है, खून में वायरस की मात्रा वगैरह पर इसके असर का आकलन अभी शेष है। कुछ डाक्टरों ने इसके साइड प्रभावों पर भी चिंता व्यक्त की है।
एड्स दवाइयों का मिश्रण
शुरू-शुरू में तो लोपिनेविर और रिटोनेविर के मिश्रण से बनी दवा केलेट्रा ने काफी उत्साह पैदा किया था लेकिन आगे चलकर पता चला कि इससे मरीजों को कोई खास फायदा नहीं होता है। कुल 199 मरीजों में से कुछ को केलेट्रा दी गई जबकि कुछ मरीजों को प्लेसिबो दिया गया। देखा गया कि केलेट्रा का सेवन करने वाले कम मरीजों की मृत्यु हुई लेकिन अंतर बहुत अधिक नहीं था। और तो और, दोनों के रक्त में वायरस की मात्रा एक समान ही रही। बहरहाल, अभी इस सम्मिश्रण पर कई और अध्ययन जारी हैं और उम्मीद की जा रही है कि आशाजनक परिणाम मिलेंगे।
गौण प्रभावों के लिए दवा
कोविड-19 के कुछ मरीजों में देखा गया है कि स्वयं वायरस उतना नुकसान नहीं करता जितना कि उनका अपना अति-सक्रिय प्रतिरक्षा तंत्र कर देता है। इसलिए प्रतिरक्षा तंत्र पर नियंत्रण रखने के लिए उपयोग की जाने वाली दवा टासिलिजमैब को आजमाया जा रहा है। जल्दी ही कोविड-19 निमोनिया से ग्रस्त मरीजों पर ऐसा परीक्षण करने की योजना है। इसी प्रकार की एक अन्य दवा सैरीलुमैब के परीक्षण पर भी काम चल रहा है।
रक्तचाप की दवाइयां
कुछ वैज्ञानिकों का विचार है कि रक्तचाप की औषधि लोसार्टन कोविड-19 के मरीजों के लिए मददगार साबित हो सकती है। मिनेसोटा विश्वविद्यालय ने इस दवा के दो क्लीनिकल परीक्षण शुरू किए हैं। लोसार्टन दरअसल कोशिकाओं पर उपस्थित एक ग्राही को अवरुद्ध करता है। एंजियोटेंसिन-2 नामक रसायन इसी ग्राही की मदद से कोशिका में प्रवेश करके रक्तचाप को बढ़ाता है। SARS&CoV&2 एंजियोटेंसिन- कंवर्टिंग एंघइम-2 (ACE2) के ग्राही से जुड़ता है। सोच यह है कि जब लोसार्टन इन ग्राहियों को बाधित कर देगा तो वायरस कोशिका में प्रवेश नहीं कर पाएगा। लेकिन शंका यह व्यक्त की गई है कि लोसार्टन जैसी दवाइयां ।ACE2 के उत्पादन को बढ़ा देंगी और वायरस के कोशिका प्रवेश की संभावना बढ़ भी सकती है। इटली में 355 कोविड-19 मरीजों पर किए गए एक अध्ययन में पता चला कि जिन मरीजों की मृत्यु हुई उनमें से तीन-चौथाई उच्च रक्तचाप से पीड़ित थे। हो सकता है कि उच्च रक्तचाप ने ही इन्हें ज्यादा खतरे में डाला हो।
कुल मिलाकर, दुनिया भर में कोविड-19 के लिए दवा की खोज के प्रयास जोर-शोर से चल रहे हैं लेकिन इसमें काफी जटिलताएं हैं। फिर भी इतनी कोशिशों के परिणाम जरूर लाभदायक होंगे। अलबत्ता, एक सावधानी आवश्यक है। ये दवाइयां अभी परीक्षण के चरण में हैं। स्वयं इनका उपयोग करना नुकसानदायक भी हो सकता है।
टीका बनाने में चूक क्यों?
साल 2002 में चीन के ग्वांझो प्रांत में एक अनजाने से वायरस की वजह से एक महामारी फैली जिसे वैज्ञानिकों ने सार्स का नाम दिया था। सार्स का मतलब था सीवियर एक्यूट रेसपिरेटरी सिंड्रोम यानी ऐसी बीमारी जो सांस की तकलीफ का कारण बनती है बाद में वैज्ञानिकों ने पता लगाया कि सार्स बीमारी कोरोना वायरस की वजह से होता है और ये जानवरों से शुरू होकर इंसानों तक पहुंच गया।
उस समय ये वायरस कुछ ही महीनों में 29 देशों में फैल गया है, 8000 से ज्यादा लोग संक्रमित हुए जबकि 800 से ज्यादा लोगों की जान गई। तब पूरी दुनिया ये जानना चाह रही थी कि इसका टीका कब तक तैयार हो जाएगा और यूरोप, अमरीका और एशिया के दर्जनों वैज्ञानिकों ने बहुत तेजी से इसका टीका तैयार करने पर काम शुरू कर दिया था। कई उम्मीदवार उभरे थे, उनमें से कुछ ने तो यहां तक कहा कि वे क्लीनिकल ट्रायल के तैयार हैं।
लेकिन तभी सार्स महामारी पर काबू पा लिया गया और कोरोना वैक्सीन पर जारी तमाम रिसर्च बंद हो गए। कुछ सालों बाद 2012 में एक और जानलेवा कोरोना वायरस मर्स-कोव (मिडल ईस्ट रेसिपेरिटरी सिंड्रोम) का प्रकोप हुआ। ये ऊंटों से इंसानों तक पहुंचा था। तब भी बहुत सारे वैज्ञानिकों ने इन रोगाणुओं के खिलाफ टीका तैयार करने की जरूरत एक बार फिर से दोहराई।
आज लगभग 20 साल बाद जब नए कोरोना वायरस SARS&CoV&2 ने दुनिया के तकरीबन हर देश के लोगों को संक्रमित कर दिया है तो एक बार फिर दुनिया में ये सवाल पूछा जाने लगा है कि इसका टीका कब तक तैयार हो जाएगा। कोरोना वायरस के अतिक्रमण की पिछली घटनाओं से हम सबक क्यों नहीं ले पाए जबकि ये मालूम था कि इसकी वजह से कोविड-19 जैसी जानलेवा बीमारी हो सकती है? क्यों टीका तैयार करने वाले रिसर्चों को आगे क्यों नहीं बढ़ाया गया?
उत्तम सिंह गहरवार
वैश्विक संकट में कौन बनेगा लीडर
कोरोना वायरस खत्म होकर फिर जीवित हो उठता है और ऐसा ही नजर आ रहा है। चीन ने कोरोना वायरस पर विजय पा ली और लाकडाउन खोल दिया। इसके बाद अचानक कोरोना वयरस से हजारों लोग मौत के शिकार हो गए। ऐसे तमाम मरीज जो कोरोना वायरस से मुक्त हो चुके थे, उनके वायरस फिर से सक्रिय हो उठा। दक्षिण कोरिया सहित भारत में भी ऐसे मामले सामने आ रहे हैं।
फिर से कोविड-19
कोरोना से ग्रस्त लोग फिर से वायरस संक्रमण के शिकार बन रहे हैं। यह भयावह सच है, लेकिन कितना है, यह कहा नहीं जा सकता। वायरस ग्रस्त मरीज अस्पताल से वापस आता है, फिर भी वह सुरक्षित नहीं है। उसमें फिर से कोरोना पाजिटिव के लक्षण उभर रहे हैं। ऐसे मरीज से दूसरे स्वस्थ लोग भी वायरस से संक्रमित हो सकते हैं, इस ओर गहन जांच चल रही है।
इलाज के बाद सैंकड़ों मरीजों में फिर से कोरोना वायरस सक्रिय हो रहा है। वायरस का अंतहीन सिलसिला चीन के साथ दक्षिण कोरिया और भारत में देखने को मिल रहा है। तो क्या कोराना वायरस इंसान के शरीर में सुप्त होकर फिर से सक्रिय हो उठता है तो कैसे? वायरस संक्रमण से पूरी तरह मुक्त कैसे हुआ जा सकता है, यह देखना भी जरूरी है। अभी तो पूरी दुनिया कोराना वायरस से ग्रस्त लोगों के इलाज में जुटी है, मगर ऐसी स्थिति में कोरोना हुआ तो आगे क्या होगा?
