यह शीर्षक पढ़कर आप चौंक जाएंगे मगर यह बात सच है। भारत के रसोई घरों में गेहूं की घुसपैठ के बाद डायबिटीज के मामले बढ़ते जा रहे हैं। गेहूं का आटा खाने वालों की तोंद मोटी हो जाती है। ऐसी बड़ी तोंद वाले अक्सर डायबिटीज का शिकार बनते हैं। यह बात आपको थोड़ी अटपटी लगेगी लेकिन इसे बड़ी गंभीरता से कहा गया है। लोगों को डायबिटीज से दूर रखने के लिए अमेरिका के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉक्टर विलियम डेविस ने चेतावनी भी दी है कि बीमारी से बचने के लिए गेंहू का आटा खाना छोड़ दें।
डायबिटीज़ का जिम्मेदार गेहूं
अमेरिका में बड़ी तादाद में डायबिटीज का शिकार होते हुए लोगों को गेहूं से दूर रखने के लिए डाक्टर डेविस ने एक किताब भी लिखी है जिसका नाम है ‘व्हीट वेली’ इसे हिंदी में कहें तो ‘गेहूं की तोंद’ है। 2011 में लिखी गई यह पुस्तक अमेरिका में काफी चर्चित हुई और तब से गेहूं त्यागने का अभियान भी जोर शोर से चलाया जा रहा है, यह अभियान सफल भी हुआ क्योंकि लोग खतरनाक बीमारी डायबिटीज से बचना चाहते हैं।
‘गेहूं की तोंद’ किताब को देखें कि डा. डेविस ने उस में क्या लिखा है। बड़ी चौंकाने वाली बातें कही है डेविस ने अपनी किताब में। जो कहते हैं कि अगर आप मोटापे, डायबिटीज और हृदय रोगों से मुक्त होना चाहते हैं तो पुराने भारतीयों की तरह खान पान की आदत डालो। जो ज्वार, बाजरा, मक्का, जौ, चना, कोदो, रागी, सावा, कंगनी, की रोटी अपने भोजन में शामिल करते थे।
डॉक्टर डेविस का कहना सही है भारतीय खानपान में गेहूं नहीं बल्कि चावल को सर्वोपरि महत्व दिया गया है। भोजन के साथ पूजा परंपरा में अक्षत चावल लिए जाते हैं। जन्म से लेकर मृत्यु पर्यंत तक जिसमें गेहूं का कोई स्थान नहीं है। शिशु के अन्नप्राशन में चावल की खीर बनती है और इंसान की अंतिम यात्रा में लाई मृतक के कर्मकांड में चावल के ही पिंडदान किये जाते हैं।
पश्चिमी फैशन की तरह परंपरागत भारतीय भोजन में गेंहूं ने घुसपैठ कब कर ली यह पता ही नहीं चला। 1980 के दशक से गेहूं की रोटी घर- घर में बनाई जाने लगी और तभी से लोग मोटापे के साथ हृदय रोग, डायबिटीज के रोगी बनते चले जा रहे हैं। गेहूं की खपत जितनी तेजी से बढ़ी रोग उससे दुगनी रफ़्तार से बढ़ता चला गया।
परम्परागत भारतीय भोजन
भारत के परंपरागत भोजन में मोटा अनाज को ही सर्वोपरि महत्व दिया गया था। ज्वार, बाजरा और मक्का की रोटी हर घर में बनती थी। आमतौर पर घरों में मिक्स अनाज की रोटी बनाई जाती रही, जिसे भी ‘बेझड़ रोटी’ कहा जाता था। मक्का और ज्वार की रोटी ज्यादातर बनती थी। ठंड के दिनों में बाजरा की रोटी बड़े चाव के साथ खाई जाती थी जिसमें भरपूर घी, मक्खन लगता था। गेहूं के साथ चना वा मक्का डालकर उस आटा का उपयोग किया जाता था। गेहूं आटा की रोटी कभी कभार मेहमानों के आने पर ही बनाई जाती थी जिस पर घी लगाया जाता था। पूड़ी बनाने के लिए गेहूं के आटा का उपयोग किया जाता था। मोटा अनाज ही भारतीय भोजन का प्रमुख हिस्सा था इसलिए लोग आज के जैसी बीमारियों का नाम भी नहीं जानते थे।
गेंहू की घुसपैठ
गेहूं मूलतः भारत की फसल नहीं है। यह मध्य एशिया और अमेरिकी की फसल मानी जाती है। भारत में आक्रांता के साथ गेहूं भी आ गया। गेहूं इसलिए लोकप्रिय हो गया कि इसकी रोटी आसानी से बन जाती है, मगर उतनी आसानी से हमारे शरीर में इसकी रोटी पचती नहीं है। गेहूं की रोटी खाने से लोगों की तोंद बढ़ती चली गई क्योंकि गेहूं में लोच होती है, जो उसके खाने वाले के थुलथुल होते पेट में नजर आती है। आज इस कारण हर भारतीय का वजन बढ़ रहा है और उसकी तोंद निकल रही है जिससे वह हृदय रोग और डायबिटीज का शिकार बन रहा है।
अमेरिका के डॉक्टर डेविस ने ‘गेहूं की तोंद’ किताब लिखकर गेहूं के बारे में लोगों को चेताया है। भारत में उत्पादित होने वाला मोटा अनाज हमारे शरीर को वह पोषक तत्व देता है जो हमारे लिए जरूरी है। ऐसा खाद्य हमें तमाम रोगों से दूर भी रखता है इसलिए आज जरूरत है कि हम अपने भोजन में मोटे अनाज को शामिल करें और स्वस्थ रहें।
आर.के. शुक्ला