प्रदूषण पर अभूतपूर्व विराम लगा कोरोना से

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हमारी धरती, उसकी प्रकृति केवल इंसानों के लिए नहीं है। पृथ्वी के एक सूक्ष्म वायरस ने इंसान को जब घरों में रहने के लिए मजबूर कर दिया तो उसकी सारी प्रकृति विरोधी गतिविधियां बंद हो गईं। कुदरत पर कोई असर नहीं हुआ। प्रकृति सदैव गतिमान होती रहती है। इंसानों से ही दुनिया नहीं चलती। भले ही सभ्य इंसानों की गतिविधियां थम गईं, मगर सूरज नहीं रूका, चांद की रोशनी नहीं रूकी, धरती ने घूमना बंद नहीं किया। प्रकृति पर बेवजह इंसानी हस्तक्षेप बंद हुआ तो कुदरत ने अपने आप सुधार कर लिया। जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों सहित सब कुछ सुधर रहा है।
कुदरत में बदलाव
कुदरत अपने नैसर्गिक सुर में है। नदियां अपने आप साफ बहती नजर आ रही हैं। जलचर जीवों को जहॉं नया जीवन मिलने लगा है। पक्षियों का कलरव ही सर्वत्र सुनाई पड़ रहा है। जंगल के प्राणी भी शहर के सन्नाटे में सड़कों पर दिखने लगे हैं। घरों में कैद लोग पहली बार चिड़ियों की चहचहाहट सुन रहे हैं। आसमान इतना साफ दिख पड़ रहा है, जो कभी नहीं कभी नहीं रहा। ऐसे नीलगगन का नजारा देख रहे हैं लोग पहली बार। आसमान में छिटके तारों को देख अचरज में पड़ गए कि इतने सारे तारे अचानक कहॉं से आ गए।
आज हमें शुद्ध हवा मिल रही है, मगर हम अपना मुॅंह ढके रहने को मजबूर हैं। कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने दुनिया में लाकडाउन चल रहा है। जहर उगलते उद्योग बंद हैं। शहरों में धुआं उड़ाते वाहनों की आवाजाही बंद है। आसमान में उड़ने वाले हवाई जहाज एयरपोर्ट में खड़े हैं। घरों में सिमटा इंसान प्रदूषण नहीं फैला रहा है, तो हवा शुद्ध हो गई। नदियॉं निर्मल हो चलीं। कानफोड़ शोर थम गया। ऐसे अब घरों में लगी घड़ियों की टिक-टिक सुनाई देने लगी है।
एयर क्वालिटी इंडेक्स सुधरा
जलवायु परिवर्तन पर बहस रूक गई और पूरी दुनिया का ध्यान इन दिनों सिर्फ कोरोना पर आ टिका है। कोरोना से कैसे बचें, बस यही चर्चा का विषय बन गया है।
धरती को प्रदूषण से बचाने 1992 में शुरू हुआ पृथ्वी शिखर सम्मेलन में तय समझौते आज पूरे होते दिख रहे हैं, तो कोविड-19 के चलते। पृथ्वी में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में 13 से 18 प्रतिशत की गिरावट आई। औद्योगिक जगत में काम ठप है, वाहनों का प्रदूषण कम हो गया। मांसाहार के प्रति लोगों का रूझान बदल गया। ऐसी स्थिति में एयर क्वालिटी इंडेक्स में अपने आप सुधार आ गया।
निर्मल हुई नदियां
नदियों का पानी निर्मल हो गया। नदियां जिसने सभ्यता को जीवंत रखा और 21वीं सदी के इंसान ने अविरल बहली नदियों के प्रवाह को खत्म कर दिया। कारखानों की गंदगी उड़ेली तो मानव मल भी उसी में प्रवाहित कर दिया। कोविड-19 के भय से इंसानी हस्तक्षेप कुछ हद तक थमा, तो नदियां साफ-सुथरी दिखने लगीं।
भारत में नदियों को निर्मल बनाने के लिए अरबों रूपए खर्च कर दिए। लॉकडाउन के बाद लगता है कि नदियों को हम नहीं, बल्कि खुद नदी निर्मल हो सकती है, बशर्ते कि नदियों में इंसान गंदगी छोड़ना बंद कर दे।
आंकड़ों में देखें कि उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड कहता है, गंगा नदी में मानव मल की मात्रा लक्ष्मण झूले के पास 47 प्रतिशत और हरिद्वार में 25 प्रतिशत कम है। ऐसी स्थिति में भी गंगा का पानी साफ-सुथरा नजर आ रहा है और सरकार के झूठे दावे की पोल भी खुली हरिद्वार से ट्रीट किया हुआ सीवेज ही गंगा में मिलता है। लॉकडाउन के कारण पर्यटक नहीं हैं और उनका जल-मल गंगा में नहीं जा रहा है। तब गंगा थोड़ी निर्मल हुई है। वैसे लॉकडाउन से जाहिर हुआ कि गंगा, यमुना और किसी भी नदी की सफाई के लिए पैसे की नहीं, नीयत की जरूरत है।