भारत में मामला
भारतीय मीडिया की रिपोर्ट चौंकाने वाली है, जब स्वस्थ हुआ मरीज फिर से कोरोना पाजिटिव हुआ। रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना संक्रमित दो मरीज नोएडा के गवर्नमेंट इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साईंसेज (जीआईएमएस) में भर्ती थे। दोनों मरीजों के दो बार टेस्ट लिए गए।
दोनों परीक्षण में नेगेटिव रहा वायरस। जांच के बाद अस्पताल से उन्हें छुट्टी दे दी गई। एक सप्ताह बाद उनका फिर सैंपल लिया गया और तीसरा सैंपल पाजिटिव आया। दोनों मरीजों में कोराना वायरस की पुष्टि हुई। इस तरह के मामले की पुष्टि होने के बाद इसकी विस्तृत रिपोर्ट केन्द्र सरकार को भेजी गई।
दक्षिण कोरिया में
दक्षिण कोरिया में ऐसे 91 मामले सामने आ चुके हैं, जहॉं इलाज के बाद कोरोना वायरस से मुक्त हुए लोगों में वायरस फिर से सक्रिय हो गया। दक्षिण कोरिया के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के निदेशक जेयोग इयुन क्येओंग बताते हैं कि इस तरह के भी कई मामले सामने आ रहे हैं, जिसमें मरीज एक दिन कोरोना पाजिटिव निकलता है और दूसरे दिन निगेटिव। कोरोना वायरस इलाज के दौरान शांत हो जाता है। जांच में उसका पता नहीं चलता, लेकिन फिर वह अचानक सक्रिय हो जाता है।
चीन में फिर लौटा
चीन में इस तरह के कई मामले दिख रहे हैं। इलाज के बाद अस्पताल से स्वस्थ होकर घर जाने के बाद उनकी मौत हो गई। मार्च के अंत तक चीन ने कोरोना वायरस को फैलने से रोक दिया था। परन्तु अप्रैल में कोविड-19 के मामले फिर से सामने आने लगे। अप्रैल माह में कोविड-19 से मरने वालों की तादाद फिर बढ़ी।
19 अप्रैल को चीन के नेशनल हेल्थ कमीशन ने 108 नए मामले की पुष्टि की। उल्लेखनीय है कि पांच सप्ताह बाद यह पहला मौका है, जब चीन में अचानक इतने ज्यादा मामले कोविड-19 के आए। इनमें से कुछ विदेश यात्रा से जुड़े हैं, जबकि कुछ मामले स्थानीय हैं।
लगता प्रश्नचिन्ह
कोविड-19 से पूरी तरह स्वस्थ हुआ जा सकता है या नहीं, इस पर प्रश्न चिन्ह लग गया है। वैज्ञानिक समुदाय का कहना है कि जब तक कोई दवा या वैक्सीन विकसित नहीं हो जाती, तब तक कोराना वायरस को पूरी तरह रोकना मुश्किल है। कोराना वायरस के साथ छिड़े अंतहीन संघर्ष में इंसान ही विजय होगा। विजय के साथ लोगों की मौत के आगोश में भी जाना होगा। अनजाने से कोराना वायरस को समझने और उस पर काबू पाने के लिए वैज्ञानिक दिन-रात जुटे हैं। कोराना वायरस के खात्मे के लिए फिलहाल एक ही सशक्त उपाय है, वह है सामाजिक दूरी बनाए रखना। यह बहुत जरूरी है, ताकि हम कोरोना वायरस संक्रमित न हो सकें।
कौन बनेगा वैश्विक लीडर
कोराना वायरस का दूसरा दौर आ सकता है या अफ्रीका में इबोला फैल रहा है या कुछ देशों में और कुछ। कोविड-19 का फैलाव रोकने के मामले में दक्षिण कोरिया, ताइवान और सिंगापुर ने बेहतर मिसाल पेश की है। इन देशों में व्यापक पैमाने पर जांच हो रही है, जनता सजग होकर सरकार के साथ चल रही है। दुनिया के देश अपनी सूचना को मानवता के तहत आदान-प्रदान करेंगे तो कोविड-19 का दौर खत्म हो सकता है। लेकिन चीन अपनी खोज का परिणाम अमरीका को बता सकता है। इटली के वैज्ञानिक अपनी बेहतर खोज से तेहरान के लोगों की जान बचा सकते हैं। कोविड-19 को खत्म करने के लिए दुनिया के तमाम देश अपने अहम को भूलकर एक पटरी पर आएं तो संभव है कि कोविड 19 की मारक क्षमता को खत्म किया जा सकता है। वैश्विक एकजुटता के लिए विश्व का हर एक देश आए तो खतरनाक भविष्य को टाला जा सकता है। 2008 के आर्थिक संकट के दौरान अमेरिका ने वैश्विक नेता की भूमिका निभाई थी, लेकिन इस बार अमेरिका पीछे हट गया है। वैश्विक संकट से उबारने के लिए कौन पहल करेगा या फिर हर एक देश खुद आगे आएंगे, तब ही 21वीं सदी का मानव इस भयावह संकट से उबर सकेगा।
रमेश व्यास
क्या खाने-पीने की चीजों से फैल सकता है कोरोना
जब से कोरोना वायरस महामारी बना है तब से लगभग देश बंद हैं। दुनिया भर के देशों ने लाकडाउन की घोषणा कर दी है और कुछ देशों में कर्फ्यू भी लगा दिया गया है। ऐसे में लोगों को सिर्फ तभी घर से बाहर निकलने की इजाजत है जब कोई जरूरी काम हो। यानी किसी भी गैर-जरूरी वजह से घर से बाहर निकलने पर मनाही है। पर जरूरी चीजों की दुकानें खुली हुई हैं। लेकिन खरीदारी करने का सबसे सुरक्षित तरीका क्या है? या फिर अगर आप इस महामारी के दौर में भी सामान आर्डर कर रहे हैं तो किन बातों का ध्यान रखें?
दुकान पर खतरा क्या है?
कोरोना वायरस का संक्रमण तब फैलता है जब कोई व्यक्ति संक्रमित शख्स के संपर्क में आता है। जब कोई संक्रमित शख्स खांसता है या छींकता है तो उसकी छींक-खांसी के साथ ही कई वायरस हवा में चले जाते हैं। जब कोई दूसरा आदमी इसके संपर्क में आता है तो उसके संक्रमित होने की आशंका बढ़ जाती है। यह खतरा संक्रमित सतह के संपर्क में आने पर भी होता है। ऐसे में खरीदारी के लिए जाने से और दूसरे लोगों के साथ घुलने-मिलने से संक्रमित होने का खतरा बढ़ता है।
यही वजह है कि हर देश सोशल डिस्टेंसिंग की बात कर रहा है। लोगों से कहा गया है कि वो एक-दूसरे से कम से कम दो मीटर यानी छह फीट की दूरी पर रहें। अगर कोरोना वायरस के संक्रमण और उसके लक्षणों के बारे में पढ़ें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि सुपरमार्केट या भीड़ भरी दुकानें इस वायरस के प्रसार के लिए एक मुनासिब जगह है।
लंदन स्कूल आफ हाइजीन एंड ट्रापिकल मेडिसीन की प्रोफेसर सैली ब्लूमफील्ड का कहना है कि जब लोग सुपर मार्केट जाते हैं तो वो सामान उठाते है। रखते हैं। देखते हैं और दोबारा रख देते हैं। वो एक सामान को उठाकर दूसरी जगह रखते हैं और फिर कोई दूसरा आकर उन्हें वहां से हटाकर कहीं और रख देता है। लोग बिल की जांच कराते हैं, कैश का लेन-देन करते हैं, कार पार्क करते हैं, एटीएम मशीन पर नंबर प्लेट को छूते हैं, कार पार्किंग के दौरान टोल और दूसरी चीजों को छूते हैं। इसके साथ ही इस दौरान वो दर्जनों लोगों के संपर्क में आते हैं। इन कुछ घंटों के दौरान संक्रमण की बहुत अधिक आशंका होती है। लेकिन कुछ उपायों को अपनाकर संक्रमित होने से बचा जा सकता है।
अपने हाथों को साबुन से कम से कम बीस सेकंड तक धोएं। आप चाहें तो अल्कोहल बेस्ड सैनेटाइजर का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। लेकिन खरीदारी करने से पहले और बाद में दोनों ही वक्त हाथों को साफ करना जरूरी है।
एक बात जो पक्के तौर पर ध्यान रखनी है वो ये कि कोई भी सतह सुरक्षित नहीं है। कोई भी जगह असुरक्षित हो सकती है। ऐसे में अगर आप किसी चीज को हाथ में पकड़ें या फिर कहीं अगर हाथ रखें तो हाथों को बिना साफ किए चेहरे पर ना लगाएं। जहां तक संभव हो डिजिटल पेमेंट करें क्योंकि कार्ड और कैश की पेमेंट के दौरान संपर्क में आने का खतरा बढ़ जाता है।
खाने-पीने की चीजों से संक्रमण
हालांकि अभी तक इस तरह का कोई मामला सामने तो नहीं आया है जिसमें ये पता चला हो कि कोरोना वायरस का संक्रमण खाने के माध्यम से भी फैलता है। और ना ही ये कि खाना पकाने से वायरस मर जाता है। यूके फूड स्टैंडर्ड्स एजेंसी वेबसाइट के मुताबिक, बेहतर होगा कि घर पर पका खाना
खाया जाए। लेकिन अब भी बहुत से ऐसे लोग हैं जो टेक-अवे और फूड डिलीवरी पर निर्भर हैं।
प्रोफेसर ब्लूमफील्ड के मुताबिक, इस मामले में ‘जीरो रिस्क’ जैसी कोई चीज ही नहीं है। जब खाना पैक किया जाता है तो वो एक हाथ से दूसरे हाथ में जाता है और यह एक बहुत बड़ी चिंता है। प्रोफेसर ब्लूमफील्ड कहते हैं, अगर आप पैकिंग वाला खाना इस्तेमाल करने वाले हैं तो उसे इस्तेमाल करने से 72 घंटे पहले या तो स्टोर कर लें या फिर उसे स्प्रे कर लें। इसके अलावा जिस प्लास्टिक या ग्लास के कंटेनर में खाना पैक करके आया है उसे सैनेटाइज्ड वाइप से पोछ लें।
अगर आप फल या सब्जी मंगा रहे हैं तो ध्यान रखें वो एक हाथ से दूसरे हाथ में गई होंगी। इन चीजों को रखने से पहले बहते पानी में अच्छी तरह धोएं। जब पानी निकल जाए तो इन्हें सुरक्षित रख दें।
होम डिलिवरी कितनी सुरक्षित?
इस बात से तो इनकार नहीं किया जा सकता है कि किसी शापिंग स्टोर पर जाकर सामान खरीदने से कहीं अधिक सुरक्षित है कि आप घर पर ही सामान लें। लेकिन ऐसा नहीं है कि इसमें खतरा नहीं है। जब कोई चीज आप तक पहुंचती है तो वो कई हाथों से होकर आती है उसके बाद जिस गाड़ी में उसे रखकर लाया गया वो कितनी साफ और सुरक्षित थी ये भी एक मुद्दा है।
फूड सेफ्टी एक्सपर्ट और ब्लागर डॉ. लीसा एकर्ले की सलाह के अनुसार, अगर आप डिलीवरी सिस्टम से काम चला रहे हैं तो अपने घर के मुख्य दरवाजे पर एक नोट लगा दें। इस पर लिखा हो कि कृपया घंटी बजाकर थोड़ा पीछे खड़े हो जाएं। ऐसा करने से आप उस शख्स के सीधे संपर्क में ना आकर संक्रमित होने से बच सकते हैं। उन लोगों को भी सतर्क रहने की जरूरत है जो कोरोना वायरस से परेशान और तंगी में चल रहे लोगों की मदद कर रहे हैं?
किसी सतह पर मौजूद वायरस के संक्रमण से बचने के बारे में वारविक मेडिकल स्कूल के डॉ. जेम्स गिल कहते हैं, ‘किसी भी जगह पर बैठने या हाथ रखने से पहले सोचें कि वहां वायरस हो सकता है। सावधानी बरतते हुए उस जगह को घर में इस्तेमाल होने वाले ब्लीच को हल्का करके साफ कर लें। इससे एक मिनट के भीतर वायरस निष्क्रिय हो जाता है।’
यूनिवर्सिटी आफ ससेक्स के वायरोलाजी एक्सपर्ट प्रोफेसर एलिसन सिनक्लेयर कहते हैं, ‘किसी दोस्त या फिर किसी और के हाथों घर का सामान मंगाते हैं तो उसकी तुलना में आनलाइन डिलिवरी अधिक सुरक्षित होनी चाहिए।’ कुछ विशेषज्ञ यह भी सलाह देते हैं कि प्लास्टिक बैग इस महामारी के दौरान एक बार से ज्यादा बार इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
पार्सल ले जाना कितना सुरक्षित?
इस दौर में कई रेस्तरां खाना पार्सल के तौर पर ले जाने पर जोर दे रहे हैं। जो बड़े और अच्छे रेस्तरां हैं, वो खाना बनाने में स्वच्छता का ध्यान किसी अन्य की तुलना में ज्यादा रखते हैं इसलिए ताजा बने खाने को पार्सल के तौर पर ले जाने में खतरा कम है। पैकेजिंग के वक्त के खतरे को भी कुछ बातों का ख्याल रखकर कम किया जा सकता है।
प्रोफेसर ब्लूमफील्ड इस बारे में सलाह देते हैं, ‘खाने को पहले साफ बर्तन में उड़ेल दें और फिर खाने के पैकेट को फेंक दें। खाने से पहले अपने हाथ जरूर धोएं।’ वो कहते हैं, ‘खाना भी चम्मच की मदद से निकालें और छुरी-कांटे की मदद से खाएं ना कि हाथों से।’
मौजूदा हालात में ठंडा खाना खाने के बजाए गर्म और ताजा पका खाना मंगाए। फूड स्टैंडर्ड एजेंसी इस बात पर जोर देती है कि खाने से खतरा बहुत कम है और अगर खाना सही तरीके से बनाया गया हो तो उसे खाने में कोई समस्या नहीं।
हालांकि ब्लूमफील्ड कहते हैं कि आप निश्चिंत होने के लिए खाने पकाने और खाने में अतिरिक्त सावधानी बरत सकते हैं। मसलन अगर आपको पिज्जा खाना है तो एक बार उसे माइक्रोवेव में दो मिनट गर्म कर लें।
अंशिता सिंह
भारत में कोविड-19 के खिलाफ छिड़ी जंग ने मार्च की शुरुआत के बाद रफ्तार पकड़ी। जिसमें कोविड-19 की पहचान, उससे सुरक्षा, रोकथाम, चिकित्सकीय सलाह और मदद शामिल हैं। इस जंग को जीतने के उद्देश्य में निजी समूहों, उद्योगों, चिकित्सा समुदायों, वैज्ञानिकों और प्रौद्योगिकीविदों ने, वित्तीय सहयोग और शोध व विकास कार्य, दोनों तरह से सरकार की तरफ मदद के हाथ बढ़ाए हैं। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग जैव प्रौद्योगिकी विभाग (और इसके जैव प्रौद्योगिकी उद्योग सहायता परिषद,), विज्ञान व इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड वैज्ञानिक व औद्योगिक अनुसंधान परिषद, भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद,स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय, प्रतिरक्षा अनुसंधान व विकास संगठन जैसी कई सरकारी एजेंसियों ने कोविड-19 से निपटने के विशिष्ट पहलुओं पर केंद्रित कई अनुदानों की घोषणा की है। दूसरी ओर टाटा ट्रस्ट, विप्रो, महिंद्रा, वेलकम ट्रस्ट इंडिया अलायंस और कई बहुराष्ट्रीय फार्मा कंपनियां भी इस संयुक्त प्रयास में आगे आई हैं।
जांच, रोकथाम, सुरक्षा
सबसे पहले तो यह पता लगाना होता है कि कोई व्यक्ति इस वायरस से संक्रमित है या नहीं। चूंकि कोविड-19 नाक के अंदरूनी हिस्से और गले के नम हिस्से में फैलता है इसलिए यह पता करने का एक तरीका है थर्मो-स्क्रीनिंग (ताप-मापन) डिवाइस की मदद से किसी व्यक्ति के नाक और चेहरे के आसपास का तापमान मापना (जैसा कि हवाई अड्डों पर यात्रियों के आगमन के समय, या इमारतों और कारखानों में लोगों के प्रवेश करते समय किया जाता है)। जल्दी, विस्तारपूर्वक और सटीक जांच के लिए विदेश से मंगाए फुल बाडी स्कैनर जैसे उपकरण बेहतर हैं जो शरीर के तापमान को कंप्यूटर मानीटर पर अलग-अलग रंगों से दर्शाते हैं। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने जांच के लिए 1,000 डिजिटल थर्मामीटर और 100 फुल-बाडी स्कैनर दिए हैं।
जाहिर है कि भारत में इन उपकरणों की जरूरत हजारों की संख्या में है। इस जरूरत ने, भारत के कुछ कंप्यूटर उद्योगपतियों को इस तरह के बाडी स्कैनर भारत में ही बनाने के लिए प्रेरित किया है, जो कि एक सकारात्मक कदम है। हमें उम्मीद है कि ये बाडी स्कैनर जल्द उपलब्ध होंगे। इन उपकरणों द्वारा किए गए परीक्षण में जब कोई व्यक्ति पाजीटिव पाया जाता है तो जैविक परीक्षण द्वारा उसके कोरोनावायरस से संक्रमित होने की पुष्टि करने की जरूरत होती है। एक महीने पहले तक हमें, इस परीक्षण किट को विदेश से मंगवाना पड़ता था। लेकिन आज एक दर्जन से अधिक भारतीय कंपनियां राष्ट्रीय समितियों द्वारा प्रमाणित किट बना रही हैं। इनमें खास तौर से मायलैब और सीरम इंस्टीट्यूट के नाम लिए जा सकते हैं जो एक हफ्ते में लाखों किट बना सकती हैं। इससे देश में विश्वसनीय परीक्षण का तेजी से विस्तार हुआ है। संक्रमित पाए जाने पर मरीज को उपयुक्त केंद्रों में अलग-थलग, लोगों के संपर्क से दूर (क्वारेंटाइन) रखने की जरूरत पड़ती है। यह काफी तेज गति और विश्वसनीयता के साथ किया गया है, जिसके बारे में आगे बताया गया है।
वायरस के हमले से अपने बचाव का एक अहम तरीका है मुंह पर मास्क लगाना। (हम लगातार यह सुन रहे हैं कि मास्क उपलब्ध नहीं हैं या अत्यधिक कीमत पर बेचे जा रहे हैं।) यह धारणा गलत है कि हमेशा मास्क लगाने की जरूरत नहीं है। वेल्लोर के जाने-माने संक्रमण विशेषज्ञ डा. जैकब जान ने स्पष्ट किया है कि चूंकि वायरस हवा से भी फैल सकता है इसलिए सड़कों पर निकलते वक्त भी मास्क पहनना जरूरी है। इसलिए भारत के कई उद्यमी और व्यवसायी वाजिब दाम पर मास्क तैयार रहे हैं। व्हाट्सएप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म बेबी डायपर (नए), पुरुषों की बनियान (नई), साड़ी के पल्लू और दुपट्टे जैसी चीजों से मास्क बनाने के जुगाड़ू तरीके बता रहे हैं। खुशी की बात है कि इस मामले में सरकार के स्पष्टीकरण और सलाह के बाद अधिकतर लोग मास्क लगाए दिख रहे हैं। टीवी चौनल भी इस दिशा में उपयोगी मदद कर रहे हैं। वे इस मामले में लोगों के खास सवालों और शंकाओं के समाधान के लिए विशेषज्ञों को आमंत्रित कर रहे हैं।
इसी कड़ी में, हैदराबाद के एल. वी. प्रसाद आई इंस्टीट्यूट के मेरे साथी डा. मुरलीधर रामप्पा ने हाल ही में चश्मा पहनने वाले लोगों को (और आंखों के डाक्टरों को भी) सुरक्षा की दृष्टि से सलाह दी है। वे कहते हैं- यदि आप कान्टैक्ट लेंस पहनते हैं, तो कुछ समय के लिए चश्मा पहनना शुरु कर दें क्योंकि चश्मा पहनना एक तरह की सुरक्षा प्रदान करता है। अपनी आंखों की जांच करना बंद ना करें, लेकिन सावधानी बरतें। इस बारे में नेत्र चिकित्सक कुछ सावधानियां सुझा सकते हैं। अपनी आंखों की दवाइयों को ठीक मात्रा में अपने पास रखें, और अपनी आंखों को रगड़ने से बचें।
केंद्र और राज्य सरकारों और कई निजी अस्पतालों द्वार अलग-थलग और क्वारेंटाइन केंद्र स्थापित किए जाने के अलावा कई निजी एजेंसियों(जैसे इन्फोसिस फाउंडेशन, साइएंट, स्कोडा, मर्सडीज बेंज और महिंद्रा) ने हैदराबाद, बैंगलुरु, हरियाणा, पश्चिम बंगाल में इस तरह के केंद्र स्थापित करने में मदद की है। यह सरकारों और निजी एजेंसियों द्वारा साथ आकर काम करने के कुछ उदाहरण हैं। जैसा कि वे कहते हैं, इस घड़ी में हम सब साथ हैं।
सुरक्षा (और इसके फैलाव को रोकने) की दिशा में एक और उत्साहवर्धक कदम है क्वारेंटाइन केंद्रों में रखे लोगों पर निगरानी रखने वाले उपकरणों, इनक्यूबेटरों, वेंटिलेटरों का बड़े पैमाने पर उत्पादन। महिंद्रा ने सफलतापूर्वक बड़ी तादाद में ठीक-ठाक दाम पर वेंटिलेटर बनाए हैं, और डीआरडीओ ने चिकित्सकों, नर्सों और पैरामेडिकल स्टाफ के लिए सुरक्षा गाउन बनाने के लिए एक विशेष प्रकार का टेप बनाया है।
क्या भारत औषधि बना सकता है?