देश की राजधानी में बहती यमुना नदी अपने आप साफ हो गई। अप्रैल 2020 में बदबूदार दिखने वाली यमुना स्वच्छ नीली आभा लिए बह रही है। आईटीओ ब्रिज के पास पहली बार यमुना में मछलियां तैरती नजर आ रही हैं, तो बेखौफ होकर प्रवासी पक्षी कलरव कर रहे हैं। यमुना नदी को साफ रखना तब तक संभव नहीं है, जब तक उसमें गंदे नाले, सीवेज को, कारखानों से निकले प्रदूषित पानी को प्रवाहित करना बंद नहीं किया जाए। देश की तमाम नदियों का पानी लॉकडाउन के चलते निर्मल हो गया है। कश्मीर की डल झील अपनी अनुपम छटा बिखेरती नजर आ रही है, मगर उसे देखने के लिए नहीं है कोई पर्यटक।
दिख पड़ा हिमालय
नील गगन अब साफ नजर आ रहा है। प्रदूषित गैसों का उत्सर्जन बंद है। आसमान में उड़ते हवाई जहाज भी नहीं हैं। ऐसे आसमान में उड़ते दिख रहे हैं पक्षी और रात में दिख पड़ रही है चटक चांदनी, जिसमें छिटके हुए हैं जगमगाते तारे। साफ होते वातावरण में दूर-दूर तक साफ नजर आ रहा है। पहली बार हिमालय का दीदार हो रहा है जालंधर शहर से। नेपाल की राजधानी काठमांडु से भी दिख रहा है धवल हिमालय।
सबसे अहम सुधार आया है धरती की ओजोन छतरी में। सूरज की घातक पराबैगनी किरणों से हमारी सुरक्षा छतरी ओजोन में हुआ छेद गहराता जा रहा था। लॉकडाउन के बाद ओजोन लेयर में अभूतपूर्व सुधार आया है। ओजोन लेयर को विदीर्ण करने वाली गैसों का उत्सर्जन काफी हद तक कम हुआ है। ओजोन परत में भराव आने के साथ धरती में आते कई संकटों से हमें छुटकारा मिल जाएगा।
शहरों में नाचे मोर
पहली बार ऐसा नजारा देखने को मिल रहा है जब पशु-पक्षी बेखौफ हैं। तरह-तरह के पक्षी शहरों की सड़कों पर दिख पड़ रहे हैं। भारत ही नहीं, दुनिया के तमाम देशों में ऐसा नजारा दिखाई पड़ रहा है। जंगल नहीं शहरों में मोर नाचते दिख रहा हैं कोयल की कूक दूर तक सुनाई पड़ रही है। चिड़ियों की चहचहाहट तो रोज सुनाई दे रही है। तरह-तरह के पक्षी शहरों के सन्नाटे को तोड़ते हुए अपनी उपस्थिति का अहसास करा रहे हैं।
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में हाथी घूमते दिख रहा है। असम के कई इलाकों में दुर्लभ गेंडा लॉकडाउन का पालन करवा रहा है। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में मगरमच्छ गांव की गलियों में घूमने लगे हैं। शेर, बाघ जैसे वन्य प्राणी पसरे हुए सन्नाटे में गशत लगाते दिख रहे हैं।
लॉकडाउन में जहॉं इंसानी हलचल थमी है, वहॉं वन्य प्राणी दिखने लगे हैं। ब्रसेल्स की सड़कों पर बत्तखों का झुंड नजर आ रहा है, तो बिट्रेन के तटीय कस्बे लियांहुडो में कश्मीरी बकरियां बेखौफ घूम रही हैं। ऐसा नजारा शायद फिर कभी नजर नहीं आएगा।
धरती पर फैलते प्रदूषण को एक झटके में खत्म कर दिया कोविड-19 ने। प्रकृति खुद संतुलित होती है और संतुलन के पहले विनाश लीला रचती है, यह नियति है। कुदरत अपने आप सुधार लाती है। इसी को ध्यान में रखते हुए प्रसिद्ध अर्थशास्ी माल्थस ने कहा था, ‘‘जब-जब पृथ्वी पर जनाधिक्य बढ़ेगा, प्राकृतिक आपदाएं जैसे भूकम्प, बाढ़, सूखा और महामारी आएगी।’’ फिलहाल तो धरती पर बढ़ते प्रदूषण को विराम लगाने कोरोना बहुत बड़ा योगदान कर रहा है।
रविन्द्र गिन्नौर