कोरोना संक्रमण से सुरक्षा के लिए टीका तैयार करने में भारत को संभवतः एक साल का वक्त लगेगा। हमें आणविक और औषधि-आधारित तरीके अपनाने की जरूरत है, जिसमें भारत को महारत हासिल है और उसके पास उम्दा आणविक और जीव वैज्ञानिकों की टीम है। फिलहाल सरकार तथा कुछ दवा कंपनियों ने कई दवाओं (जैसे फेविलेविर, रेमडेसेविर, एविजेन वगैरह) यहां बनाना और उपयोग करना शुरु किया है, और ज्ञात विधियों की मदद से इन दवाओं में कुछ बदलाव भी किए हैं। सीएसआईआर ने कार्बनिक रसायनज्ञों और बायोइंफार्मेटिक्स विशेषज्ञों को पहले ही इस कार्य में लगा दिया है, जो प्रोटीन की 3-डी संरचना का पूर्वानुमान कर सकते हैं ताकि सतह पर उन संभावित जगहों की तलाश की जा सकें जहां रसायन जाकर जुड़ सकें। मुझे पूरी उम्मीद है कि टीम के इन प्रयासों से हम इस जानलेवा वायरस पर विजय पाने वाली स्वदेशी दवा तैयार कर लेंगे। हां, हम कर सकते हैं।
और, अच्छी तरह से यह पता होने के बावजूद कि लाखों दिहाड़ी मजदूर अपने गांव-परिवार से दूर, बड़े शहरों और नगरों में रहते हैं, राज्य और केंद्र सरकारों ने उनके लिए कोई अग्रिम योजना नहीं बनाई थी। और ना ही लाकडाउन के वक्त उनकी मजदूरी की प्रतिपूर्ति के लिए कोई योजना बनाई गई थी, जबकि इस लाकडाउन की वजह से वे अपने घर वापस भी नहीं जा सके। इसके चलते लाकडाउन से सामाजिक दूरी बनाने और इस संक्रमण के सामुदायिक फैलाव को रोकने में दिक्कत आई है। सामाजिक दूरी रखना भारतीय संस्कृति का हिस्सा नहीं है, जबकि भेड़चाल है। इस बात के प्रति सरकार के समाज वैज्ञानिक सलाहकार सरकार को पहले से ही आगाह कर देते तो समस्या को टाला जा सकता था।
डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन
महामारी के दौर में मानव जाति की चिंता
किसी भी देश के मूल संस्कार और उसके चरित्र की परख संकट के समय ही होती है। वैश्विक महामारी के मौजूदा संकट के दौरान अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के देश अपने अंदर के हालात से जूझने तक ही सीमित हो गए हैं। भारत अकेला देश है जिसने इसे विश्व मानवता की साझा चुनौती बताते हुए न सिर्फ बाकियों की चिंता की, बल्कि सभी देशों को साथ लाने की ठोस पहल भी की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आमंत्रण पर सार्क देशों का सम्मेलन हुआ और फिर उनकी ही पहल पर जी-20 की बैठक भी संपन्न हुई।
साझा चुनौती
जी-20 का वर्तमान अध्यक्ष सऊदी अरब है। प्रधानमंत्री ने सऊदी युवराज मोहम्मद बिन सलमान से फोन पर बात कर उन्हें इसका वर्चुअल सम्मेलन बुलाने के लिए तैयार किया। इसके बाद स्वयं भी ज्यादातर राष्ट्राध्यक्षों से संपर्क किया। संदेश यही था कि मानवता के इस संकट को हमें साझा चुनौती मानकर आगे बढ़ना चाहिए। यह भारत का ही प्रभाव था कि इसमें 19 देशों के साथ यूरोपीय संघ, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष, संयुक्त राष्ट्र और विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया। सम्मेलन संपन्न हो जाने के बाद यह जितना आसान लगता है, उतना था नहीं।
कोरोना वायरस के बारे में सही सूचना न देने के आरोप से घिरे चीन को लेकर कई देशों में नाराजगी है। कुछ देशों द्वारा चीन को निशाना बनाए जाने का खतरा था। मोदी ने अपने भाषण के आरंभ में यह कहकर माहौल बदल दिया कि यह वक्त इस पर चर्चा करने का नहीं है कि कोविड-19 का जन्म कहां हुआ। वायरस के प्रकोप के लिए किसी को दोष देने का प्रयास नहीं किया जाना चाहिए। अभी मौजूदा संकट से निपटने के उपायों पर बात होनी चाहिए। इसका असर हुआ और सम्मेलन बिना किसी मतभेद के ठोस सहमतियों और फैसलों के साथ खत्म हुआ। भारत ने पहल नहीं की होती तो यह सम्मेलन आयोजित ही नहीं हो पाता। यही बात सार्क सम्मेलन पर भी लागू होती है।
भारत का मूल संस्कार और चरित्र यही है। अंग्रेजों से स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले हमारे ज्यादातर नेतागण मानते थे कि भारत अन्य देशों की तरह केवल अपने लिए स्वतंत्र नहीं होना चाहता, इसका राष्ट्रीय लक्ष्य विश्व कल्याण है। गांधी जी कहते थे कि स्वतंत्र भारत मानव जाति को संकट मुक्त करने के लिए काम करेगा। आप इतिहास में चले जाइए, एक राष्ट्र के रूप में भारत का व्यवहार हमेशा ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ और ‘सर्वे भवंतु सुखिनः’ पर आधारित रहा है। नेतृत्व में इस बात को लेकर गहरी समझ न होने के चलते कभी-कभार इस दिशा से थोड़ा-बहुत डिगा जरूर है, लेकिन कभी भी इसने किसी देश या विश्व मानवता के विरुद्ध काम किया हो, इसके उदाहरण नहीं हैं। नरेंद्र मोदी से किसी का कई मुद्दों पर मतभेद हो सकता है, पर इसमें कोई संदेह नहीं हैं कि विश्व स्तर पर उन्होंने भारत के परंपरागत दर्शन और उसके चरित्र को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने की कोशिश की है। इसी कारण भारत की एक विशिष्ट छवि फिर से निर्मित हो रही है।
सार्क या जी-20 का सम्मेलन यदि भारत नहीं बुलाता तो कहीं से आलोचना नहीं होती, पर हमारी राष्ट्र की अवधारणा में भारत के नेता के रूप में प्रधानमंत्री का दायित्व है कि ऐसे समय वह विश्व की चिंता करें। सार्क सम्मेलन भी केवल भाषणों तक सीमित नहीं रहा। भारत ने कोरोना से लड़ने के लिए एक कोष बनाने का प्रस्ताव रखा। अपनी ओर से एक करोड़ डालर का शुरुआती योगदान किया और यह वादा किया कि सभी सार्क देशों को अपनी विशेषज्ञता तथा संसाधन उपलब्ध कराएगा। जिन देशों को डाक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों की आवश्यकता होगी, उन्हें वह सहायता भी उपलब्ध कराई जाएगी।
जी-20 की बैठक को भी अपने दृष्टिकोण से परिणाम तक पहुंचाने की कोशिश भारत ने की और एक हद तक सफल रहा। प्रधानमंत्री ने इसमें कहा कि हम ज्यादातर आर्थिक मुद्दों पर बात करते रहे हैं, जबकि हमारे सामने अनेक वैश्विक मुद्दे हैं, जिन्हें संभालने की जरूरत है। उन्होंने संपूर्ण मानव जाति के लिए एक नए वैश्वीकरण की शुरुआत करने का आह्वान किया। प्रधानमंत्री ने एक अधिक अनुकूल, उत्तरदायी और सस्ती जन स्वास्थ्य प्रणाली विकसित करने की बात की जो विश्व स्तर पर स्वास्थ्य संकट से निपटने में मददगार हो।
कोरोना संकट ने साबित किया है कि विश्व स्तर पर ऐसी कोई प्रभावी प्रणाली है ही नहीं। डब्लूएचओ इस संकट में कमजोर और दिशाहीन संगठन के रूप में सामने आया है। इस नाते भारत ने स्पष्ट कहा कि इसमें संरचनात्मक बदलाव की आवश्यकता है। मोदी ने वैश्विक स्वास्थ्य संकट से निपटने के लिए एक नया संकट प्रबंधन प्रोटोकाल विकसित करने पर भी जोर दिया जिसे सभी देशों ने स्वीकार किया।
इन बैठकों के द्वारा भारत ने विश्व के प्रमुख देशों के नेतृत्व का जमीर जगाने और स्वास्थ्य से लेकर मानव कल्याण तक के संदर्भ में, नई विश्व व्यवस्था की आवश्यकता पर विचार के लिए उन्हें प्रेरित करने की कोशिश की। बात कहां तक जाएगी, इसका कितना असर होगा, कहना कठिन है, लेकिन इसका कुछ असर निश्चित रूप से हुआ।
ज्यादातर नेताओं ने माना कि हमें कोरोना महामारी से उबरने का हरसंभव प्रयास करने के साथ-साथ स्वास्थ्य, समाज और अर्थव्यवस्था पर होने वाले असर से निपटने को भी प्राथमिकता देनी है। समूह द्वारा 5 खरब डालर का कोष बनाने का जो निर्णय लिया गया है, उसका लाभ पूरे विश्व को मिलेगा।
राजदूतों को संदेश
प्रधानमंत्री ने विश्व भर के अपने राजदूतों और उच्चायुक्तों से बात की तो उनसे भी यही कहा कि हमें भारतीयों की चिंता करने के साथ-साथ यह भी देखना है कि जिस देश में आप हैं, वहां के लिए क्या कर सकते हैं। महामारी में फंसे देशों से भारतीयों के अलावा दूसरे देशों के नागरिकों को भी भारत ने निकाला है। विश्व मानवता की दृष्टि से भारत की यह भूमिका इतिहास का अमिट अध्याय बन सकती है।
विरोधी देशों को भी दवा दे रहा भारत
भारत उन देशों को भी दवा दे रहा है जो अभी तक भारत का विरोध करते थे। ये वही देश है जिसने नागरिकता संशोधन कानून और कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने का पुरजोर विरोध किया था। इनमें मलेशिया, तुर्की, बांग्लादेश जैसे देश शामिल थे। ब्रिटेन, अमेरिका, जर्मनी जैसे देशों में प्रदर्शन हुए। गल्फ कंट्रीज ने खुले तौर पर तो कुछ नहीं कहा, मगर दबी जुबान में इस कदम से नाखुशी जताई।
दवा के बदले भारत ने मांगी ये चीजें
भारत ने HCQ के अलावा पैरासिटामाल भी इन देशों को सप्लाई किया है। एक तरफ जहां भारत दवाओं की सप्घ्लाई कर दूसरे देशों की मदद कर रहा है, वहीं बदले में उसने भी कुछ चीजें मांगी हैं। N-95 मास्क, वेंटिलेटर्स, PPE सूट्स वगैरह मंगाए जा रहे हैं। अमेरिका, ब्रिटेन, आयरलैंड, साउथ कोरिया, जापान, चीन, जर्मनी, सिंगापुर से ये सब चीजें आ रही हैं।
प्राडक्शन में सबसे आगे है भारत
देश में कई कंपनियां इस दवा का प्राडक्शन करती हैं। जायडस कैडिला और इप्का लैबोरेटरीज प्रमुख हैं। कंपनियां मार्च के लिए मासिक प्राडक्शन को 4 गुना कर 40 मीट्रिक टन तक कर सकती हैं। साथ ही अगले महीने 5-6 गुना बढ़ाकर 70 मीट्रिक टन तक किया जा सकता है। अगर ये कंपनियां अपनी फुल कपैसिटी पर काम करें तो हर महीने 200mg की 35 करोड़ टैबलेट तैयार की जा सकती हैं।
अवधेश कुमार
कोविड-19 चीन संदेह के दायरे में
सूक्ष्म परजीवियों से मानव की यह लड़ाई पहली नहीं है। सृष्टि के आरंभ से चल रही है, जो अनवरत चलती रहेगी। मानव ने जब-जब प्रकृति की सीमा लांघी है, तब-तब वह उसके प्रकोप का शिकार बना है। प्रकृति में सूक्ष्म परजीवी अपने दायरे में रहते हैं। मगर मानव ने नैसर्गिक प्रकृति पर लगातार प्रहार किया है। जंगल प्रकृति के फेफड़े हैं, जहॉं से ताजी बयार बहती हुई विश्व को प्राणवायु देती है। धरती की हरितिमा को बार-बार अपने स्वार्थ के लिए नष्ट किया। जंगल के जीव-जंतुओं को अपना भोजन बनाने लगे और यहीं से शुरू हुई सूक्ष्म परजीवियों के साथ लड़ाई। हर लड़ाई में फैलती महामारी में अकाल मौत का तांडव होता रहा। फिर भी हमने कोई सबक नहीं लिया।
वायरस बने हथियार
चेचक, मलेरिया, प्लेग जैसी महामारी का उन्मूलन कर लिया, मगर ऐसा नहीं हुआ। 20वीं सदी के बाद अनेक वायरस पनपने लगे। कहना चाहिए इन्हें इंसानों ने ही पनपाया अपने स्वार्थ के लिए। युद्ध करने के लिए हथियार बनाया। युद्ध में वायरस कितने कारगर हो सकते हैं, इसका परीक्षण चल रहा है। द्वितीय विश्व युद्ध तक परमाणु बम बेहतर हथियार साबित हुआ। और अब आर्थिक शक्ति बनने के लिए चीन ने कोरोना वायरस को अपना हथियार बनाया है।
पूरी दुनिया कोरोना वायरस की चपेट में आ चुकी है। विश्व शक्ति बने अमेरिका ने भी उसके आगे घुटने टेक दिए। एक छोटे सूक्ष्म जीव से हम जीत नहीं सकते, उसे मारने के लिए हमारे वैज्ञानिक सक्षम नहीं हैं। बचाव का एक ही रास्ता है, वह है वायरस संक्रमित रोगी से दूरी बनाए रखना। इस कारण दुनिया भर में लॉकडाउन हो गया है। सारी गतिविधियां ठप्प हो गईं।
उद्योगों की चिमनियां ठंडी पड़ गईं, उत्पादन बंद हो गया। जिन हाथों को काम चाहिए, वे घरों में कैद हो गए। विकास की निरंतरता को कोराना वायरस ने डस लिया।
महामारी के चलते मानवता, मूल्यवादिता तिरोहित हुई जा रही है। ऐसे अर्थवान जगत में संवेदनाएं सूखती जा रही हैं। विश्व आत्महंता बन चला है। खुद को स्थापित करने के लिए संवेदनहीन को अपना हथियार बनाना कैसी बुद्धमानी है? यह सच है, दुनिया अर्थवान है और मनुष्य की नियति राजनीति है।
कोविड-19 चीन से आया
आतंकवाद से बड़ा खतरा महामारी का है। सबसे बड़ा खतरा तो वे देश हैं, जो आर्थिक चुनौती दे रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों से चीन अमेरिका की आर्थिक ताकत को तोड़ने की कोशिश कर रहा था। कोविड-19 ने आखिरकार अमेरिका को पस्त कर दिया। दुनिया के अधिकांश देशों के पास परमाणु हथियार हैं, लेकिन कोविड-19 को खत्म करने के लिए कोई दवा नहीं है। मात्र 4 माह में समूची दुनिया के देशों की आर्थिक गतिविधियां ठप हो गईं। चीन ने वुहान शहर में लॉक डाउन कर कोविड-19 पर काबू पा लिया।
लाकडाउन को जिन देशों ने अपने यहॉं लागू किया, वहॉं-वहॉं कोरोना वायरस का फैलाव कम हुआ। मगर कोरोना संक्रमित लोगों का इलाज कैसे किया जाए, इस पर संशय बना रहा।
कोविड-19 एक खामोश संक्रामक बना, जिसके लक्षण शुरूआती दौर में समझ नहीं आए। 14 दिनों के बाद कोरोना संक्रमण का पता लगता है। संक्रामक लोगों की पहचान और उन्हें अलग रखना एक भयावह मुसीबत बना। इसके बावजूद लाकडाउन कर परिस्थितियों पर नियंत्रण किया जा रहा है।
चीन ने पसारे पांव
चीन ने लाकडाउन के साथ अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर ला दिया, मगर विश्व के 200 देशों में आर्थिक कंगाली छा गई। जहॉं सब कुछ बंद है। ऐसी परिस्थिति में चीन ने अपना उत्पादन जारी रखा और आर्थिक जगत में अपनी पकड़ बना ली है। पीपुल्स बैंक आफ चाइना (पीबीओसी) ने भारत के निजी क्षेत्र के हाउसिंग फाइनेंस लेंडर (एचडीएफसी) के 1.75 करोड़ शेयर खरीद लिए और वह एक फीसदी से ज्यादा का हिस्सेदार बन गया। मार्च 2020 में एचडीएफसी के शेयर 40 फीसदी तक गिर गए, जिसका लाभ चीन ने उठाया।
एशियाई देशों में अपने आर्थिक दायरों में चीन तेजी से बढ़ोत्तरी कर रहा है। एक तरफ लोग बेमौत मर रहे हैं और चीन अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में जुट गया है। चीन ने बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं, प्रौद्योगिकी कम्पनियों सहित पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी अपना निवेश बढ़ाया है।
वैश्विक मंदी में भारत
भारत ने चीन के ऐसे रवैये को देखते हुए प्रतिबंध लगा दिया है, ताकि मंदी के दौरान कोई विदेशी अर्थव्यवस्था देश में दखल न दे सके।
विश्व अब तक की सबसे खराब मंदी के दौर से जूझ रहा है। भारत के हालात उसकी मिश्रित अर्थव्यवस्था के चलते अच्छी मानी जा रही है। जी-20 के देशों में भारत सबसे बेहतर स्थिति में है। देश में अनाज का पर्याप्त भंडार है और इस साल फसल उत्पादन भी बहुत अच्छा है। लाकडाउन में बुआई अच्छी स्थिति में रही। आर.बी.आई. के गनर्वर कृष्णकांत दास ने वित्तीय नुकसान रोकने के लिए कई पहल की है। बैंकों से लोग कर्ज ले सकें, इसके निर्देश जारी किए हैं। आईएमएफ का अनुमान है कि 2020-21 में विकास दर 7.4 फीसदी तक पहुॅंच जाएगी। इस साल विकास दर लाकडाउन के चलते 1.9 तक आ पहुॅंची है।
बहरहाल विश्व के बड़े देश यह मान रहे हैं कि कोविड 19 का संक्रमण चीन ने जान-बूझकर फैलाया है। इसलिए चीन पर अंतर्राष्ट्रीय अदालत में हर्जाना के लिए मुकदमा दायर करने पर विचार किया जा रहा है। चीन इससे इंकार कर रहा है। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन पर भी उंगली उठ रही है कि उसने कोरोना वायरस संक्रमण के बारे में समय पर जानकारी नहीं दी। फिलहाल तो दुनिया के देश कोविड 19 से अपने लोगों को बचाने में लगे हैं, वहीं जन जीवन फिर कैसे सामान्य हो, इसकी पहल कर रहे हैं।
संदेह के दायरे में चीन
कोविड-19 वायरस फैलाने के लिए चीन जिम्मेदार है। अमेरिका ने स्पष्ट तौर पर चीन पर आरोप लगाया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन को भी चीन परस्त करान दिया है, जो चीन का साथ देता नजर आ रहा है। जिसके कारण 6.5 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान उठाना पड़ा। भारत में भी यह बात उठी कि चीन से 22 अरब डॉलर हर्जाने की मांग की जाए। चीन इस बात से साफ इंकार कर रहा है कि वुहान से कोविड-19 का फैलाव हुआ है।
अंतर्राष्ट्रीय अदालत में चीन के खिलाफ मुकदमा दायर करने पर अधिकांश देश सहमत हैं। ऐसी स्थिति में चीन दुनिया के देशों को हर्जाना देगा तो वह कंगाल हो जाएगा। फिर चीन अदालत के फैसले को मानेगा या नहीं इस पर भी निर्भर करता है। अगर यह नहीं हुआ तो चीन पूरी दुनिया में अपनी अर्थव्यवस्था का डंका बजाएगा। ऊॅंट किस करवट बैठेगा, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन चीन की संदेहास्पद स्थिति से विश्व सजग हो उठा है।
रमेश शर्मा
भाटापारा, छ.ग.
कोरोना के खिलाफ लड़ाई में टेक्नालाजी बना हथियार
इस समय देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया कोरोना वायरस नामक एक ऐसे दुष्चक्र में फंसी है जिससे निकलने के लिए असाधारण कदमों और उपायों की जरूरत है। महामारी कोविड-19 फैलाने वाले कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या दुनिया में 18.50 लाख से अधिक पहुंच गई है और 1.15 लाख से अधिक लोग जान गंवा चुके हैं। संक्रमित लोगों में से 4.25 लाख लोग ठीक भी हो चुके हैं। हर रोज संक्रमित लोगों और मौतों की संख्या बढ़ती जा रही है और यह महामारी नए इलाकों में पांव पसारती जा रही है।
विशेषज्ञों का मानना है कि हम बिग डैटा, क्लाउड कंप्यूटिंग, सुपर कम्प्यूटर, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, रोबोटिक्स, 3-डी प्रिंटिंग, थर्मल इमेजिंग और 5-जी जैसी टेक्नोलाजी का इस्तेमाल करते हुए बेहद प्रभावी ढंग से कोरोनावायरस से मुकाबला कर सकते हैं। इस महामारी से निपटने के लिए यह बेहद जरूरी है कि सरकार लोगों की निगरानी रखे। आज टेक्नोलाजी की बदौलत सभी लोगों पर एक साथ हर समय निगरानी रखना मुमकिन है।
कोरोना वायरस के खिलाफ अपनी लड़ाई में कई सरकारों ने टेक्नोलाजी को मोर्चे पर लगा दिया है। टेक्नोलाजी का ही इस्तेमाल करते हुए चीन ने इस वायरस पर काफी हद तक काबू पाया है। लोगों के स्मार्टफोनों, चेहरा पहचानने वाले हजारों-लाखों कैमरों, और अपने शरीर का तापमान रिकार्ड करने और अपनी मेडिकल जांच की अनुमति देने की सहज इच्छा रखने वाली जनता के बल पर चीनी अधिकारियों ने न केवल शीघ्रता से यह पता कर लिया कि कौन व्यक्ति कोरोना वायरस का संभावित वाहक है बल्कि वह उन पर नजर भी रख रहे थे कि वे किस-किस के संपर्क में आते हैं। कई सारे ऐसे मोबाइल ऐप्स हैं जो नागरिकों को संक्रमित व्यक्ति के आसपास मौजूद होने के बारे में चेतावनी देते हैं।
कोरोनावायरस को रोकने के लिए चीन ने सबसे पहले ‘कलर कोडिंग टेक्नोलाजी’ का इस्तेमाल किया है। इस सिस्टम के लिए चीन की दिग्गज टेक कंपनी अलीबाबा और टेनसेंट ने साझेदारी की है। यह सिस्टम स्मार्टफोन ऐप के रूप में काम करता है। इसमें यूजर्स को उनकी यात्रा के दौरान उनकी मेडिकल हिस्ट्री के मुताबिक ग्रीन, येलो और रेड कलर का क्यूआर कोड दिया जाता है। ये कलर कोड ही यह निर्धारित करते हैं कि यूजर को क्वारेंटाइन किया जाना चाहिए या फिर उसे सार्वजनिक स्थान पर जाने की इजाजत दी जानी चाहिए।
चीनी सरकार ने इस सिस्टम के लिए कई चेक पाइंट्स बनाए हैं, जहां लोगों की चेकिंग होती हैं। यहां उन्हें उनकी यात्रा और मेडिकल हिस्ट्री के मुताबिक क्यूआर कोड दिया जाता है। अगर किसी को ग्रीन कलर का कोड मिलता है, तो वह इसका उपयोग कर किसी भी सार्वजनिक स्थान पर जा सकता है। तो दूसरी तरफ अगर किसी को लाल कोड मिलता है, तो उसे क्वारेंटाइन कर दिया जाता है। इस सिस्टम का इस्तेमाल 200 से ज्यादा चीनी शहरों में हुआ है। भारत में भी ऐप आधारित कलर कोडिंग टेक्नोलाजी विकसित करने के प्रयास किए गए और आरोग्य सेतु ऐप उपलब्ध कराया गया।
भारत में भी रेलवे स्टेशनों, हवाई अड्डों और अन्य सार्वजनिक क्षेत्रों के अधिकारी दूर से तापमान रिकार्ड करने के लिए स्मार्ट थर्मल स्कैनर का इस्तेमाल कर रहे हैं। इस तरह संभावित कोरोना वायरस वाहक की पहचान करने में आसानी हो रही है। भारत में बाजार-केंद्रित हेल्थ टेक स्टार्टअप कंपनियां भी रोग के निदान के लिए नवाचार की ओर कमर कस रही हैं, इससे हेल्थ केयर सिस्टम पर दबाव कम हो रहा है। कन्वर्जेंस कैटालिस्ट के संस्थापक जयंत कोल्ला बैंगलुरु स्थित स्टार्टअप, वनब्रोथ का उदाहरण देते हैं। इसने सस्ते और टिकाऊ वेंटिलेटर विकसित किए हैं। ये भारत की ग्रामीण आबादी को ध्यान में रखकर किया गया है, जहां अस्पतालों और डाक्टरों तक पर्याप्त पहुंच का अभाव है। एक अन्य बैंगलुरु-आधारित स्टार्टअप डे-टु-डे ने घर पर क्वारेंटाइन रोगियों को विभिन्न सुविधाओं और अस्पतालों में रखने के लिए एक केयर मैनेजमेंट साल्यूशन विकसित किया है और इसके जरिए बाद में निदान गतिविधियों जैसे कि स्वास्थ्य जांच, आहार, अनुवर्ती परीक्षण आदि को भी पूरा किया जाता है।
चीन सहित विभिन्न देशों ने कोरोना वायरस को मात देने के लिए रोबोट का इस्तेमाल किया है। ये रोबोट होटल से लेकर आफिस तक में साफ-सफाई का काम करते हैं और साथ ही आस-पास की जगह पर सैनिटाइजर का छिड़काव भी करते हैं। वहीं, दूसरी तरफ चीन की कई टेक कंपनियां भी इन रोबोट का उपयोग मेडिकल सैंपल भेजने के लिए करती थीं। कोरोना वायरस को रोकने के लिए चीन ने ड्रोन का इस्तेमाल किया है। साथ ही इन ड्रोन्स के जरिए चीनी सरकार ने लोगों तक फेस मास्क और दवाइयां पहुंचाई हैं। इसके अलावा इन डिवाइसेस के जरिए कोरोना वायरस से संक्रमित क्षेत्रों में सैनिटाइजर का छिड़काव भी किया गया है।
कोरोना वायरस को ट्रैक करने के लिए फेस रिकाग्निशन सिस्टम का इस्तेमाल बेहद कारगर साबित हो रहा है। इस सिस्टम में इंफ्रारेड डिटेक्शन तकनीक मौजूद है, जो लोगों के शरीर के तापमान जांचने में मदद करती है। इसके अलावा फेस रिकाग्निशन सिस्टम यह भी बताता है कि किसने मास्क पहना है और किसने नहीं।
वैज्ञानिक कोरोना के टीके और दवाई विकसित करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) का इस्तेमाल कर रहें हैं। ध्यान देने वाली बात यह है कि एंटीबायोटिक दवाओं के बैक्टीरिया पर घटते असर को ध्यान में रखते हुए पिछले कुछ वर्षों से वैज्ञानिक एआई की मदद से ऐसे प्लेटफार्म तैयार करने की कोशिश रहे हैं जिससे नए किस्म की दवाओं की खोज की जा सके और एंटीबायोटिक दवाओं को बेअसर करने वाले बैक्टीरिया का खात्मा किया जा सके। हाल ही में वैज्ञानिक समुदाय को इस दिशा में एक बड़ी कामयाबी हासिल हुई है। अमेरिका के एमआईटी के वैज्ञानिकों ने आर्टिफिशिल इंटेलीजेंस (एआई) के मशीन-लर्निंग एल्गोरिदम की मदद से पहली बार एक नया और बेहद शक्तिशाली एंटीबायोटिक तैयार किया है। शोधकर्ताओं का दावा है कि इस एंटीबायोटिक से तमाम घातक बीमारियों को पैदा करने वाले बैक्टीरिया को भी मारा जा सकता है। इसको लेकर दावे इस हद तक किए जा रहे हैं कि इस एंटीबायोटिक से उन सभी बैक्टीरिया का खात्मा किया जा सकता है जो सभी ज्ञात एंटीबायोटिक दवाओं के खिलाफ प्रतिरोधी क्षमता हासिल कर चुके हैं। इस नए एंटीबायोटिक की खोज ने आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की मदद से कोरोना के खिलाफ एक कारगर एंटी वायरल दवा विकसित करने की वैज्ञानिकों की उम्मीदों को बढ़ा दिया है।
कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि आज टेक्नोलाजी ने किसी महामारी से लड़ने के लिए हमारी क्षमताओं को काफी हद तक बढ़ा दिया है। जिसकी बदौलत हम परंपरागत रक्षात्मक उपायों को करते हुए महामारी के विरुद्ध कारगर ढंग से लड़ने में सक्षम हुए हैं।
प्रदीप सेंगर
जंगलों के विनाश से हुआ वायरस का हमला
भयावह सच महामारी बनकर टूट पड़ा इंसानों पर। लोग मर रहे हैं और असहाय देख रहे हैं हम। अंतिम सांस लेते हुए लोग को गले भी नहीं लगा सक रहे हैं। बेरहम कोविड-19 ने इंसानों की लाशें बिछा दीं। ठीक वैसे ही जैसे इंसानों ने धरती के जंगलों को खत्म किया, जंगली जानवरों को अपनी भोजन की प्लेट में सजा लिया।
जंगल घटे महामारियां बढ़ीं
जंगल जैसे-जैसे खत्म हो रहे हैं, सभ्यता के विघटन का खतरा बढ़ रहा है। जंगल धरती के फेफड़े हैं तो वन्य प्राणी उन घातक वायरसों के भंडार हैं, जो अपने शरीर में संजोए हुए हैं। विश्व में अब तक जितनी महामारी फैली, उनका स्रोत जीव-जन्तु ही रहे हैं। जंगल के जानवर उन बैक्टीरिया और विषाणु के अगाध भंडार हैं, जिन्हें हमने देखा नहीं है। जैसे-जैसे हम जंगली जीव-जन्तुओं के पर्यावरास को नष्ट कर रहे हैं, वैसे-वैसे नई बीमारियों से हम ग्रसित हो रहे हैं। धरती के जंगल हमारे लिए संजीवनी हैं, लेकिन उसके विनाश से सभ्यता खतरे में पड़ती जा रही है।
न्यूयार्क स्थित अमेरिका वन सेवा ने अपने एक अध्ययन में इसे स्पष्ट तौर पर बताया था कि कुछ वनस्पतियां ऐसे उड़नशील पदार्थ (फाइटोसाइड) छोड़ती हैं, जो रोग जन्य कीटाणुओं को नष्ट करते हैं। चीड़ तथा देवदार के पेड़ों से उत्सर्जित पदार्थ डिप्थेरिया तथा तपेदिक के जीवाणुओं (बैक्टीरिया) को मारने की क्षमता रखते हैं। नीलगिरी (यूकेलिप्टस) की पत्तियों से निकलने वाला पदार्थ इन्फ्लुएंजा के विषाणुओं (वायरस) को प्रभावित करता है।
भारत के आयुर्वेद ग्रंथों में ऐसे अनेक वृक्षों का उल्लेख मिलता है। पेड़-पौधों के संरक्षण-संवर्धन के लिए धार्मिक रीति-रिवाजों में समाहित किया गया। जंगलों के साथ वन्य प्राणी को संरक्षित करने की सनातन संस्कृति विद्यमान है। आयुर्वेद में स्पष्ट कहा गया है कि जहॉं जो रोग होते हैं, प्रकृति ने उनके निवारण के लिए वनस्पतियां प्रदान की है। यही कारण है कि परम्परागत चिकित्सा आज भी गांव-गांव में चल रही है। लेकिन पश्चिमी अंधानुकरण करने वाले क्षेत्र में प्रकृति से ऐसा संबंध बिखरता जा रहा है।
जानवरों से फैले वायरस
इंसान जिन जानवरों को पालतू बनाया, उन जानवरों की प्राकृतिक जीवनशैली में हस्तक्षेप किया, जिसका खामियाजा जब तब इंसान भुगतता रहा है। घरेलू और जंगली जानवर से इंसान में आये वायरस से दुनिया में हर साल दो अरब लोग संक्रमित होते हैं, जिनमें से दो करोड़ लोग मौत का शिकार बन जाते हैं।
कुत्ते, बंदर, भेड़, बिल्ली और चूहों के वायरस ने इंसानों को काफी क्षति पहुॅंचाया। प्लेग जैसी महामारी ने 20वीं सदी में उत्तरार्ध में काफी तबाही मचाई। एचआईवी जैसे यौन रोग बंदरों से इंसान में आया, जो आज भी मौत का परकाला बना हुआ है। जंगल के जानवरों से इंसानों में अब तक 143 वायरस आये हैं। 1940 के बाद इन वायरस से बहुत ज्यादा नुकसान पहुॅंचाया है, वहीं कुछ वायरस को शरीर ने आत्मसात (स्वीकार) कर लिया। कई वायरस तो जानलेवा ही बन बैठे। चूहा, बंदर और चमगादड़ों से इंसान में फैलने वाले 75 फीसदी वायरस हैं।
चुनौती देते वायरस
21वीं सदी में महामारी कहर बन टूट पड़ी है सभ्यता पर। एचआईवी, इबोला, बोबिन, टीबी, रैबिज, लेपटोसिरोसिस, स्वाइन फ्लू, बर्ड फ्लू, हंता वायरस, पीजन फ्लू, वेस्ट नाइल इंस्फेलाइटिस, साइट्रोडोमोईकोसिस, वाइटनोस, सिंड्रोम, एंथ्रेक्स, डेविल फेस, कैनिन डिस्टेंपर, क्लेमांडिया, सारकोप्टिक मेग्ने, प्लेग, ई-कोलाई और अब कोविड-19 जैसे वायरस ने इंसानी वजूद को एक तरह से चुनौती दे दी।
हम जिस रफ्तार से जंगलों का विनाश कर रहे हैं। जंगली जानवरों को अपने आहार में शामिल कर रहे हैं, उसी रफ्तार से सभ्यता पर खतरा मंडरा रहा है। धरती में जंगलों का 30 फीसदी इलाका होना चाहिए, वह नष्ट हो रहा है। जंगलों के विनाश से जानवरों की 2.90 लाख प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर आ खड़ी हुई हैं। जर्नल प्रोसेडिंग आफ रायल सोसायटी में प्रकाशित शोध में कहा गया है, ‘‘जानवर हर वर्ष बड़े पैमाने पर इंसानों की जान ले रहे हैं और दुनिया को अरबों डॉलर की आर्थिक चपत लगा रहे हैं। कोरोना की तरह अनेक बीमारियों जंगल और जानवरों के प्राकृतिक निवास में इंसान के सीधे हस्तक्षेप से महामारी का रूप ले रही हैं।
कोविड-19 चमगादड़ से?
जंगली जानवरों और पशु-पक्षियों को अपना भोजन बनाने में चीन सर्वाधिक बदनाम है। कुत्ता, बिल्ली, सांप, पेंगोलिन, चमगादड़ जैसे जीव चीन में परोसे जाते हैं। कोविड-19 जहॉं से फैला, वह वुहान शहर सी फूड मार्केट के लिए प्रसिद्ध है और यहीं स्थित है चीन की वह प्रयोगशाला, जहॉं तरह-तरह के वायरस पर शोध होता है। चीनी मीडिया के अनुसार चमगादड़ खरीदने वाली एक महिला से कोविड-19 की शुरूआत हुई। पहले उसे हल्की सर्दी व खांसी हुई। आराम करने के बाद वह वुहान के सीफूड मार्केट में गई और उससे कोराना संक्रमण धीरे-धीरे फैला, जिसने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया।
कोविड-19 से दुनिया में हाहाकार मच गया, जिससे बचाव का एकमात्र कारगर उपाय संक्रमित होने से बचें और इंसान इंसानों से दूरी बनाए। कोविड-19 से होने वाली मौत का सिलसिला कब थमेगा, कहा नहीं जा सकता। ऐसी भयावह त्रासदी के साथ जंगल को बचाने और जंगली जानवरों से दूरी बनाए रखना जरूरी हो गया है, इंसानी सभ्यता के लिए। जंगलों के विनाश से उठा एक बड़ा खतरा कोविड-19 आखिरी कोशिश हो, ऐसी कोशिश सभ्य इंसान को करनी होगी।
पृथ्वी पर लगे जंगल जिस तेजी से खत्म हो रहे हैं, खतरा उससे अधिक बढ़ रहा है। जंगलों को नष्ट कर हम घातक बीमारियों को आमंत्रित कर रहे हैं। जंगल के जानवर अनजाने वायरस और बैक्टीरिया के भंडार लिए हुए हैं, उनका इंसान के करीब आना घातक है। इंसानों और वन्य पशुओं के मुठभेड़ की घटनाएं जैसे-जैसे बढ़ रही हैं, वहीं नए वायरस महामारी बनकर सामने आ रहे हैं। कोरोना वायरस प्रकृति से जेनेटिक है। यह जानवरों से मनुष्य में फैलता है। अब तक छह कोराना वायरस की पहचान हो चुकी है, लेकिन आज कोविड 19 का संक्रमण नया है, जिसका शिकार इंसान हो रहा है। न जाने कितने वायरस जंगल के जानवर लिए हुए हैं, जिनसे मानव सभ्यता को बचना है। सभ्यता को बनाए रखने के लिए हमें जंगल को बचाए रखना होगा। हम जंगल को बचाए रखेंगे तो जंगल हमारी सभ्यता को बनाए रखेगा।
रविन्द्र गिन्नौर
प्रदूषित शहरों में कोरोना से हुई ज्यादा मौत
प्रदूषण के चलते कोविड-19 ज्यादा खतरनाक सिद्ध हुआ। दुनिया में जहॉं प्रदूषण ज्यादा था, वहॉं कोरोना से मौत का आंकड़ा भी बढ़ा। प्रदूषण जिन इलाकों में कम था, वहॉं संक्रमण कम फैला और मौतों का आंकड़ा कम रहा। अमेरिका में ज्यादा प्रदूषित इलाकों में मौत अधिक हुई। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन ने खुलासा किया है कि नोबेल कोराना वायरस हवा में जिंदा रह सकता है। कोविड-19 प्रदूषित इलाकों में ज्यादा घातक होता है और हवा में जिंदा रह सकता है। इन तथ्यों की सच्चाई से दुनिया चिंतित हो उठी है। मौतों का आंकड़ा तेजी से न बढ़े, इसके लिए अब बेहतर इंतजाम होने लगे हैं। उपरोक्त दोनों तथ्यों पर हुए शोधों से यह जानकारी सामने आई।
कोरोना प्रदूषण से घातक बना
यूरोप में कोविड-19 से मौत का आंकड़ा तेजी से बढ़ा, लेकिन उन्हीं शहरों में, जहॉं अत्यधिक प्रदूषण था। इटली में कोरोना से ज्यादा मौतों को प्रदूषण से जोड़कर देखा जा रहा है। स्विस एयर मानीटरिंग प्लेटफार्म आईक्यूएयर के मुताबिक यूरोप के सबसे प्रदूषित सौ शहरों में से अकेले इटली में हैं। शोधकर्ताओं ने दावा किया कि ऐसे वायरस संक्रमण और मृत्यु दर बढ़ने की वजह प्रदूषित हवा हो सकती है। शोधकर्ताओं के दावे के को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सही बताया। अब तक यही कहा जा रहा था कि कोराना वायरस हवा में जिंदा नहीं रह सकता, क्योंकि इसके स्पाइक को सतह से चिपकना होता है। यह दावा गलत निकला।
शोध से हुआ खुलासा
अमेरिका में जिन इलाकों में प्रदूषत अधिक मौतों का आंकड़ा वहीं बढ़ा। इसकी सच्चाई जानने के लिए देशव्यापी अध्ययन किया गया। हावर्ड यूनीवर्सिटी ने अध्ययन के दौरान अमेरिका की 3080 काउंटी का विश्लेषण किया। यूनीवर्सि के ‘टी एन चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ’ के अनुसार जिन इलाकों में प्रदूषित कणों (पीएम 2.5) का स्तर अधिक था, वहॉं मृत्यु ज्यादा रही। अध्ययन में शोधकर्ताओं ने सांख्यिकीय गणना के आधार पर कहा कि प्रदूषित कणों की संख्या ज्यादा होने का असर कोरोना और बीमारियों से होने वाली मौतों पर पड़ा है।
मौत का आंकड़ा कम होता
प्रदूषण के खिलाफ चेतावनी देते हुए अध्ययन में कहा गया है कि अगर मैनहट्न अपने औसत प्रदूषण कणों को पिछले 20 साल में एक माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर भी कम कर देता, तो शायद हमें 248 मौतें कम देखने को मिलतीं। अध्ययन के लेखक फ्रांसेक्स डोमिनिकी के मुताबिक कई काउंटी में प्रदूषित कणों का स्तर एक क्यूबिक मीटर में 13 माइक्रोग्राम है। यह अमेरिकी औसत 8.4 से बहुत अधिक है। अध्ययन के नतीजों से स्पष्ट है कि लम्बी अवधि में प्रदूषण की मात्रा जैसे बढ़ेगी, वह कोरोना संबंधी खतरे को भी बढ़ाएगी।
वातावरण में प्रदूषण इंसान के जीवन को कम करता है और बीमार भी बनाता है। एक उदाहरण से देखें, यदि कोई इंसान 15 से 20 साल तक ज्यादा प्रदूषण झेलता है तो कम प्रदूषित जगह पर रहने वाले की तुलना में उसकी कोरोना से मौत की संभावना 15 फीसदी ज्यादा है।
हवा से फैलता कोविड-19
कोविड-19 हवा में जिंदा रह सकता
है, र एरोसॉल जैसे हालात वहॉं रहें। यह अपवाद की स्थिति है, पर यह संभव है। वुहान सेंट्रल यूनीवर्सिटी के विशेषज्ञों ने कहा कि 1 से 2 घंटे तक कोरोना वायरस जिंदा रह सकता है। हवा में जिंदा रहने के लिए कोरोना वायरस ठीक उसी तरह का है, जैसे सार्स का सीओवी वायरस। कोरोना वायरस हवा में सस्पेंशन की स्थिति में रहता है और मौका पाते ही सक्रिय हो सकता है। यही कारण है कि कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज करते हुए डॉक्टर भी संक्रमित हुए।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की आपात कालीन सेवाओं और पशुजन्य रोगों की विभाग प्रमुख ‘वेन केरखोव’ ने चेतावनी दी कि कोविड-19 हवा में जिंदा रह सकता है। वेन ने बताया कि एरोसॉल (हवा और वाष्प का मिश्रण) पैदा करने वाले मेडिकल उपकरण के कारण हवा में वायरस काफी देर तक जिंदा रह सकता है। इसलिए संक्रमित लोगों का इलाज कर रहे डॉक्टरों और पैरा मेडिकल स्टाफ को बचाव किट भी एरोसॉल के हालात को देखते हुए देनी होगी और ज्यादा से ज्यादा लोगों को क्वारंटाइन करना होगा।
नम वातावरण घातक
कोविड-19 ज्यादा नमी की स्थिति में एयरबार्न हो सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन सहित अनेक संगठनों ने चेतावनी दी है कि नमी की स्थिति कोरोना के लिए फायदेमंद हो सकती है। सिंगापुर यूनीवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने तीन कोविड-19 संक्रमित मरीजों का अध्ययन किया। मरीजों को अलग-अलग कमरों में रखकर इलाज किया गया। 2 मरीजों के कमसे हवा के नमूने लिए गए, जिसमें कोरोना वायरस नहीं मिला। तीसरे कमरे से हवा के नमूने में चौंकाने वाली जानकारी मिली। वहॉं कोरोना सतह पर मिला ही और कमरे की वेंटीलेशन यूनिट में भी मिला, जो फैन के आसपास था। यह अध्ययन अमेरिकन जर्नल आफ मेडिकल एसोसियेशन में प्रकाशित किया गया।
वातावरण में ज्यादा नमी की स्थिति में हवा में मौजूद पार्टिकल बड़े हो जाते हैं, क्योंकि हवा में पानी के महीन कण समाए रहते हैं। ऐसे में कोरोना वायरस को एरोसॉल होने का मौका मिल सकता है। अमेरिका के सेंट्रल आफ डिजीज कंट्रोल से जुड़ी संस्था एनआईएआईडी के विशेषज्ञ डॉ. विनसेंट की टीम ने इसे देखते हुए एक प्रयोग किया। डॉक्टरों ने सांस के मरीजों को अधिकतम फायदा पहुॅंचाने के लिए नेबुलाइजर का इस्तेमाल किया।
हवा में मौजूद पदार्थों के बड़े कणों से कोरोना वायरस चिपक जाता है और अधिकतम दो घंटे तक खुद को निष्क्रिय रखता है। इस दौरान किसी इंसान के संपर्क में आते ही वायरस सक्रिय हो जाता है। यही कारण है कि प्रदूषित इलाके और नमी वाले वातावरण में कोविड-19 ज्यादा मारक सिद्ध हुआ। वहीं कोरोना का प्रभाव साफ-सुथरे इलाकों में कम देखा गया। भारत में तेजी से बढ़ती गर्मी कोरोना वायरस को कम करेगी। शोध अध्ययन की चेतावनी से देश अब पर्यावरण को सहेजेंगे, जो अब तक इसे नकारते आए हैं। अमेरिका जैसा देश कोविड-19 से जिस तरह व्यथित हुआ, वह अब स्वच्छता, पर्यावरण को सर्वोपरि रखेगा।
पर्यावरण ऊर्जा टाइम्स